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दोहलीदार, बुटीमार, भोंडेदारों को मिलेगा मालिकाना हक

07:27 AM Nov 06, 2024 IST
दोहलीदार  बुटीमार  भोंडेदारों को मिलेगा मालिकाना हक
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चंडीगढ़, 5 नवंबर (ट्रिन्यू)
हरियाणा के दोहलीदार (गरीब ब्राह्मणों, पुजारियों और पुरोहितों), बुटीमार, भोंडेदार तथा मुकररीदार के लिए अच्छी खबर है। राज्य की नायब सरकार ने सरकार द्वारा दान की गई जमीन पर 20 साल या इससे अधिक समय से काबिज सभी परिवारों को मालिकाना हक देने का निर्णय लिया है। बेशक, यह फैसला पुराना है, लेकिन इसमें कई खामियां होने की वजह से दिक्कत आ रही थी। अब सरकार ने इसके नियमों में संशोधन किया है।
राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग की ओर से इस संदर्भ में संशोधित आदेश जारी किए हैं। पात्र लोगों को मालिकाना हक के लिए कलेक्टर के समक्ष करना आवेदन करना होगा। जिन परिवारों के दान की जमीन पर कब्जे के 20 साल पूरे नहीं हुए हैं, वे निर्धारित समयावधि पूरी होने के बाद आवेदन कर सकेंगे। राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय की स्वीकृति के बाद वित्तायुक्त राजस्व तथा राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग की ओर से नोटिफिकेशन जारी किया गया है।
हरियाणा दोहलीदार, बुटीमार, भोंडेदार तथा मुकररीदार (मालिकाना अधिकार निहित करना) नियम में किए संशोधन को राज्यपाल बण्डारू दत्तात्रेय मंजूरी दे चुके हैं। अधिसूचना जारी होने के साथ ही अब पात्र परिवार जमीन पर मालिकाना हक के लिए कलेक्टर के समक्ष आवेदन कर सकते हैं। मालिकाना हक मिलने से वह जमीन को आगे किसी को भी बेच सकेंगे। निजी व्यक्ति और संस्थाओं को दान में मिली जमीन बेचने पर कोई रोक नहीं रहेगी।
मनोहर सरकार के पहले कार्यकाल में दोहलीदारों, बूटीमारों, भोंडेदार व मुकररीदार को दान में मिली जमीन के मालिकाना हक को अनुचित ठहराते हुए नियम बनाया था कि इस जमीन की खरीद-फरोख्त दोहलीदार नहीं कर सकते। ऐसी जमीन पर सिर्फ काश्तकारी हो सकती है। विधानसभा में जब संशोधन विधेयक लाया गया तो कांग्रेस ने सरकार के इस फैसले का जमकर विरोध किया था।
इसके बाद 11 दिसंबर, 2022 को करनाल में आयोजित भगवान परशुराम महाकुंभ में उस समय मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने दोहलीदारों को लगभग 1700 एकड़ जमीन का मालिकाना हक दिलाने की घोषणा की थी। इसे अब अमलीजामा पहनाया जा रहा है। दरअसल पुराने समय में गरीब ब्राह्मणों, पुजारियों और पुरोहितों को फसल बोने के लिए जमीन दान में दे दी जाती थी। यह जमीन पंचायती होती थी, जिस पर उनका मालिकाना हक तो नहीं होता था, लेकिन वह फसल बोकर प्राप्त होने वाली आमदनी को अपने ऊपर खर्च करने का अधिकार रखते थे। इसी श्रेणी के लोगों को दोहलीदार कहा जाता है।

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