तरक्की का लाभ अंतिम व्यक्ति को भी मिले
पिछले दिनों कुछ ऐसी घटनाएं हुई हैं जो उपलब्धियां बनकर भारत की साख को दुनिया में बढ़ा गईं। जिस देश ने सदियों औपनिवेशिक त्रासदी झेली, गरीबी का मुकाबला किया, दुनिया के देश उसे वैश्विक नेतृत्व की राह पर चलता हुआ बताने लगे। निस्संदेह, विश्वभर की आर्थिक मंदी के वातावरण में भी भारत ने अपनी विकास दर को बनाए रखा और एक दशक में दुनिया की पांचवें नंबर की अर्थव्यवस्था बन गया। चुनौतीपूर्ण समय में भारत की आवाज सुनी जाने लगी है। जी-20 का साझा घोषणापत्र एक बहुत बड़ा इम्तिहान था। पिछली बार इंडोनेशिया या बाली में जो घोषणापत्र जारी हुआ था, उसे रूस ने स्वीकार नहीं किया था क्योंकि उसमें रूस-यूक्रेन युद्ध के बारे में रूस का नाम लेकर आलोचना थी। इस बार यह भारत की कूटनीति की जीत हुई। रूस और चीन ने भी साझा घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करने में देर नहीं लगाई।
भारत ने जिस तरह जी-20 में अफ्रीकी यूनियन को शामिल किया तथा इंडिया-मिडिल ईस्ट यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर की स्थापना का रास्ता तैयार किया, वह हमारी बड़ी उपलब्धि है। अमेरिका, सऊदी अरब और यूरोप के देश एक ही मंच पर आकर चीन के उन सपनों को झुठला रहे हैं, जिनके अंतर्गत वह वन बैल्ट वन रोड परियोजना बना रहा था। इससे पहले कि वह हिंद प्रशांत इलाके में अपना दबदबा बना पाता, भारत ने उसको भी चुनौती दे दी है।
जी-20 के देशों की अर्थव्यवस्था 85 प्रतिशत तक दुनिया में योगदान कर रही है। इसके निवेश के लिए चीन के आर्थिक साख में उखड़ते जाने से निवेश के लिए पसंदीदा देश या विकल्प भारत का बन जाना हमारे विनिर्माण क्षेत्र को बहुत बड़ी ताकत दे रहा है। वहीं चाहे महंगाई को रोकने के लिए मौद्रिक नीति का रुख बदलकर देश में निवेश विकास के स्थान पर महंगाई नियंत्रण कर दिया गया, इसके बावजूद ऋण पर बढ़ती ब्याज दरों के चलते देश में ऋण लेने की दर कम नहीं हुई। इस तरह निवेश में यूं वातावरण बना रहा जहां बार-बार शेयर मंडियों की चांदी होती रही।
दुनिया बदल रही है। दुनिया के काम करने के तौर-तरीके बदल रहे हैं। अब दिल्ली में देखें तो भारत मंडपम और यशोभूमि से उठती हुई आवाज इन बदलते तौर-तरीकों की सूचना देती है। भारत ने अमेरिका और यूरोप का सहयोग तो हासिल कर लिया लेकिन यह हमारी कूटनीति की विशेषता थी कि हमने चीन की वर्चस्ववादी नीतियों को हावी नहीं होने दिया। रूस ने चाहे चीन और पाकिस्तान की ओर मित्रता का हाथ अधिक जोश से बढ़ाया लेकिन भारत ने रूस-यूक्रेन युद्ध पर शांति की पैरवी करते हुए उस तटस्थ रुख को नहीं छोड़ा कि जिसके कारण रूस की नाराजगी मोल ली जा सकती थी। बल्कि अपने कठिन समय में रूस ने सस्ता कच्चा तेल लेकर स्थिति को सम्भाला। फिर इसी कच्चे तेल को भारत की रिफाइनरियों ने फिनिश करके दुनिया के बाजार में बेचा और भारत ने पैसा कमाया।
भारत की नई छवि की बात करते हैं तो इसरो को कैसे भुलाया जा सकता है। इसरो का चंद्रयान अभियान पूरी तरह से सफल हुआ है। इस सफल अभियान से हमें चांद के धरातल पर विशेष तथ्यों से साक्षात्कार करवाए गए। इसरो की मुहिम लगातार गति पकड़ रही है। अब सूरज की ओर आदित्य अभियान सफलता के साथ अपने कक्ष बदलता हुआ स्थापित हो रहा है। उससे हमें सूरज से वे जानकारियां प्राप्त हो सकती हैं, जो आने वाले दिनों में जलवायु के असाधारण परिवर्तनों से होने वाली तबाही को कम या टालने में सहायक होंगी। पिछले दिनों छोटे उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए इसरो का निजीकरण भी हुआ है और तीसरी दुनिया के देशों ने अपने संचार उपग्रह प्रक्षेपण के लिए भारत की सेवाएं लेने की ओर उत्साह दिखाया है। निश्चय ही यह निजीकरण और इससे होने वाली कमाई हमारी विदेशी मुद्रा के भंडार को भरेगी। हम अपनी मुद्रा के डॉलर क्षेत्र में अवमूलन से बचत का एक रास्ता खोल सकेंगे। वैसे तो मुक्त व्यापार या अपनी-अपनी मुद्रा में व्यापार भी एक रास्ता है। भारत उस रास्ते पर भी चल निकला है।
क्वाड देशों का समूह भारत की इस पहलकदमी के साथ प्रतिबद्धता जता रहा है। अब आसियान देशों के साथ व्यापार की यह समझ पैदा हो जाती है तो यह निश्चय ही भारत की छवि को और भी उज्ज्वल कर देगी। बस, एक ही बात की प्रतीक्षा इस बदलती हुई छवि में रहेगी। वह यह कि जब भारत की इस उन्नत होती हुई छवि से देश का चेहरा उजला हो तो उसके साथ-साथ उसमें रहने वाले करोड़ों गरीबों का चेहरा भी उजला होना चाहिए। उस पर से उदासीनता के बादल छंटें।
वैसे इस दिशा में पहल हुई है। इसके लिए अभी-अभी जिस विश्वकर्मा योजना को शुरू किया गया है जिसमें कारीगरों की आर्थिक स्थिति सुधारने की खोज-खबर ली जाएगी। अगर इसे सही ढंग से चलाया जाता है तो इससे देश की 55 प्रतिशत आबादी का भला हो जाएगा क्योंकि ये सभी लोग छोटे-बड़े कारीगर हैं।