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सोसायटियों से लेकर राजनीति तक श्वान विमर्श

08:19 AM Feb 10, 2024 IST

सहीराम

कुत्ते को कुत्ता समझने की भूल करने वाले सावधान हो जाएं! आप अपने किसी परिचित, मित्र, रिश्तेदार, सहकर्मी और यहां तक कि अपने बॉस को भी अगर बड़ी कुत्ती चीज समझते हैं और यारों-दोस्तों के बीच कहते भी हैं तो यह आपकी मर्जी, आपका विवेक। रहा होगा वह जमाना जब आदमी को कुत्ते की गाली दी जाती थी। बताते हैं कि हमारे गरम धरमजी तो उन इंसान रूपी कुत्तों, जिनसे वे फिल्म के आखिर में निपटते थे, का खून पीने की धमकी देकर ही इस मुकाम पर पहुंचे। पर बात सिर्फ गरम धरमजी की नहीं है, उनकी भूमिका में आम इंसान भी खूब रहे जब वे गली में खड़े होकर अपने विरोधियों और पड़ोसियों से निपटा करते थे। अब जब नवधनिकों की कॉलोनियों और सोसायटियों में कुत्ते की पोटी को लेकर या उसके भौंकने या काटने पर झगड़े होते होंगे तो पता नहीं वे क्या गालियां देते होंगे। कुत्ते की तो नहीं देते होंगे। क्योंकि उस कुत्ते के लिए ही तो सारा झगड़ा होता है, जो परिवार के सदस्य की तरह होता है, पुत्रवत होता है। इन सोसायटियों में झगड़े या तो कुत्ते को लेकर होते हैं या गाड़ी को लेकर। दोनों ही स्टेट्स सिंबल हैं। वह जमाना और था साहब जब दिनकरजी जैसे बड़े कवि भी गरीबों की व्यथा को कुत्तों की अय्याशी दिखाने के जरिए ही व्यक्त करते थे- श्वानों को मिलता दूध यहां, भूखे बालक अकुलाते हैं...।
विमर्श अब श्वानों को मिलने वाले दूध से आगे बढ़कर उनको मिलने वाले बिस्कुटों तक पहुंच गया है। उम्मीद करनी चाहिए कि पेडीगरी ही नहीं छप्पन भोग तक भी जाएगा। वैसे भी कुत्ता विमर्श अब वर्ग विभाजन से आगे बढ़कर राजनीति में प्रवेश कर चुका है। गली के कुत्ते को आप रोटी का टुकड़ा फेंक कर खुश कर सकते थे। अलबत्ता अब, कुछ जंतु-प्रेमी कुत्तों को बिस्कुट खिलाते ही पाए जाते हैं। वे रोटी वाले वर्ग से नहीं आते न, बिस्कुट वाले वर्ग से आते हैं। लेकिन राजनीति में रोटी का टुकड़ा काम नहीं आने वाला। रोटी से सिर्फ वोटर टाइप इंसानों को खुश किया जा सकता है। पर वोटिंग के टाइम पर तो उसे भी बोतल मुर्गा सब चाहिए। खैर जी, हम बात कर रहे थे कि कुत्ता विमर्श अब राजनीति में प्रवेश कर चुका है। पिछले दिनों राहुल गांधीजी के विरोधियों ने फिर से उनके कुत्ता प्रेम का फायदा उठाते हुए अनर्गल बयानबाजी की। अब नेताओं को कुत्तों के साथ फोटो खिंचवाते हुए सावधानी तो बरतनी पड़ेगी। और सावधानी तो कुत्ते को कुत्ता समझने को लेकर भी रहे तो ही अच्छा।

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