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कांग्रेस में विधायक दल के नेता को लेकर विवाद, दिल्ली में चल रहा घमासान

07:14 AM Nov 11, 2024 IST

दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 10 नवंबर
हरियाणा में कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) के नेता को लेकर पार्टी में अंदरखाने बड़ा घमासान मचा हुआ है। पार्टी नेतृत्व को भी सीएलपी लीडर का फैसला करने में पसीने छूट रहे हैं। हालांकि केंद्रीय पर्यवेक्षकों द्वारा हरियाणा के सभी 37 विधायकों के साथ वन-टू-वन मीटिंग के लिए फीडबैक लिया जा चुका है। पार्टी की ओर से एक लाइन का प्रस्ताव पास करके सीएलपी लीडर का फैसला नेतृत्व पर ही छोड़ा हुआ है। लेकिन करीब एक महीना होने को है, लेकिन अभी तक विधायक दल के नेता का फैसला नहीं हो पाया है।
प्रदेश में नब्बे सीटों के लिए 5 अक्तूबर को चुनाव हुआ था और 8 अक्तूबर को नतीजे घोषित हुए थे। भाजपा ने 48 सीटों के पूर्ण बहुमत के साथ लगातार तीसरी बार सत्ता हासिल की है। वहीं कांग्रेस राज्य की भाजपा सरकार की दस वर्षों की एंटी-इन्कमबेंसी और कांग्रेस के प्रति दिखे पॉजिटिव माहौल के बावजूद 37 सीटों पर सिमट गई। इस बार विधानसभा में 70 से अधिक सीटें पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा की पसंद से दी गई थी। इस बात को लेकर एंटी हुड्डा खेमे ने चुनावों के दौरान भी नाराजगी जताई थी। चुनावी नतीजों के बाद एंटी हुड्डा खेमा पूरी तरह से लामबंद हो चुका है। इतना ही नहीं, विधायक दल के नेता को लेकर भी एंटी हुड्डा खेमा पूरी फील्डिंग लगा चुका है। माना जा रहा है कि इसी विवाद के चलते केंद्रीय नेतृत्व को विधायक दल के नेता का फैसला करने में देरी हो रही है। दिल्ली से जुड़े सूत्रों का कहना है कि सीएलपी लीडर और प्रदेशाध्यक्ष पद को लेकर जातिगत समीकरणों के चलते भी देरी हो रही है। इस तरह की भी खबरें हैं कि मौजूदा प्रदेशाध्यक्ष चौ़ उदयभान को भी बदला जा सकता है।
2005 ये 2014 तक लगातार करीब दस वर्षों तक सत्ता में रही कांग्रेस को 2014 के चुनावों में महज पंद्रह सीटों पर जीत हासिल हुई। उस समय पार्टी ने पूर्व मंत्री किरण चौधरी को कांग्रेस विधायक दल का नेता बनाया। हालांकि 2019 के लोकसभा व विधानसभा चुनावों के दौरान जब इनेलो में बिखराव हो गया और कुलदीप बिश्नोई ने अपनी हजकां का कांग्रेस में विलय कर दिया तो कांग्रेस 17 विधायकों के साथ प्रमुख विपक्षी दल बन गई। ऐसे में किरण की जगह पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा को विधायक दल का नेता बनाया गया। उस समय प्रदेशाध्यक्ष डॉ़ अशोक तंवर की जगह भी पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी। 2019 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 31 सीटों पर जीत हासिल की और प्रमुख विपक्षी दल बनकर उभरी। हुड्डा लगातार पांच वर्षों तक विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे। इसके बाद इस बार के लोकसभा व विधानसभा चुनावों में अधिकांश सीटों पर हुड्डा की पसंद से ही चेहरे उतारे गए।
इसके बाद भी कांग्रेस 37 सीटों पर सिमट गई। टिकट आवंटन को लेकर हुड्डा व एंटी हुड्डा खेमे में पहले भी विवाद हो चुका है। अब सीएलपी लीडर को लेकर घमासान मचा है। इतना ही नहीं, प्रदेशाध्यक्ष को बदलवाने के लिए भी एंटी हुड्डा खेमा नई दिल्ली में लॉबिंग कर रहा है। यह देखना रोचक रहेगा कि कांग्रेस नेतृत्व सीएलपी लीडर और प्रदेशाध्यक्ष पद पर इस बार भी हुड्डा की पसंद से फैसला करता है या फिर एंटी हुड्डा खेमा बाजी मारने में कामयाब होता है।

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13 से शीत सत्र लेकिन नेता विपक्ष की घोषणा अभी तक नहीं
हरियाणा विधानसभा का शीतकालीन सत्र 13 नवंबर से शुरू होगा। 18 नवंबर तक चलने वाले इस सत्र के दौरान सरकार की ओर से विधानसभा में कई अहम आर्डिनेंस और विधेयक पेश किए जाएंगे। हालांकि इस सत्र में प्रश्नकाल नहीं होगा लेकिन फिर भी विधायकों द्वारा कई मुद्दों को सदन में उठाया जा सकता है। कांग्रेस नेतृत्व पर अब विधायक दल के नेता का फैसला करने का दबाव बढ़ गया है। अगर 13 नवंबर तक भी इसका फैसला नहीं होता है तो इस शीतकालीन सत्र बिना नेता प्रतिपक्ष के चलेगा।
कांग्रेस में पहली बार हो रही इतनी ज्यादा देर
इससे पहले 2005 व 2009 में भूपेंद्र सिंह हुड्डा को विधायक दल का नेता चुना गया था। 2014 में किरण चौधरी विधायक दल की नेता बनीं। वहीं 2019 में फिर से भूपेंद्र सिंह हुड्डा सीएलपी लीडर बने। वे पांच वर्षों तक विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे। इन चारों ही मौकों पर पार्टी को विधायक दल का नेता चुनने में पंद्रह दिन के आसपास ही लगे। लेकिन यह पहला मौका है जब चुनावी नतीजों के एक माह बाद तक भी पार्टी सीएलपी का नेता नहीं बना पाई है।

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