मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

जीवनशैली में बदलाव से ही रुकेगा क्षरण

06:30 AM Sep 16, 2023 IST

ज्ञानेन्द्र रावत

Advertisement

ओजोन परत के कारण ही धरती पर जीवन संभव है। इसके महत्व को समझते हुए साल 1987 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मांट्रियल समझौते पर हस्ताक्षर की तारीख को चिन्हित करते हुए 16 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय ओजोन दिवस घोषित किया था। जीवन के लिए महत्वपूर्ण वायुमंडल में ओजोन परत की खोज 1867 में जर्मन-स्विस वैज्ञानिक शानबीन ने की और उसके बाद इसकी पुष्टि एन्ड्रयूज ने की। बता दें कि यह एक हल्की नीली गैस है जिसमें तेज अप्रिय गंध होती है। यह परत सूर्य के उच्च आवृत्ति के पराबैंगनी प्रकाश की 90 फीसदी मात्रा को अवशोषित कर लेती है जो पृथ्वी पर जीवन के लिए हानिकारक है।
आज उसी ओजाेन परत में हुए छेद में बढ़ोतरी होते जाने से आर्कटिक में गर्मी बढ़ने, बर्फ के पिघलने की दर में तेजी आने, त्वचा के कैंसर व मेलेनोमा के मामलों में बेतहाशा वृद्धि का खतरा मंडरा रहा है। इसके चलते मानव जीवन, जीव-जंतु, पेड़-पौधों और पारिस्थितिकी का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। एक अध्ययन के मुताबिक, यूवीबी विकिरण में दस फीसदी की बढ़ोतरी पुरुषों में मेलेनोमा के मामलों में उन्नीस फीसदी और महिलाओं में सोलह फीसदी की बढ़ोतरी करती है। फसलों की वृद्धि भी प्रभावित हुई है। इसके दुष्प्रभाव से लोगों का स्वास्थ्य खराब होगा, चर्म रोग, कैंसर जैसी बीमारियां बढ़ेंगी, आंखों पर दुष्प्रभाव होगा। यदि हम धरती के ओजोन परत रूपी इस सुरक्षा कवच को बचाने में नाकाम रहे तो यहां जीवन की कल्पना बेमानी होगी। क्योंकि पृथ्वी के वायुमंडल के स्ट्रैटोस्फेयर के नीचे के हिस्से में बड़ी मात्रा में ओजोन पायी जाती है, इसे ही ओजोन परत कहते हैं। इसके क्षरण का मूल कारण प्रदूषण है जिसमें मानवीय दखलंदाजी की प्रमुख भूमिका है। इसी कारण सूर्य की पराबैंगनी किरणें धरती पर सीधे-सीधे टकराती हैं जो तबाही का कारण बनती हैं। इस परत के क्षरण में वाहनों के धुएं, फ्रिज-एसी से निकलने वाली क्लोरोफ्लोरोकार्बन गैस की खास भूमिका है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि धरती के चारों ओर ओजोन की परत जितनी मोटी होगी, सूर्य की पराबैंगनी किरणों से उतनी ही धरती बची रहेगी। वैज्ञानिकों के अनुसार ओजोन के लिए खतरनाक गैसों के प्रयोग एवं रिसाव में 90 फीसदी की कटौती तथा वैकल्पिक गैस ईजाद करने से समस्या का समाधान नजर नहीं आता। इसके बावजूद उत्तरी ध्रुव में आर्कटिक पर ओजोन में करीब दस लाख वर्ग किलोमीटर का बड़ा छेद हो गया है। फिर भी यह अंटार्कटिका के छेद से बहुत छोटा है जो तीन-चार महीने में दो से ढाई करोड़ वर्ग किलोमीटर तक फैल जाता है। इसका अहम कारण मौसम में हो रहा बदलाव है। शोध-अध्ययन इसके सबूत हैं कि प्रदूषण में दिनब-दिन जो बढ़ोतरी हो रही है, उसपर अंकुश के दावे बेमानी हैं। जबकि जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर ओजोन परत पर पड़ा है जिससे उसके लुप्त होने का खतरा मंडराने लगा है।
दरअसल वायुमंडल के ऊपरी हिस्से में लगभग 25 किलोमीटर की ऊंचाई पर फैली ओजोन परत सूर्य की किरणों के खतरनाक अल्ट्रावायलट हिस्से से पृथ्वी के जीवन की रक्षा करती है। यही जब धरती के वायुमंडल में आ जाती है तो हमारे लिए जहरीली गैस के रूप में काम करती है। यदि हवा में ओजोन का स्तर काफी अधिक हो जाये तो बेहोशी और दम घुटने की स्थिति आ सकती है। हवा में ओजोन का स्तर बढ़ने से उसकी गुणवत्ता खराब होती है। प्रचंड गर्मी ओजोन के रूप में नई मुश्किलें पैदा कर रही है जो हवा में ओजोन के स्तर बढ़ने से पैदा हुई है। यह समस्या सांस से जुड़ी बीमारियां, उल्टी आने, चक्कर, थकान बढ़ने, रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने और ब्लड प्रैशर की मुख्य वजह साबित हो रही है। मौसम विज्ञानियों की मानें तो बढ़ती गर्मी के लिए भी प्रदूषण ही जिम्मेदार है। ऐसे में हमें प्रदूषण का स्तर कम करना होगा। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अनुसार जिस रफ्तार से ओजोन परत की क्षति हो रही है, उससे हरेक साल त्वचा कैंसर के तीन लाख अतिरिक्त रोगी पैदा होंगे, फसलों को नुकसान पहुंचेगा और समुद्री जीवन के आधार को भी क्षति पहंुचेगी।
अकेले राजधानी दिल्ली को लें, यहां के वातावरण में ओजोन के प्रदूषक कणों की मात्रा डेढ़ गुणा तक बढ़ गयी है। यह सारा दोष अति उपभोगवादी संस्कृति का है जो प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन और बर्बादी की जन्मदात्री है। जरूरत है कि हम उपभोगवादी संस्कृति को त्यागकर पृथ्वी को शस्य, श्यामला और समस्त चराचर जीवों के लिए सुरक्षित बनाएं। इसके लिए हम अपनी जीवन शैली बदलें, भौतिक संसाधनों पर निर्भरता कम करें, अधिक से अधिक पेड़ लगायें, और उनकी रक्षा करें ताकि सूर्य की घातक पराबैंगनी किरणें सीधे धरती पर न आ सकें। तभी ओजोन परत के छेद में हो रही बढ़ोतरी को रोका जा सकता है। लेकिन यह काम जागरूकता के बिना असंभव है।

Advertisement
Advertisement