दिव्यांगता को हराकर शिक्षा की ज्योति बनीं डॉ. कामना
अजय मल्होत्रा/ हप्र
भिवानी, 13 अप्रैल
इंसान के हौसले बुलंद हों तो दुनिया की कोई रुकावट उसे अपनी मंजिल पाने से नहीं रोक सकती। सौ प्रतिशत दिव्यांगता को हराकर हजारों छात्र-छात्राओं के लिए प्रेरणा स्रोत बनीं भिवानी की डॉ. कामना कौशिक इसकी मिसाल हैं। प्रदेश के प्रतिष्ठित वैश्य महाविद्यालय, भिवानी में हिंदी की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. कामना (46) ने कई चुनौतियों का मुकाबला किया।
बचपन में आसपास के एक व्यक्ति द्वारा दिव्यांगता का मजाक उड़ाये जाने से व्यथित हुईं नन्ही कामना ने संकल्प लिया कि दिव्यांगता को अपने इरादों के कभी आड़े नहीं आने देंगी। उन्होंने अपने परिजनों को भी ढाढ़स बंधाया और लगातार आगे बढ़ती रहीं। वैश्य महाविद्यालय से पहले सीएमके नेशनल महाविद्यालय, सिरसा में उन्होंने हिंदी विभागाध्यक्ष के तौर पर कार्य किया। उन्होंने डॉ. जगदीश गुप्त के काव्य में युगबोध विषय पर पीएचडी की। दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा मद्रास से डीलिट (डॉक्टरेट ऑफ लिटरेचर) का शोध कार्य सम्पन्न किया।
समाजसेवा में भी आगे, देहदान का संकल्प : जनहित व समाजसेवा की बानगी प्रस्तुत करते हुए अपनी देहदान करने की घोषणा करके भी उन्होंने एक मिसाल पेश की है। डॉ. कामना राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय सामाजिक मुद्दों पर कई संगोष्ठियों व प्रतियोगिताओं का आयोजन कर चुकी हैं। हिंदी साहित्य के विभिन्न पहलुओं और ज्वलंत मुद्दों पर राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में उनके 60 शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। उन्होंने करीब 70 सेमिनारों में पेपर प्रस्तुत किए हैं। शोध कार्य के अलावा, डॉ. कामना द्वारा संपादित पांच पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है। सामाजिक-आर्थिक सर्वे में नोडल अधिकारी के रूप में उन्होंने बेहतरीन कार्य किया और महाविद्यालय को अपनी श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ। इसके लिए महाविद्यालय को राज्य स्तरीय अवार्ड से नवाजा गया।
चला रही हैं जागरूकता अभियान : डॉ. कामना ने कोरोना महामारी के दौरान दो वर्ष मुख्य संपादिका के रूप में महाविद्यालय की पत्रिका का सफल प्रकाशन कार्य किया। इस दौरान उन्होंने स्वयंसेवकों के माध्यम से अन्न-फल एवं मास्क वितरित करने का कार्य भी किया। राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई की कार्यक्रम अधिकारी के रूप में उन्होंने विभिन्न गतिविधियों का आयोजन किया। डॉ. कामना चार अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में संपादक सदस्य का दायित्व भी निभा रही हैं। वृक्षारोपण कार्यक्रम, स्वास्थ्य जांच शिविर से लेकर नशा मुक्ति, पर्यावरण सुरक्षा, साइकिल प्रयोग, प्लास्टिक मुक्त भारत, रक्तदान-महादान, एचआईवी /एड्स जैसे मुद्दों पर कई नाटक, रैलियां, व्याख्यान, काव्य पाठ एवं पोस्टर प्रतियोगिताएं उनके दिशा निर्देश में आयोजित कर जागरूकता अभियान चलाए जा चुके हैं।
पिता के प्रोत्साहन ने दिखाई राह डॉ. कामना ने ग्रेजुएशन विज्ञान संकाय में की और हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में एमएससी, जेनेटिक्स में दाखला लिया था। लेकिन साहित्य के प्रति समर्पण व अपने मूल स्थान भिवानी में रह कर शिक्षा की अलख जगाने की चाहत ने डॉ. कामना को विज्ञान विषय छोड़ने पर मजबूर कर दिया, जबकि एमएससी के प्रथम वर्ष में उन्होंने 89 प्रतिशत अंक हासिल किए थे। डॉ. कामना का कहना है कि वह सातवीं कक्षा से लेकर ग्रेजुएशन तक आये दिन लघु कहानियां लिखती थीं, जिसके लिए उनके पिता उन्हें एक रुपया इनाम भी देते थे। यह प्रोत्साहन ही उन्हें हिंदी साहित्य की ओर खींच ले गया।