धरती को सूर्य की विस्फोटक तरंगों से खतरा
सूरज की सतह पर ज्वालाओं और प्लाज्मा के विस्फोट से निकलने वाली प्रचंड ऊर्जा सौर तूफान को जन्म देती है। इन्हें भू-चुंबकीय तूफान भी कहते हैं। यदि सूरज पर विस्फोट पृथ्वी की दिशा में होता है तो ऊर्जावान कणों की विशाल मात्रा पृथ्वी के चुंबक मंडल में गड़बड़ी उत्पन्न करती है। सूरज से उठने वाला सौर तूफान पृथ्वी के जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर सकता है। अमेरिका जैसे देश सौर तूफान के विनाशकारी प्रभावों से इतने ज्यादा चिंतित हैं कि उन्होंने अभी से इससे निपटने के लिए आपात योजनाएं बनानी शुरू कर दी हैं। हमारी पृथ्वी अतीत में सौर तूफानों को झेल चुकी है। पिछला सबसे बड़ा सौर तूफान सितंबर, 1859 में आया था। तब सूरज की ऊर्जा के शक्तिशाली विस्फोट ने पृथ्वी के टेलीग्राफ सिस्टम ठप कर दिए थे। इस घटना को कैरिंगटन इवेंट के रूप में भी जाना जाता है। अब शोधकर्ताओं ने प्राचीन वृक्षों के तनों के छल्लों का उपयोग करके अब तक के सबसे बड़े सौर तूफान की पहचान की है। फ्रांसीसी आल्प्स में पाए गए प्राचीन वृक्षों के छल्लों के विश्लेषण के अनुसार यह घटना 14,300 साल पहले हुई थी।
विशेषज्ञों ने कहा कि पेड़ों के रेडियोएक्टिव कार्बन-14 (कार्बन का रेडियोएक्टिव आइसोटोप) में उछाल एक बड़े सौर तूफान के कारण हुआ था। कार्बन-14 पेड़ों और जानवरों में समाहित है। चूंकि इस रेडियोएक्टिव कार्बन का क्षय एक ज्ञात दर पर होता है, विज्ञानी इसके माध्यम से यह पता लगा सकते हैं कि ये जीव किस समय रहते थे। इससे प्राचीन वृक्षों के वार्षिक छल्लों में छिपे हुए सौर तूफानों का भी पता चल सकता है। आज इसी तरह का बड़ा सौर तूफान उपग्रह प्रणालियों को नष्ट कर सकता है और बड़े पैमाने पर बिजली ग्रिड के ब्लैकआउट का कारण बन सकता है। ऐसे सौर तूफान से होने वाला नुकसान अरबों डॉलर में होगा।
वैज्ञानिकों का कहना है कि भविष्य की संचार और ऊर्जा प्रणालियों की रक्षा करने के लिए सौर तूफानों को समझना महत्वपूर्ण है। अपने अध्ययन के लिए ब्रिटेन के लीड्स विश्वविद्यालय सहित शोधकर्ताओं की एक अंतर्राष्ट्रीय टीम ने दक्षिणी फ्रांसीसी आल्प्स में गैप के पास ड्रोज़ेट नदी के नष्ट हुए तटों पर प्राचीन पेड़ों में रेडियोएक्टिव कार्बन के स्तर को मापा। शोधकर्ताओं ने इन पेड़ों के तनों के छल्ले काटे। अलग-अलग छल्लों को करीब से देखने पर उन्होंने 14,300 साल पहले पेड़ों के रेडियोकार्बन के स्तर में एक अभूतपूर्व वृद्धि पाई।
उन्होंने कहा कि यह उछाल संभवतः एक विशाल सौर तूफान के कारण हुआ, जिसने पृथ्वी के वायुमंडल में भारी मात्रा में ऊर्जावान कणों को छोड़ा होगा। फ्रांसीसी वैज्ञानिक और अध्ययन के प्रमुख लेखक एडौर्ड बार्ड ने बताया कि ब्रह्मांडीय किरणों द्वारा शुरू की गई क्रियाओं की एक शृंखला के माध्यम से ऊपरी वायुमंडल में रेडियो कार्बन का उत्पादन लगातार हो रहा है। लीड्स विश्वविद्यालय के प्रोफेसर टीम हेटन का कहना है कि चरम सौर तूफानों का पृथ्वी पर भारी प्रभाव पड़ सकता है। इस तरह के तूफान हमारे बिजली ग्रिड में ट्रांसफार्मर को स्थायी रूप से नुकसान पहुंचा सकते हैं जिसके परिणामस्वरूप महीनों तक भारी और व्यापक ब्लैकआउट हो सकता है। इनसे उन उपग्रहों को भी स्थायी क्षति हो सकती है जिन पर हम सभी नेविगेशन और दूरसंचार के लिए भरोसा करते हैं। पिछले 15,000 वर्षों में ऐसे चरम नौ सौर तूफानों की पहचान हुई है। इन्हें मियाके इवेंट्स के रूप में भी जाना जाता है। विशेषज्ञों ने कभी भी मियाके घटना को क्रियान्वित होते नहीं देखा है। सूर्य के व्यवहार के बारे में अभी बहुत कुछ सीखना बाकी है। वैज्ञानिक यह भी जानना चाहते हैं कि क्या ऐसी घटनाओं की भविष्यवाणी की जा सकती है। सौर गतिविधि का प्रत्यक्ष माप 17वीं शताब्दी में सौर धब्बे (सनस्पॉट) की गिनती के साथ ही शुरू हुआ था। आजकल वैज्ञानिक जमीन-आधारित वेधशालाओं, अंतरिक्ष जांच और उपग्रहों का उपयोग करके विस्तृत रिकॉर्ड भी प्राप्त करते हैं। हालांकि ये सभी अल्पकालिक रिकॉर्ड सूर्य की पूरी समझ के लिए अपर्याप्त हैं।
सूरज के भीषण तूफान हर 100 या 200 वर्ष बाद उत्पन्न होते हैं। ध्यान रहे कि बड़े सौर तूफान चुंबकीय ऊर्जा के जमा होने से उत्पन्न होते हैं। यह ऊर्जा विकिरण के तीव्र विस्फोट के रूप में बाहर निकलती हैं। अंतरिक्ष के विषम मौसम का अध्ययन करने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि प्रचंड सौर तूफान से निपटना हमारे लिए चुनौतीपूर्ण होगा। 1889 के सौर तूफान ने यूरोप और उत्तरी अमेरिका में टेलीग्राफ के तारों को अस्त-व्यस्त कर दिया था और इससे कई जगह आग लग गई थी। इस सौर तूफान ने कनाडा के राष्ट्रीय ग्रिड के कई महत्वपूर्ण ट्रांसफार्मर उड़ा दिए थे जिससे वहां बड़ा बिजली संकट पैदा हो गया था। इस तरह के तूफान 1956, 1972, 1989 और 2003 में भी आए थे जिनसे वायुमंडल में विकिरण का स्तर बढ़ गया था। 2012 में एक विनाशकारी सौर तूफान पृथ्वी के नजदीक से गुजर गया था। यदि आज हमें 1889 जैसा तूफान झेलना पड़े तो उसका प्रभाव ज्यादा व्यापक होगा क्योंकि आज हमारे विद्युत और दूरसंचार नेटवर्क बहुत ज्यादा उन्नत हो चुके हैं।
पिछली सदी की तुलना में आज हम ऐसे तूफान के आगे ज्यादा बेबस हैं क्योंकि हमारा समस्त जीवन आधुनिक इलेक्ट्रोनिक्स पर आधारित है। सबसे पहले ऐसे तूफान की शक्तिशाली विद्युत चुंबकीय तरंगों की चपेट में दूरसंचार उपग्रह आएंगे जो हमारे इन्फ्रास्ट्रक्चर के अहम अंग हैं। इससे विद्युत ग्रिडों के अलावा मोबाइल फोन नेटवर्क को नुकसान हो सकता है। सूरज से उठने वाला तूफान अंतरिक्ष यात्रियों के लिए भी खतरा पैदा कर सकता है। हालांकि आधुनिक युग में कोई बड़ा सौर तूफ़ान नहीं आया है, हल्के सौर तूफ़ान नियमित रूप से पृथ्वी पर प्रहार करते रहते हैं। पिछले पचास वर्षों के दौरान ऐसे कई मौके आए जब सूरज से निकली विस्फोटक ऊर्जा तरंगें पृथ्वी के आसपास से गुजर गईं और हम इसके प्रभावों से बाल-बाल बच गए।
लेखक विज्ञान मामलों के जानकार हैं।