मुख्यसमाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाब
हरियाणा | गुरुग्रामरोहतककरनाल
आस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकीरायफीचर
Advertisement

पैदल यात्रियों की सुरक्षा को यकीनी बनाएं

08:11 AM Aug 11, 2023 IST
नवदीप असीजा, शरद सत्य चौहान

सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक जी ने समानता, करुणा और मानवता की सेवा के सिद्धांतों का प्रचार किया था। उनकी शिक्षाएं आज के संदर्भ में भी उतनी ही प्रासंगिक हैं, खासकर पैदल चलने वालों की सुरक्षा पर। पैदल चलना-फिरना या आना-जाना वह वैश्विक नित्य कर्म है जो सबके जीवन का अभिन्न अंग है, यह किसी अन्य के साथ मिलकर रास्ता तय करने और किसी के मुक्त विचरण के अधिकार का द्योतक भी है। गुरु नानक ने न केवल इन मूल्यों पर जोर दिया बल्कि आचरण भी कर दिखाया। उनकी यात्राओं का एक उल्लेखनीय पक्ष यह था कि वे अधिकांशतः पैदल चले और सभी दिशाओं में दूर-दूर तक गए। पैदल यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने को मान्यता देना यानि गुरु नानक जी की शिक्षाओं का आदर करना और उस समाज को बढ़ावा है जहां सड़कों पर पैदल चलना ससम्मान हो।
पैदल यात्रियों की सुरक्षा पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट बताती है कि दुनियाभर में राहगीरों की मौत की संख्या दोगुणी हो गई है- वर्ष 2013 में 6.6 प्रतिशत से 2016 में बढ़कर 12.9 फीसदी हुई। प्रति एक किलोमीटर पैदल चलने वालों के लिए मौत का जोखिम कार-सवारों के मुकाबले नौ गुणा अधिक है।
हमारे देश में पैदल चलने वालों की सुरक्षा चिंता का बड़ा कारण बन चुकी है। राष्ट्रीय अपराध लेखा-जोखा ब्यूरो रिपोर्ट-2021 के मुताबिक, हर साल सड़क पर पैदल चलने वालों की लगभग 18,900 मौतें होती हैं अर्थात हर दिन 51 पैदल यात्रियों की मृत्यु। अफसोस कि परेशान करने वाली यह हकीकत न केवल शहरों की है बल्कि देश के ग्रामीण इलाकों की भी है।
पंजाब में स्थिति खासतौर पर चिंताजनक है। आंकड़े बताते हैं, सूबे में सड़क दुर्घटनाओं के शिकार लोगों में अधिकांश संख्या पैदल राहगीरों या साइकिल सवारों की है। हाल के वर्षों में शहरी इलाकों के सड़क हादसों में मारे गए लोगों में 50 प्रतिशत से अधिक गिनती पैदल चलने वालों की रही है। वर्ष 2022 में राज्य की विभिन्न सड़कों पर 1,100 राहगीर मरे। इससे स्पष्ट है कि कुल सड़क दुर्घटनाओं में मौतों की संख्या घटाने में पैदल यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की भूमिका बहुत बड़ी है।
पैदल राहगीरों की मौत में अधिकांश वे हैं जो कामकाजी आयु वर्ग में आते हैं। उनमें बहुत से अपने परिवार के एकमात्र कमाऊ सदस्य होते हैं और न्यूनतम आय एवं सामाजिक रूप से कमजोर वर्ग से होते हैं। ‘चलने का हक’ सिद्धांत मानव अधिकारों में एक मूल तत्व है, जो किसी की आने-जाने और सार्वजनिक जगहों पर जाने की आजादी यकीनी बनाता है। इसके महत्व को समझते हुए उच्च एवं सर्वोच्च न्यायालय समय-समय पर पैदल चलने वालों के हित और सुरक्षा यकीनी बनाने पर जोर देने वाले फैसले देते आये हैं। संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत पैदल यात्रियों के अधिकार सुनिश्चित करने में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसी तरह, सर्वोच्च न्यायालय ने देविंदर सिंह नेगी बनाम भारत सरकार एवं अन्य मामले में पैदल यात्रियों के अधिकारों के समर्थन में महत्वपूर्ण अंतरिम फैसला सुनाया है। इन कानूनी दखलों का मकसद सड़क योजना बनाने वक्त पैदल यात्रियों की एवज पर वाहन चालन को तरजीह देने वाले पक्षपाती नज़रिये को सुधारना है। पैदल चलने के अधिकार को मान्यता देकर हम सुरक्षित सड़कों को अधिक सुरक्षित और सबको साथ लेकर चलना सुनिश्चित करते हैं। ‘पैदल चलने का अधिकार’ नामक पहल न्यायालय के उक्त फैसलों पर आधारित है और यह सड़कों को सुरक्षित बनाने एवं राहगीरों के लिए यथेष्ट इंतजाम करने के सरकार के संकल्प को बल देते हैं। बढ़िया योजना से बनाए पैदल-मार्ग, चौक पार करने के समुचित तरीके और साइकिल-मार्ग में निवेश का उद्देश्य शहरी आवागमन में बढ़ोतरी, स्वास्थ्यप्रद पैदल चलने की आदत और सबका ध्यान रखने वाली भावना को बढ़ावा देना है।
इसलिए पैदल यात्रियों की सुरक्षा यकीनी बनाने को हम तरजीह दें। जहां सड़क दुर्घटनाएं पैदल चलने वालों की जिंदगी के लिए अधिक घातक हैं वहीं नाकाफी बुनियादी तंत्र और घटिया सड़क डिजाइन उनकी आवाजाही में अड़चन पैदा करते हैं और सुरक्षा से समझौते के हालात बनाते हैं। इसका सीधा असर व्यक्ति की शारीरिक गतिविधियों और सेहत पर पड़ता है लिहाजा आगे इसका प्रभाव पूरे समाज के स्वास्थ्य पर भी है।
इन चिंताओं को हल करने के लिए सरकार और संबंधित पक्षों के लिए मानवीय दृष्टिकोण रवैया अपनाने की जरूरत है। इसमें बृहत नीतियों का क्रियान्वयन, बेहतर ढांचागत परिकल्पना, वर्तमान एवं प्रस्तावित मार्गों की सुरक्षा समीक्षा और जागरूकता अभियान चलाना शामिल है। इसके अलावा, विभिन्न विभाग, जैसे कि परिवहन, शहरी योजना, कानून पालन और शिक्षा संस्थानों के बीच आपसी तालमेल का पैदल यात्रियों के लिए सुरक्षित माहौल बनाने में बहुत महत्व है।
शहरी योजनाओं और परिवहन नीतियों में पैदल यात्रियों की सुरक्षा को विशेष रूप से ध्यान में रखकर हम सबके लिए अधिक सुरक्षित भविष्य बना सकते हैं। बेहतर मार्गीय तंत्र, सड़क नियमों की पालना और जनता में जागरूकता से सड़क दुर्घटनाओं में कमी आएगी और पथिक-मित्र बनेंगी। सभी मिलकर पैदल यात्रियों की सुरक्षा को तरजीह दें, सुनिश्चित करें कि पैदल चलना सबके लिए निरापद, उपलब्ध और आनंददायी अनुभव बने। पंजाब में पैदल यात्रियों की सुरक्षा और ‘चलने का अधिकार’ सिद्धांत को बढ़ावा देने की यात्रा का आगाज़ वर्ष 2019 में गुरु नानक जी की 550वीं जयंती के अवसर से हुआ।
यही वक्त है कि सूबा और केंद्रीय सरकार हाथ मिलाएं और इस मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय पटल पर ले जाएं। हमारा प्रस्ताव है कि संयुक्त राष्ट्र सड़क सुरक्षा सप्ताह मनाने के दौरान एक दिन अंतर्राष्ट्रीय पैदल यात्री सुरक्षा दिवस के रूप में घोषित किया जाए ताकि पैदल यात्रियों की सुरक्षा यकीनी बनाने पर ध्यान दिलाया जा सके। यह घोषणा न केवल गुरु नानक का सम्मान होगी बल्कि ऐसा समाज बनाने की हमारी प्रतिबद्धता का भी, जहां पैदल चलना सुरक्षित हो। राजनेता भी इस विषय को बढ़ावा दें और पैदल मार्ग ढांचे में सुधार के लिए फंड जारी करें, पैदल यात्रियों की सुरक्षा के बारे में जागरूकता पैदा करें।
दुनिया में पैदल राहगीरों की सुरक्षा को तरजीह देने का काफी सकारात्मक असर रहेगा। कल्पना करें ऐसी सड़कों की जहां पैदल यात्री सुरक्षित महसूस करें, दुर्घटनाएं कम से कम हों। राहगीरों की सुरक्षा पर जोर देने का मतलब है स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देना, वह किसी एक व्यक्ति की हो या पूरे समाज की।
सड़क सुरक्षा के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए वर्ष 2007 से संयुक्त राष्ट्र वैश्विक सड़क सुरक्षा सप्ताह शुरू किया गया। इसको मनाते वक्त, सड़क इस्तेमाल करने वाले युवाओं पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है क्योंकि ज्यादातर दुर्घटनाओं के पीछे यही आयु-वर्ग है। आइए, पैदल चलने वालों की सुरक्षा दुनियाभर में यकीनी बनाने को तरजीह दें।

Advertisement

लेखकद्वय पंजाब सरकार में प्रशासनिक व्यवस्था से जुड़े हुए हैं।

Advertisement
Advertisement