चुनावों में धनबल का वर्चस्व
अनुकूल व्यवस्था बने
रमेश चन्द्र पुहाल, पानीपत
भ्रष्टाचार की वजह
चुनाव में धनबल का प्रयोग लोकतंत्र के लिए हानिकारक है। निश्चय ही जो राजनीतिक पार्टी भारी खर्चा करेगी वो चुनाव जीतने के बाद उसकी भरपाई ईमानदारी से तो नहीं करेगी। माया के मकड़जाल से राजनीतिक पार्टियां जब तक अपने को मुक्त नहीं करती तब तक न तो देश में आर्थिक भ्रष्टाचार समाप्त होगा, न चंदे का गोरखधंधा। कुछ छोटी-मोटी राजनीतिक पार्टियों के अस्तित्व में आने का कारण न तो लोकसेवा है और न देश सेवा है। शायद उनका लक्ष्य कालेधन को सफेद करना है। चुनाव आयोग को भी चाहिए कि आम चुनाव को लंबे समय तक न खींचा जाए। लंबे समय तक राजनीतिक दल बहुत ज्यादा धनबल का प्रयोग करते हैं। इससे देश में आर्थिक भ्रष्टाचार बढ़ता जाता है।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
मतदाता जागरूक हो
सत्यप्रकाश गुप्ता, बलेवा, गुरुग्राम
योग्य को दें वोट
चुनाव लोकतंत्र की आत्मा है मगर निष्पक्ष चुनाव भी जरूरी है। जिस तरह से चुनाव में धन-बल का दबदबा बढ़ रहा है वह लोकतंत्र की भावना के विपरीत है। चुनाव में उम्मीदवार और राजनीतिक दल बढ़-चढ़कर धन-बल का प्रदर्शन करते हैं। परिणामस्वरूप मतदाता भी चुनावी भ्रष्टाचार की लपेट में आ जाता है। पूरी प्रक्रिया की निष्पक्षता ही सवालों के घेरे में आ जाती हैं। वैसे तो हर राजनीतिक दल और प्रत्याशी के लिए चुनाव में किए जाने वाले खर्च की सीमा तय है मगर उसे सीमा से कहीं अधिक धन खर्च किया जाता है। चुनाव आयोग को इस खर्च को नियंत्रित करने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। मतदाताओं को भी योग्य उम्मीदवार को ही अपना वोट देना चाहिए।
पूनम कश्यप, नयी दिल्ली
सभी दल दोषी
अमृतलाल मारू, इंदौर, म.प्र.
पुरस्कृत पत्र
मतदाता गंभीर पहल करे
चुनावों में धनबल के बढ़ते वर्चस्व ने लोकतंत्र की अवधारणा को बुरी तरह से बाधित कर दिया है। अकूत धनराशि ने समाज सुधारकों, बुद्धिजीवियों और योग्य ग़रीबों को चुनाव लड़ने के अवसरों से वंचित कर दिया है। चुनावों को धनबल के प्रभाव से मुक्ति दिलाने के मन्तव्य से 2015 में लॉ-कमिशन की सिफारिश किंतु-परंतु में उलझ कर रह गई है। चुनाव सुधार के मद्देनजर चुनाव खर्च की समस्या बहुत जटिल है। राजनीतिक दल सरकार में रहते इस समस्या के समाधान के प्रति गंभीर नहीं होते। चुनावों को इस समस्या से मुक्त कराने में मतदाता ही बढ़िया काम कर सकता है। वो भी तब जब वो राजनीतिक दलों या प्रत्याशियों द्वारा प्रस्तुत प्रलोभनों से इंकार करने का मनोबल जुटा सके।
ईश्वर चन्द गर्ग, कैथल