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साकार हों सपने

12:37 PM Aug 18, 2021 IST

चौदह अगस्त के दैनिक ट्रिब्यून में राजकुमार सिंह का ‘आजादी के महोत्सव में अमृत की मृगतृष्णा’ लेख में गंभीर प्रश्न यह उठाया गया है कि आजादी के अमृत महोत्सव के आयोजन का तात्पर्य यह तो नहीं कि देश की आंखों में सुखद स्वप्न भर जगाकर, इतिश्री मान ली जाए? लेखक की आकांक्षा है कि राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक आज़ादी का लाभ देश के हर आम आदमी को मिले-तब ही यह आयोजन सफल माना जा सकेगा। लोकतंत्र के शीर्ष मंदिर, हमारी भारतीय संसद में नकारात्मक कारणों से हाहाकार है। कोरोना के विषाद और समाधान नहीं बल्कि सत्ता खो देने का महाविलाप है। लेखक का मानना है कि ऐसे में सत्ता पक्ष की ज़िम्मेदारी अधिक बढ़ जाती है। पक्ष और विपक्ष में तालमेल होना अनिवार्य है। आज़ादी की पहली शर्त समानता है। आज़ादी का अमृत-महोत्सव आम आदमी की मृगतृष्णा न बनकर रह जाए, सरकार की यही कोशिश रहनी चाहिए।

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मीरा गौतम, जीरकपुर

राष्ट्रीयता का मर्म

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यह खबर देख कर कि कश्मीर तिरंगे से नहा लिया, मन प्रफुल्लित हो गया। इतनी खुशी स्वाभाविक थी क्योंकि बरसों बाद भारत सरकार के अथक प्रयास से कश्मीर में स्वतंत्रता दिवस की भावना दिखायी पड़ी। वहां के हजारों स्कूलों में, नगर निकाय से पंचायतों, लाल चौक का घंटा घर तिरंगे के रंगों से रौशन हुआ। इस बार का ध्वजारोहण कार्यक्रम सिर्फ सरकारी कार्यालयों तक ही सीमित नहीं होकर बल्कि युवाओं के बीच पूरे जुनून में था।

भगवान दास छारिया, इंदौर

अमेरिका का भस्मासुर

अमेरिका द्वारा उठाए कदमों का खमियाजा आज पूरी मानव जाति को झेलना पड़ रहा है। अफगानिस्तान की स्थिति का जिम्मेदार अमेरिका ही है। अमेरिका ने शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ के बढ़ते प्रभुत्व को रोकने के लिए आतंकी संगठनों का सहारा लिया। वर्चस्व की लड़ाई के कारण देश इतने अंधे हो चुके हैं कि किसी भी हद तक जा सकते हैं। आज वही तालिबान सभी देशों के लिए भस्मासुर साबित हो रहा है।

अजय धनगर, दिल्ली

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