विकास दर में दीर्घकालीन वृद्धि के हों प्रयास
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी किए गए हालिया आंकड़ों के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही यानी अप्रैल से जून में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) ने 20.1 फीसदी की विकास दर बताई है। देश के इतिहास में पहली बार विकास दर में 20 फीसदी से ज्यादा बढ़ोतरी दर्ज हुई है। पिछले वित्त वर्ष 2020-21 की समान तिमाही में जीडीपी में 25.4 फीसदी की गिरावट आई थी।
गौरतलब है कि चालू वित्त वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र में 49.6 फीसदी उछाल आई है। निर्माण गतिविधियों में 68.3 फीसदी की शानदार वृद्धि हुई है। व्यापार, होटल, परिवहन क्षेत्र में 34.3 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है, जबकि वित्तीय, रियल एस्टेट और पेशेवर सेवाओं में पहली तिमाही के दौरान 3.7 फीसदी की वृद्धि देखी गई है। कृषि और संबंधित गतिविधियों में पहली तिमाही में 4.5 प्रतिशत की मजबूत वृद्धि दर्ज की गई है।
निश्चित रूप से जीडीपी के आंकड़े अर्थव्यवस्था में तेज सुधार के संकेत देते हैं। वित्त वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही ही वह अवधि थी जब देश में कोविड-19 महामारी की दूसरी घातक लहर आई और आर्थिक व कारोबारी गतिविधियां ढह गई थीं। लेकिन इस बार देशव्यापी लॉकडाउन नहीं लगा। प्रादेशिक स्तर पर लॉकडाउन जैसे कदम उठाए गए। साथ ही कई अहम आपूर्ति शृंखलाएं लगातार कार्यरत रहीं। ऐसे में भारत ग्रुप-20 देशों में सबसे तेजी से विकास दर बढ़ाने वाला देश बन गया है। भारत की विकास दर अगले साल तक महामारी के पूर्व स्तर पर पहुंच सकती है।
यकीनन कोरोना संक्रमण से निर्मित आर्थिक मुश्किलों के बीच चालू वित्त वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही में जीडीपी को बढ़ाने में चार अनुकूलताएं लाभप्रद रही हैं। एक, मजबूत कृषि विकास दर, रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन व रिकॉर्ड कृषि निर्यात। दो, रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचा विदेशी मुद्रा भंडार। तीन, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का रिकॉर्ड प्रवाह। चार, तेजी से बढ़ता हुआ शेयर बाजार ।
निश्चित रूप से देश में कृषि क्षेत्र को उच्च प्राथमिकता के साथ आगे बढ़ाए जाने के लाभ मिले हैं। स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि पिछले तीन वर्षों में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर लगातार बढ़ी है। यह 2019-20 की पहली तिमाही में 3.3 फीसदी थी। पिछले वर्ष की पहली तिमाही में 3.5 फीसदी व इस वर्ष की पहली तिमाही में 4.5 फीसदी है। कृषि क्षेत्र से निर्यात भी तेजी से बढ़ा है। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के मुताबिक चालू फसल वर्ष 2020-21 में कोरोना की आपदा के बावजूद देश में खाद्यान्न की कुल पैदावार रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचते हुए 30.86 करोड़ टन अनुमानित है। यह खाद्यान्न पैदावार पिछले वर्ष की कुल पैदावार 29.75 करोड़ टन के मुकाबले अधिक है। इतना ही नहीं, भारत दुनिया में खाद्य पदार्थों की आपूर्ति हेतु एक सुसंगत और विश्वसनीय निर्यातक देश के रूप में उभरकर सामने आया है। पिछले वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान देश से 41.25 अरब डॉलर मूल्य के कृषि एवं संबद्ध उत्पादों का निर्यात किया गया। यह सालभर पहले की इसी अवधि के 35.15 अरब डॉलर मूल्य की तुलना में 17.34 फीसदी ज्यादा रहा है।
नि:संदेह देश में बढ़ते हुए विदेशी निवेश के प्रवाह से भी विकास दर बढ़ने में मदद मिली है। यद्यपि अप्रैल से जून 2021 की तिमाही में दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं में बड़ी गिरावट थी, इसके बावजूद विदेशी निवेशकों द्वारा भारत को एफडीआई के लिए प्राथमिकता दी गई । साथ ही भारत का विदेशी मुद्रा कोष बढ़ता गया। उल्लेखनीय है कि रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक विगत 20 अगस्त को देश का विदेशी मुद्रा भंडार 616.89 अरब डॉलर की ऐतिहासिक रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया है और भारत दुनिया में चौथा सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार रखने वाला देश बन गया है। इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि देश के विशाल आकार के विदेशी मुद्रा भंडार से जहां भारत की वैश्विक आर्थिक साख बढ़ी है, वहीं इस भंडार से देश की एक वर्ष से भी अधिक की आयात जरूरतों की पूर्ति की जा सकती है। अब देश का विदेशी मुद्रा भंडार देश के अंतर्राष्ट्रीय निवेश की स्थिति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है। पिछले पांच वर्षों में विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से बढ़ा है।
नि:संदेह शेयर बाजार का भी जीडीपी को बढ़ाने में अहम योगदान है। वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही में शेयर बाजार तेजी से बढ़ा है। दुनिया के कई देशों की तुलना में भारत का शेयर बाजार छलांगे लगाकर आगे बढ़ते हुए दिखाई दे रहा है। बाम्बे स्टाक एक्सचेंज (बीएसई) सेंसेक्स 31 अगस्त को पहली बार 57000 के ऊपर बंद हुआ है। शेयर बाजार में आईपीओ लेने की होड़ मची हुई है। शेयर बाजार में छोटे निवेशकों की भागीदारी तेजी से बढ़ी है। देश में डीमैट खातों की संख्या 6.5 करोड़ से ज्यादा हो गई है।
नि:संदेह जीडीपी के चालू वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही के आंकड़ों के अनुसार कोविड-19 की चुनौतियों के बीच आर्थिक अनुकूलताओं से अर्थव्यवस्था में सुधार आऩे लगा है। अप्रैल से जून 2021 की तिमाही के घटकों से भी आशावाद की किरणें नजर आती हैं। अगस्त 2021 में जीएसटी संग्रह 1.12 लाख करोड़ रुपये रहा है। अर्थव्यवस्था के विभिन्न मूल क्षेत्र मसलन बिजली और विनिर्माण आदि में उल्लेखनीय प्रगति देखने को मिल रही है। वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री और स्टील की खपत में भी प्रगति देखी गई है।
चूंकि अभी कोविड-19 की तीसरी लहर की आशंका के बीच आर्थिक और औद्योगिक चुनौतियां बनी हुई हैं। ऐसे में चालू वित्त वर्ष में विकास दर को बढ़ाने के और अधिक रणनीतिक प्रयास जरूरी हैं। देश में आशा के अनुरूप मानसून की बारिश नहीं होने के कारण अब खरीफ की फसलों पर अधिक ध्यान देने से कृषि जीडीपी की बढ़त जारी रह सकेगी। इस बात पर भी ध्यान दिया जाना होगा कि इस समय कोरोना टीकाकरण लक्ष्य के अनुरूप ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे। निजी खपत और उपभोक्ता विश्वास को बढ़ावा देने के लिए महंगाई में कमी करना जरूरी है। पेट्रोल-डीजल पर टैक्स घटाने पर विचार करना होगा। निजी क्षेत्र को निवेश बढ़ाने के लिए विशेष रूप से प्रोत्साहन देना होगा। देश में लोगों की खर्च संबंधी धारणा को बेहतर बनाया जाना होगा। देश की अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए जरूरी है कि इसके विशाल उपभोक्ता बाजार में बुनियादी जरूरतों के लिए अधिक खर्च करने की चाह पैदा की जाए। सरकार द्वारा नयी मांग के निर्माण हेतु लोगों की क्रयशक्ति बढ़ाने के लिए रणनीतिक रूप से कदम आगे बढ़ाया जाए। उद्योग-कारोबार को और अधिक गतिशील करने के लिए जीएसटी संबंधी जो बाधाएं आ रही हैं, उन्हें दूर किया जाए।
उम्मीद है कि चालू वित्त वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही में जो ऐतिहासिक वृद्धि दर देखने को मिली है, उसे आगे भी बढ़ाए रखने के लिए हरसंभव कदम उठाए जाएंगे। चालू वित्त वर्ष के बजट का कार्यान्वयन उपयुक्त रूप से किया जाएगा। चालू वित्त वर्ष के बजट के अलावा सरकार ने कोरोना की दूसरी लहर से जंग के लिए जो वित्तीय राहत पैकेज घोषित किए हैं, उनका भी कारगर तरीके से क्रियान्वयन किया जाएगा। निश्चित रूप से ऐसे प्रयासों से चालू वित्तीय वर्ष 2021-22 के अंत में विकास दर वैश्विक अनुमानों के मुताबिक 9 से 10 फीसदी के स्तर पर पहुंचते हुए दिखाई दे सकेगी।
लेखक ख्यात अर्थशास्त्री हैं।