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चुनावी मुद्दा भी बने पर्यावरण का संकट

10:45 AM Dec 06, 2023 IST
चुनावी मुद्दा भी बने पर्यावरण का संकट
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पिछले दिनों जब पूरी दिल्ली धुएं और धुंध की चपेट में थी, उस दौरान हर आम और खास को सांस लेने में परेशानी, आंखों में जलन सहित कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं होने लगी थीं। अभी भी दिल्ली समेत देश के कई बड़े शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक लगातार गंभीर श्रेणी में बना हुआ है।
सच्चाई यह भी है कि अगर वायु प्रदूषण को कम करने के तत्काल कदम नहीं उठाये तो भविष्य में इसकी बड़ी कीमत सब को चुकानी पड़ेगी। कुल मिलाकर कथित विकास के पीछे विनाश की आहट धीरे-धीरे दिखाई और सुनाई पड़ने लगी है। हालात इतने बदतर हो गए हैं कि कई बार वायु प्रदूषण मापने वाला इंडेक्स ही काम नहीं करता, मतलब वह उच्चतम स्तर तक पहुंच जाता है। वास्तविकता यह है कि अधिकांश राजनीतिक दलों के एजेंडे में पर्यावरण संबंधी मुद्दा है ही नहीं, न ही उनके चुनावी घोषणापत्र में पर्यावरण प्रदूषण कोई मुद्दा रहता है। देश में हर जगह, हर तरफ, हर पार्टी विकास की बातें करती हैं। लेकिन ऐसे विकास का क्या फायदा जो लगातार विनाश को आमंत्रित करता है। ऐसे विकास को क्या कहें, जिसकी वजह से सम्पूर्ण मानवता का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया हो।
अब समय आ गया है जब पर्यावरण का मुद्दा राजनीतिक पार्टियों के साथ आम आदमी की प्राथमिकता सूची में सबसे ऊपर होना चाहिए। क्योंकि अब भी अगर हमने इस समस्या को गंभीरता से नहीं लिया तो आगे आने वाला समय भयावह होगा।
दिल्ली में पिछले 18 सालों में कैंसर से होने वाली मौतें साढ़े तीन गुना तक बढ़ गई हैं और इसका एक कारण प्रदूषण है। इस बीच राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम के साल 2012 से साल 2016 तक के आंकड़ों के अनुसार, भारत में कैंसर रजिस्ट्री वाले सभी स्थानों में राजधानी दिल्ली में सबसे ज्यादा लोगों की रजिस्ट्री हुई है। इस आंकड़े के अनुसार, 0 से 14 साल के उम्र के बच्चों में कैंसर का प्रतिशत 0.7 प्रतिशत से 3.7 प्रतिशत के बीच है। रिपोर्ट के अनुसार, वायु प्रदूषण के कारण बच्चों में कैंसर होने का खतरा ज्यादा हो जाता है क्योंकि बच्चे वयस्कों की तुलना में ज्यादा तेजी से सांस लेते हैं और ज्यादा फिजिकल एक्टिविटी करते हैं। दिल्ली के ज्यादातर अस्पतालों में प्रदूषण के कारण बीमार हो रहे लोग भर्ती हो रहे हैं। फिलहाल इस ज़हरीली हवा में कई प्रदूषक मौजूद हैं, जैसे कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रिक ऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, ओजोन आदि। यह सभी तत्व इंसानी शरीर के लिए खतरनाक हैं।
कुछ वर्षों पहले तक बीजिंग की गिनती दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर के रूप में होती थी, लेकिन चीन की सरकार ने इस समस्या को दूर करने के लिए कई प्रभावी कदम उठाए। हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट ‘वायु प्रदूषण और बाल स्वास्थ्य प्रिस्क्राइबिंग क्लीन एयर’ के अनुसार भारत में पिछले पांच साल में ज़हरीली हवा के कारण सबसे ज्यादा, 5 साल से कम उम्र के बच्चों की असामयिक मौतें हुई हैं। ग्रीनपीस इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वायु प्रदूषण की स्थिति भयावह है। कुल 168 भारतीय शहरों में से एक भी डब्ल्यूएचओ के मानकों के अनुरूप नहीं है। इस संगठन ने आरटीआई समेत कई स्रोतों के हवाले से बताया कि भारत में हर साल वायु प्रदूषण के चलते 12 लाख लोगों की जान चली जाती है। इतना ही नहीं, देश का तीन प्रतिशत सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) ज़हरीली हवा के धुएं में घुल जाता है। अगर देश का विकास जरूरी है तो सबसे पहले वायु प्रदूषण से लड़ना होगा।
एक अन्य अध्ययन के मुताबिक वायु प्रदूषण भारत में मौत का पांचवां बड़ा कारण है। हवा में मौजूद पीएम 2.5 और पीएम 10 जैसे छोटे कण मनुष्य के फेफड़े में पहुंच जाते हैं। जिससे सांस व हृदय संबंधित बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। इससे फेफड़े का कैंसर भी हो सकता है। अध्ययन बताता है कि हम वायु प्रदूषण की समस्या को दूर करने को लेकर कितने लापरवाह हैं। अगर हालात नहीं सुधरे तो वो दिन दूर नहीं जब शहर रहने के लायक नहीं रहेंगे।
स्वच्छ वायु सभी मनुष्यों, जीवों एवं वनस्पतियों के लिए अत्यंत आवश्यक है। इसके महत्व का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि मनुष्य भोजन के बिना हफ्तों तक, जल के बिना कुछ दिनों तक ही जीवित रह सकता है, किन्तु वायु के बिना उसका जीवित रहना असम्भव है। मनुष्य दिनभर में जो कुछ लेता है, उसका 80 प्रतिशत भाग वायु है। प्रतिदिन मनुष्य 22000 बार सांस लेता है। इस प्रकार प्रत्येक दिन में वह 16 किलोग्राम या 35 गैलन वायु ग्रहण करता है।
वायु विभिन्न गैसों का मिश्रण है जिसमें नाइट्रोजन की मात्रा सर्वाधिक 78 प्रतिशत होती है जबकि 21 प्रतिशत ऑक्सीजन तथा 0.03 प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड पाया जाता है तथा शेष 0.97 प्रतिशत में हाइड्रोजन, हीलियम, आर्गन, निऑन, क्रिप्टन, जेनान, ओजोन तथा जल वाष्प होते हैं। वायु में विभिन्न गैसों की उपरोक्त मात्रा उसे संतुलित बनाए रखती है। इसमें जरा-सा भी अन्तर आने पर वह असंतुलित हो जाती है और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित होती है। श्वसन के लिए ऑक्सीजन जरूरी है।
जिस तरह से आज राजधानी दिल्ली के लोग शुद्ध हवा में सांस लेने को तरस रहे हैं, ऐसे में वो दिन दूर नहीं, जब देश के अधिकांश शहरों का यही हाल होगा। सरकार के साथ-साथ समाज और व्यक्तिगत स्तर पर भी काम करना होगा, तभी वायु प्रदूषण से छुटकारा मिल पायेगा।

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लेखक मेवाड़ यूनिवर्सिटी में डायरेक्टर हैं।

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