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चरचा हुक्के पै

10:05 AM Jun 24, 2024 IST
चरचा हुक्के पै
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ताऊ और पंडितजी

अपने सांघी वाले ताऊ और करनाल वाले बड़े पंडितजी के बेटे की ‘दोस्ती’ किसी से छुपी नहीं है। पंडितजी लोकसभा में अपने ‘युवराज’ के टिकट के लिए भाग-दौड़ कर रहे थे, लेकिन बात नहीं बन पाई। ऐसे में ताऊ के साथ पंडितजी की नाराजगी की खबरें भी सुर्खियां बनी रहीं। चुनाव के बाद पंडितजी कई दिनों के लिए विदेश चले गए। इसी दौरान, उनके भाजपा में शामिल होने की खबरें चर्चाओं में आ गईं। स्वदेश लौटते ही पंडितजी ने ताऊ के साथ स्टेज शेयर किया। साथ ही, सफाई देते हुए कहने लगे- 'मैं मर तो सकता हूं, लेकिन कांग्रेस नहीं छोड़ सकता।' सांघी वाले ताऊ को अपना दोस्त बताते हुए कहा- ये मेरा हाथ भी छोड़ दें, मैं कभी नहीं छोड़ूंगा। फिर क्या था। ताऊ भी पूरे जोश में आ गए। चर्चाओं पर विराम लगाते हुए पंडितजी से ही वादा ले लिया कि वे कभी कांग्रेस नहीं छोड़ेंगे। कहने लगे- 'मैं जिसका हाथ एक बार पकड़ लेता हूं, फिर छोड़ता नहीं। पंडितजी कोशिश भी करेंगे तो नहीं छोड़ूंगा।' ताऊ और पंडितजी का यह संवाद सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ।

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ट्रांसफर का इंतजार

लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद ‘काका’ और अपने ‘दाढ़ी’ वाले नये ‘बड़े साहब’ ने चुनाव में अधिकारियों व कर्मचारियों की भूमिका पर बड़े सवाल उठाए। नतीजों के तुरंत बाद तीन-चार कर्मचारियों को सस्पेंड भी किया गया, लेकिन इसके बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया। सिविल और पुलिस प्रशासन में बड़े बदलाव के आसार थे। सीएमओ (मुख्यमंत्री कार्यालय) में इसके लिए लंबी-चौड़ी कवायद भी होने की सूचना है। लेकिन मामला अधर में लटक गया। पिछले कई दिनों से राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में तबादलों का इंतजार है। बताते हैं कि लिस्ट तैयार है, लेकिन उस पर अभी तक हरी झंडी नहीं मिली है। स्टाफ के लोग भी ग्रीन सिग्नल का इंतजार कर रहे हैं। जैसे ही स्वीकृति मिलेगी, तुरंत लिस्ट जारी कर दी जाएगी। खबरें इस तरह की भी हैं कि लिस्ट में शामिल कुछ अधिकारियों के नामों को लेकर सहमति नहीं बन पा रही है।

भाजपा की ‘किरण’

कांग्रेस की ‘किरण’ अब भाजपा की हो चुकी हैं। ‘हाथ’ क्या छोड़ा ‘हायतौबा’ मच गई। अपने कांग्रेस वाले प्रधानजी ने भी पूरी भड़ास निकाली। बात राज्यसभा चुनाव तक की उठ गई। इसी चुनाव में तो बड़ा ‘कांड’ हुआ था। भजनलाल पुत्र कुलदीप बिश्नोई ने तो खुलेआम क्रॉस वोटिंग की थी, लेकिन एक अन्य जो वोट रद्द हुई थी, उस पर सस्पेंस ही बना रहा। कांग्रेस वाले प्रधानजी ने जब राज्यसभा चुनाव को लेकर किरण पर उंगलियां उठाईं तो उन्होंने भी पलटवार किया। दशकों पुराने घटनाक्रम को ताजा करने में उन्होंने एक पल की देरी नहीं की। कहने लगीं- मुझ पर आरोप लगाने वाले अपने गिरेबान में झांक कर देखें। हर कोई यह जानता है कि देश में ‘आयाराम-गयाराम’ की संस्कृति कहां से, कैसे और किनके परिवार के लोगों ने शुरू की थी। नेताओं के इस वाकयुद्ध का दोनों ही पार्टियों के नेता-कार्यकर्ता ही नहीं आम लोग भी मजे ले रहे हैं।

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काका की छतरी

‘काका’ ने अपनी ‘छतरी’ खोली हुई है। प्रदेश के तीनों ‘लाल’ परिवारों के सदस्यों को भाजपा के झंडे तले लाने का श्रेय पूरी तरह से ‘काका’ को ही जाता है। यह कोई संयोग या सामान्य घटना नहीं है कि आज तीनों ‘लाल’ परिवारों के ‘लाल’ भाजपा वाले ‘लाल’ यानी ‘काका’ की ‘छतरी’ के नीचे आ चुके हैं। अब कहने वाले तो यहां तक कह रहे हैं कि ‘काका’ ने जब सूबे की ‘चौधर’ संभाली थी तो उसी समय उन्होंने यह मन बना लिया था कि कुछ भी करके तीनों ‘लालों’ के ‘लाल’ भगवा रंग में रंगने हैं। अगर यह सही है तो ‘काका’ अपने इस मिशन में पूरी तरह से कामयाब रहे हैं। शुरुआती दिनों में काका को राजनीतिक तौर पर अनुभवहीन बताने वाले लोग भी अब हैरान हैं। अब वे समझ चुके हैं कि काका और उनके प्लान को हल्के में लेना उन्हें महंगा पड़ सकता है।

ताऊ की ब्राह्मण नीति

सांघी वाले ताऊ को यह बात अच्छे से समझ में आ गई है कि राजनीति में ब्राह्मण वोट बैंक का बड़ा असर और महत्व है। ऐसे में इस वोट बैंक को साधने के लिए हर कोशिश कर रहे हैं। जुगत लगाई जा रही है। गुड़गांव वाले ‘हेवीवेट’ पंडितजी के पूरे प्रदेश में सक्रिय होने से तो इसी तरह के संकेत मिल रहे हैं। माना जा रहा है कि ताऊ ने पार्टी के अधिकांश ब्राह्मण चेहरों को एक्टिव कर दिया है। गुड़गांव वाले ‘बड़े कद’ के ‘छोटे प्रधानजी’ कैथल, कुरुक्षेत्र, सिरसा, हिसार, फतेहाबाद व दादरी सहित अन्य जिलों में समाज के मौजिज लोगों के साथ मेल-मिलाप बढ़ाने में जुटे हैं। बड़े कार्यक्रम की बजाय सुख-दुख और चाय-पानी के कार्यक्रम के जरिये अंदरखाने माहौल बना रहे हैं। अब यह देखने वाली बात होगी कि नेताजी इसमें कितना कामयाब हो पाते हैं।

कांग्रेसियों का दर्द

कांग्रेस की एक वरिष्ठ नेत्री के पार्टी छोड़ने का कुछ लोगों पर जरा भी असर नहीं है। वहीं, कुछ इस घटनाक्रम से पीड़ित हैं। सिरसा वाली बहनजी इस घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बता रही हैं। वे कह रही हैं कि ऐसा नहीं होना चाहिए था। पार्टी में अगर उन्हें मान-सम्मान मिलता तो वे ऐसा कभी नहीं करतीं। वहीं, गुड़गांव वाले कप्तान साहब का भी दर्द छलका है। वे भी किरण के कांग्रेस छोड़ने की घटना से हताश हैं। साथ ही, सिरसा वाली बहनजी के सुर में सुर मिलाते हुए कह दिया है कि अगर टिकट वितरण सही से होता तो यह नौबत नहीं आती। कांग्रेस और भी अधिक सीटें जीत सकती थी।
-दादाजी

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