संसदीय चुनाव से अधिक मतदान को सभी मान रहे अपने पक्ष में
जितेंद्र अग्रवाल/हप्र
अम्बाला शहर, 6 अक्तूबर
अंबाला की चारों विधानसभा सीटों पर करीब 5 महीने पहले हुए संसदीय चुनाव से अधिक मतदान होने को प्रमुख प्रत्याशी और सियासी दल अपने पक्ष में बताकर जीत का दावा कर रहे हैं, वहीं प्रत्याशियों की जीत-हार की समीक्षा शहर के चौक-चौराहों से लेकर गलियों व चौपालों में होने लगी है। राजनीतिक पंडितों के अनुसार जिले में इस बार कांग्रेस का पलड़ा भारी है। वास्तविकता 8 अक्तूबर को ही सामने आ पाएगी लेकिन एग्जिट पोल के बाद अब हर जगह चर्चाओं और आंकलन के दौर चल रहे हैं। इस बार विधानसभा चुनाव में अम्बाला शहर सीट पर 63 प्रतिशत, अम्बाला छावनी में 64.45 प्रतिशत, मुलाना में 71.04 प्रतिशत तथा नारायणगढ़ में सर्वाधिक 73.10 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। हालांकि मई में हुए लोकसभा चुनाव में अम्बाला शहर में मतदान का प्रतिशत 61.7 और अंबाला छावनी में मतदान का प्रतिशत 61.2 रहा था जबकि नारायणगढ़ में 69.6 प्रतिशत और मुलाना आरक्षित में 69.6 प्रतिशत मतदान हुआ था। आम तौर से ज्यादा मतदान को परिवर्तन के रूप में देखा जाता है लेकिन मतदान प्रतिशत बड़ी मात्रा में नहीं बढ़ने से उहापोह की स्थिति बन गई है।
मतदान के बाद स्पष्ट हो चुका है कि जहां 3 सीटों पर मुख्य मुकाबला परंपरागत रूप से कांग्रेस और भाजपा के बीच ही है। वहीं सबसे हॉट अम्बाला छावनी की सीट पर मुकाबला पृर्व गृह मंत्री अनिल विज, कांग्रेस की बागी आजाद उम्मीदवार चित्रा सरवारा तथा कांग्रेस प्रत्याशी परविंदर परी के बीच है। यहां हार जीत का निर्णय परविंदर परी द्वारा लिए गए मत निर्धांरित कर सकते हैं। हालांकि अनिल विज ने सरकार बनने पर मुख्यमंत्री पद पर दावा ठोक दिया है। जिले में दूसरी प्रतिष्ठा की सीट नारायणगढ़ की है जो कार्यवाहक मुख्यमंत्री नायब सैनी का गृह क्षेत्र भी है। पिछले चुनाव में यहां कांग्रेस की शैली चौधरी जीतीं, इस बार उनका मुकाबला भाजपा के पवन सैनी से माना जा रहा है। अम्बाला शहर में मुख्य मुकाबला 2 बार विधायक रहे भाजपा के असीम गोयल और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता निर्मल सिंह के बीच है। यहां असीम जीत की तिकड़ी बनाने और निर्मल सिंह 2019 में असीम से मिली हार का बदला लेने को आतुर है।