आधुनिक तकनीक से समृद्ध हो शैक्षिक पाठ्यक्रम
सुरेश सेठ
हमने 2024 में कदम रख लिया है। यह कदम है नये ज्ञान का, इंटरनेट ताकत का, चैट जीपीटी का और कृत्रिम मेधा का। रोबोटिक्स युग शुरू हो गया। इस युग के आविर्भाव के लिए हमें पहले तो देश की वास्तविकता की पहचान करनी होगी। यह देश जहां पर पिछड़े हुए इलाके हैं, पहाड़ों में बिखरी हुई जनसंख्या है और हमारा ग्रामीण समाज है जिन्हें शिक्षा के नाम पर पुरातनपंथी अध्यापकों द्वारा पुराने सिलेबस की वही रिवायती शिक्षा परोसी जाती है। लेकिन दूसरी ओर शुरू हो गई देश में कौशल विकास योजना। इस बदले हुए युग में युवाओं को इंडस्ट्री के नये युग के अनुरूप ढालना पड़ेगा। कृत्रिम मेधा आ गई, 3डी प्रिंटिंग आ गई, रोबोटिक्स आ गई और डीपफेक जैसा कुप्रचलन आ गया। इस साल की अंतिम मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने अन्वेषण, नयी सोच, शोध और नये अध्यवसाय की बात की है लेकिन उसके लिए चाहिए अधिक निवेश।
नीति आयोग का कहना है कि देश की सकल घरेलू आय का कम से कम 6 प्रतिशत शिक्षा विकास पर खर्च किया जाना चाहिए। लेकिन इस समय तक भी शिक्षा विकास पर हम केवल 2.9 प्रतिशत ही खर्च कर रहे हैं। कहा गया है कि इस बार अर्थात् 2023-24 में हमने शिक्षा विकास पर 1.12 लाख करोड़ रुपया खर्च किया है। लेकिन पीछे मुड़कर देखते हैं तो 2019-20 में भी हमने 94 हजार करोड़ रुपया खर्च कर दिया था। जरूरत है इस समय शिक्षकों को नई डिजिटल शिक्षा के आधार पर प्रशिक्षित किया जाए। चाहे देश में 740 एकलव्य मॉडल रेजिडेंशियल स्कूल बनाने का फैसला किया गया है, जिसमें 38 हजार शिक्षकों को नियुक्ति मिलेगी ताकि शुरू से ही ये शिक्षक जमीनी स्तर पर शिक्षा की गुणवत्ता को बदलें और बेहतर बनाएं। शिक्षक इंग्लैंड, अमेरिका और सिंगापुर में प्रशिक्षण के लिए भेजे जाएं। सिंगापुर शिक्षा के बेहतरीन मॉडल के तौर पर जाना जाता है। इसीलिए पंजाब सरकार ने शिक्षकों के ग्रुप सिंगापुर में भेजे हैं लेकिन समग्र शिक्षा अभियान में सबसे पहले तो शिक्षकों का चयन करने के लिए उनकी सीमा रेखाओं को बड़ा किया जाए और उससे पहले शिक्षकों की कमी तो पूरी की जाए।
प्राथमिक स्तर से लेकर उच्च शिक्षा तक तमाम पद खाली पड़े हैं। कच्चे और अस्थाई अध्यापक काम चला रहे हैं। शिक्षा युग को बदलना है और उससे ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था बनानी है तो यह अस्थाई अध्यापकों की नींव पर नहीं बनेगी। देश में ग्रामीणों को डिजिटल साक्षर बनाने के लिए एकल अभियान शुरू किया गया है। इसके लिए एकल शिक्षा ऑन व्हील बसें देश के 20 से अधिक राज्यों में गांव-गांव घूमकर लोगों को कंप्यूटर से परिचित करवा रही हैं।
नया युग है, इसमें बच्चे ही नहीं बल्कि बड़े भी कंप्यूटर प्रशिक्षण हासिल करने के साथ-साथ निपुण भी होना चाहते हैं। लेकिन क्या जो एकल शिक्षा ऑन व्हील का अभियान शुरू हुआ है, वह काफी होगा? अनुमान है कि इस गाड़ी पर प्रति वर्ष 12 लाख रुपये खर्च होते हैं। इसमें 9 लैपटॉप रहते हैं। एक बार में 18 लोगों के बैठने की व्यवस्था है। वाहन में सौर ऊर्जा से चलने वाले जेनरेटर की भी व्यवस्था है। यहां सर्च इंजन तक का उपयोग करने के लिए सक्षम बनाया जाता है। चाहे अभी यह योजना झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश से लेकर आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ तक राज्यों में चल रही है लेकिन योजना बने कि देश के कोनों में भी ऐसे पक्के डिजिटल शिक्षा केन्द्र स्थापित किए जाएं जो लोगों को डिजिटल साक्षर कर सकें। इस साल 42 हजार लोगों को डिजिटल साक्षर करने का लक्ष्य है। दरअसल, 42 हजार से 42 लाख तक जाने की यात्रा सबके सहयोग से ही पूरी हो सकती है।
सरकार ने अपनी ओर से नेशनल डिजिटल लाइब्रेरी तो स्थापित कर दी है, जिससे देश के हर उम्र के लोगों को पढ़ने के लिए किताबें और दूसरी सामग्री उपलब्ध हो सकेगी। लेकिन इस डिजिटल लाइब्रेरी को भरने के लिए केन्द्र सरकार और राज्य सरकार के शोध प्रभागों, नेशनल बुक ट्रस्ट और चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट को भी ज्ञान बांटने के डिजिटल युग में प्रवेश करने के लिये पर्याप्त तैयारी करनी पड़ेगी।
देश में प्रधानमंत्री की इस वर्ष 14,500 पी.एम. श्रीस्कूल स्थापित करने की योजना है, जिस पर अगले पांच सालों में 27,360 करोड़ रुपये की लागत आएगी। इससे 20 लाख से अधिक लोगों को फायदा मिलेगा। लेकिन 5 साल के इस अंतराल में जो प्रतीक्षा डिजिटल होने में लोगों को करनी पड़ेगी, उसके लिए अति आवश्यक है कि तत्काल इस दिशा में कदम बढ़ाने के लिए शिक्षा के वर्तमान ढांचे में आमूल-चूल परिवर्तन हो। अर्थात् पालिटेक्निक से लेकर इंजीनियरिंग तक और आयुर्वेद से लेकर मेडिकल शिक्षा तक कृत्रिम मेधा का वह सहारा दिया जाए कि जिसके बगैर अभी इनके सिलेबस पूरे आधुनिक ज्ञान से पिछड़ रहे हैं। डिजिटल आधारित अर्थव्यवस्था बनानी है तो उसे बनाने की दृष्टि से लेकर कारगुजारी, पुस्तकों और सिलेबस तक सब बदलना पड़ेगा।
लेखक साहित्यकार हैं।