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तंबाकू से तौबा कर यकीनी बनायें सुरक्षा

07:18 AM Jul 31, 2024 IST

रेखा देशराज
जब धूम्रपान, वायु प्रदूषण, विकिरण, कुछ भारी धातुओं के संपर्क में आने या पारिवारिक इतिहास के कारण किसी व्यक्ति के फेफड़ों के ऊतकों में कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से बढ़ने और संख्या में गुणित होने लगती हैं, तो यह स्थिति फेफड़ों यानी लंग कैंसर की होती है। लंग कैंसर दुनिया का सबसे आम कैंसर है। लंग कैंसर के प्रति लोगों को आगाह व जागरूक करने के लिए हर साल 1 अगस्त के दिन विश्व लंग कैंसर डे मनाया जाता है।

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शरीर के संकेतों पर नजर

लंग कैंसर इसलिए भी ज्यादा खतरनाक है, क्योंकि इसका पता आमतौर पर तब चलता है, जब यह काफी बड़े पैमाने पर फैल चुका होता है, यानी काबू से बाहर हो चुका होता है। लंग कैंसर पीड़ितों के जीवित रहने की दर महज 22 फीसदी है। अगर समय रहते बीमारी का पता चल जाए तो 50 फीसदी से ज्यादा बचने के चांस होते हैं और नहीं भी बचा तो बीमार के जीवित रहने का समय काफी ज्यादा होता है। अगर शुरुआती स्टेज में लंग कैंसर का पता चल जाये, तो धूम्रपान छोड़ने पर मरीज के 20 फीसदी जीवित रहने की उम्मीद बढ़ जाती है। सबसे जरूरी है कि समय रहते लंग कैंसर का पता चल जाए, जिसके लिए शरीर के कुछ लक्षणों पर नजर रखनी चाहिये।

ये हैं रोग के लक्षण

अगर किसी को लगातार खांसी आए और बीच-बीच में खून के कुछ धब्बे नजर आएं तो यह लंग कैंसर का लक्षण हो सकता है। अगर सांस लेने में नियमित तौरपर तकलीफ हो रही हो, सीने में दर्द या बेचैनी महसूस हो रही हो। बात करने में सांस उखड़ने लगे, आवाज में घरघराहट पैदा हो जाए, बात करते-करते आवाज बैठने लगे, भूख न लगे और बिना किसी वजह के वजन गिरता जाए तो भी यह फेफड़ों के कैंसर का लक्षण हो सकता है। कंधों में लगातार दर्द, चेहरे, गर्दन, हाथ या ऊपरी छाती में सूजन, एक आंख में छोटी पुतली और झुकी हुई पलक तथा चेहरे के उस तरफ बहुत कम या बिल्कुल पसीना न आना, अंगुलियों और नाखूनों के आकार में परिवर्तन तथा लगातार पीठ दर्द। ये लक्षण भी फेफड़ों के कैंसर से जुड़े हुए हो सकते हैं।

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लंग कैंसर के कारण

लंग कैंसर के कई कारण हैं लेकिन सबसे बड़ा कारण सिगरेट, सिगार या पाइप जैसे तंबाकू उत्पादों का सेवन अथवा ऐसे लोगों के बीच में रहना जो धूम्रपान करते हों। एस्बेस्टेस जैसे विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आना, वायु प्रदूषण में रहना, कुछ भारी धातुओं के संपर्क में आना तथा फेफड़े की किसी बीमारी का होना भी फेफड़ों के कैंसर का प्रमुख कारण हो सकता है। लेकिन 80 से 85 फीसदी तक फेफड़ों के कैंसर का कारण धूम्रपान होता है। विशेषज्ञों की मानें तो लंग कैंसर के कारण जो मौतें होती हैं, उसमें 80 फीसदी उनकी होती हैं जिन्हें धूम्रपान के कारण यह कैंसर हुआ होता है। तंबाकू के धुएं और खाने के तंबाकू में जो जहरीला निकोटीन होता है, उसके कारण सबसे ज्यादा लंग कैंसर होता है।

जन जागरूकता जरूरी

लगातार जन जागरूकता अभियान के चलते हाल के सालों में फेफड़ों के कैंसर के मरीजों की संख्या में आंशिक रूप से कमी आयी है। लेकिन यह कमी अभी इतनी नहीं है कि राहत की सांस ली जा सके। दुनियाभर की कैंसर संबंधी संस्थाएं लोगों को इस भयानक बीमारी से दूर रहने के लिए आगाह करती रहती हैं। दुनियाभर में लंग कैंसर के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए वर्ल्ड कैंसर डे मनाया जाता है, जिसका मकसद ही यह होता है कि लोगों को बताया जाए कि यह कैंसर कितना खतरनाक है और इससे बचकर कैसे रहा जा सकता है। साल 2020 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बताया था कि इस बीमारी से पूरी दुनिया में हर साल करीब 18 लाख लोगों की मौत हो जाती है।

लंग कैंसर से बचने का एक तरीका यह है कि कभी भी धूम्रपान न किया जाए और न उन लोगों के साथ देर तक रहा जाए जो धूम्रपान करते हैं। अगर धूम्रपान कर रहे हैं तो किसी भी कीमत पर धूम्रपान छोड़ने की कोशिश करें। भले इसके लिए काउंसलिंग से लेकर मेडिकल हेल्प तक क्यों न लेना पड़े। हाल के सालों में लंग कैंसर के लिए भारत में जो वजहें सामने आयी हैं, उनमें पान मसाला, गुटखा, पैक सुपारी और शराब का सेवन भी हैं। इनसे बचें और अपनी रोजमर्रा की खुराक में ज्यादा से ज्यादा फल, हरी सब्जियां और दालों को शामिल करें। -इ.रि.सें.

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