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Emotional Spending शॉपिंग की सैरगाह में तलाश तनाव से राहत की

04:04 AM Jan 07, 2025 IST
emotional spending शॉपिंग की सैरगाह में तलाश तनाव से राहत की
भावनात्मक खरीदारी की आदत
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जिंदगी में तनाव या एकरसता से उबरने के लिए विभिन्न तरीके अपनाए जाते रहे हैं ताकि व्यक्ति का ध्यान अकेलेपन या कार्यस्थल की व्यस्तताओं से डायवर्ट हो सके। सुकून के पल ढूंढ सकें। मॉल या मार्केट में जाकर या ऑनलाइन इमोशनल स्पेंडिंग को भी टेंशन दूर करने के तरीके के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। हालांकि यह अस्थाई समाधान ही है।

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यवकृत वशिष्ठ
आजकल की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में सुकून के कुछ पल मिल पाना एक स्वप्न मात्र है। विशेष तौर पर 8 से 5 की ड्यूटी से जुड़े नौकरीपेशा लोगों के लिए। कार्यस्थल के मानसिक तनाव से छुटकारा पाने के लिए हम लोग विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल करते हैं जैसे कभी कभी डिनर के लिए किसी होटल में परिवार के सदस्यों, दोस्तों के साथ जाना या फिर घर के नजदीक ही किसी पार्क, किसी धार्मिक स्थल या फिर किसी पर्यटन स्थल पर जाना इन तरीकों में शामिल है। म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट बजाना, लिखना, म्यूजिक सुनना, डांस आदि अलग-अलग तरीके होते हैं। इन सब के पीछे व्यक्ति का एक ही उद्देश्य होता है कि उसे अपनी ऑफिस की टेंशन को भुलाने का कोई बहाना मिल जाए, जो बहुत जरूरी भी है।
मनोवैज्ञानिक पहलू
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार अगर लोगों का भावात्मक विश्लेषण किया जाए, तो सामने आएगा कि सभी के अंदर या तो अकेलापन है या फिर वे अपने कार्यस्थल के तनाव यानी एकरसता से ग्रस्त हैं। हालांकि इससे छुटकारा पाने के लिए कुछ लोगों के पास अपनी रुचि और रचनात्मकता के अनुसार म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट बजाना, लिखना, म्यूजिक सुनना, डांस आदि अलग-अलग तरीके होते हैं। ये सब तरीके कुछ देर के एक अच्छा अहसास देते हैं परंतु कई बार एक ऐसे तरीके की जरूरत होती है जिसमें मस्तिष्क पूरी तरह से तनाव को भूलकर किसी और कार्य में व्यस्त हो जाए। वहीं थोड़ा-बहुत शारीरिक श्रम भी हो जाए ताकि भोजन करने के बाद गहरी नींद आ जाए और अगली सुबह मन, मस्तिष्क और शरीर सभी तरोताज़ा हो जाएं। मनोवैज्ञानिक भी मानते हैं कि टेंशन भगाने के लिए बस मस्तिष्क को डायवर्ट करने की जरूरत है।
टेंशन हटाने को भावात्मक खरीदारी
भावात्मक खर्च अर्थात इमोशनल स्पेंडिंग एक ऐसी अवधारणा है जिसने टेंशन दूर करने के एक नए तरीके का द्वार खोला है। जिसे हम भावात्मक खरीदारी भी कह सकते हैं। शॉपिंग से न सिर्फ व्यक्ति अपनी जरूरत का सामान खरीद सकता है,बल्कि खरीदारी में व्यस्त होते ही व्यक्ति का मस्तिष्क दूसरी दिशा में सोचने लगता है और भूल जाता है कि वह किस टेंशन से ग्रस्त था। ऐसे में बाकायदा कई लोगों ने शॉपिंग को टेंशन दूर भगाने वाले एक तरीके के रूप में इस्तेमाल भी करना शुरू कर दिया। जब भी टेंशन हुई तो शॉपिंग करने निकल पड़ते हैं। विशेष कर किसी मॉल आदि में जहां सभी कुछ एक ही छत के नीचे उपलब्ध होता है, ऐसे ही बाहर खाना हो या फिर मूवी देखना। बेशक यह तरीका कुछ लोगों को कारगर लगे लेकिन यह तनाव दूर करने का कोई स्थाई समाधान नहीं मानना चाहिये। दूसरी बात, अपनी इस आदत पर नियंत्रण भी रखना भी जरूरी है अन्यथा यह आपके बजट को बिगाड़ कर एक नई टेंशन दे सकती है।
‘रिटेल थेरेपी’ के फायदे
मूड में बदलाव लाने के लिए की गई खरीदारी को मनोवैज्ञानिक रिटेल थेरेपी नाम भी देते हैं तथा इसे भी तनाव दूर करने के एक उपचार के रूप में देखते हैं। उनका मानना है कि इस तरह की शॉपिंग से लॉन्ग टर्म और शॉर्ट टर्म दोनों ही तरह के फायदे होते हैं। शॉर्ट टर्म में तो शॉपिंग आपके बिगड़े मूड को ठीक कर देती है वहीं लॉन्ग टर्म में व्यक्ति कई ऐसे सामान की भी खरीद कर लेता है जिसकी आज तो बेशक न हो, पर भविष्य बहुत जरूरत पड़ने वाली हो सकती है। जब भी तनाव या अकेलापन सताने लगे, इस थेरेपी को आजमा सकते हैं, विशेषकर महिलाएं। क्योंकि ज्यादातर महिलाओं को शॉपिंग का एक अलग ही क्रेज होता है।
बेवजह खरीदारी, जेब पर भारी
मूड बदलने के लिए की जाने वाली खरीदारी कई बार जेब पर भी भारी पड़ सकती है। क्योंकि जब मूड ऑफ हो और ऐसे में किसी ऐसे कार्य को किए जाने का मन बनाया जाए जिसमें आपकी मेहनत से कमाया हुआ धन खर्च होने वाला है तो सामान की खरीद और मोलभाव करने में आपकी मानसिक क्षमता ठीक से साथ नहीं दे पाती जिसके कारण आप या तो कोई डिफेक्टिव सामान पूरे रेट में ले आते हैं या फिर जरूरत के सामान के लिए ठीक से मोल-भाव नहीं कर पाते और ऐसे में सस्ती चीज को महंगे भाव में ले आते हैं। ऐसे में अच्छा है किसी भी मॉल आदि में प्रवेश करते ही खरीदारी न करें। पहले घूम-फिर कर, समान को देख कर, अपने मूड को कुछ ठीक करें और फिर उसके बाद ही कुछ खरीदने के बारे में सोचें।
शॉपिंग से फील गुड इफेक्ट
भले ही शॉपिंग एक खर्चीला तरीका हो सकता है टेंशन दूर करने का ,पर यह आपको खुशी और सुकून का अहसास करा सकता है, जिससे उपजा सेरोटोनिन हॉर्मोन आराम और खुशी महसूस कराता है। ऐसी शॉपिंग के बाद न सिर्फ मूड बेहतर हो जाता है, बल्कि इंसान अपने लिए भी सकारात्मक सोचता है। इस तरह की शॉपिंग लोगों की खराब होते रिश्तों को संभालने में एक उत्प्रेरक का काम करती है, कार्यस्थल से मिले अवसाद को खत्म कर, जीवन के प्रति एक नया नजरिया प्रदान करती है।

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