ऊर्जावान काका
अपने ‘काका’ की ‘ऊर्जा’ कम नहीं हो रही है। 12 मार्च को ‘काका’ ने जब प्रदेश की सबसे बड़ी ‘कुर्सी’ छोड़ी तो उनके विरोधियों ने कई तरह का प्रचार भी किया। विरोधियों की यह खुशी कुछ घंटे ही उनके चेहरों पर रह पाई। चूंकि एक दिन बाद ही यानी 13 मार्च को काका को करनाल से लोकसभा चुनाव लड़वाने का फैसला पार्टी नेतृत्व ने ले लिया। यह बात उसी दिन तय हो गई थी कि करनाल से टिकट देकर दिल्ली वाले ‘बड़े साहब’ ने अपने पुराने सखा के लिए कुछ अच्छा ही सोचा है। अच्छे मार्जन के साथ चुनाव में जीत हासिल करने के बाद केंद्रीय मंत्रियों की ओथ में जिस तरह से मनोहर लाल की वरिष्ठता का ख्याल रखा गया, वह राजनीतिक व प्रशासनिक गलियारों में चर्चाओं का केंद्र बना रहा। उन्हें जिस तरह से हेवीवेट मंत्रालय मिले हैं, उससे उनका राजनीतिक कद भी बढ़ा है। आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय के साथ ‘काका’ को पावर (बिजली) मंत्रालय भी मिला है। यानी काका के पास ‘ऊर्जा’ फिर से लौट आई है।
छुट्टी की कहानी
हरियाणा पुलिस के ‘बड़े साहब’ की लम्बी छुट्टी सोशल मीडिया पर सुर्खियां बटोर रही है। अफसरशाही में भी इसकी चर्चा बनी हुई है। कुछ लोग कह रहे हैं कि चार दिन की छुट्टी पर गए हैं तो कुछ ने चालीस दिन बताए। इसके पीछे कहानी कुछ और ही बताई जा रही है। दरअसल, हरियाणा में आईएएस और आईपीएस लॉबी में लम्बे समय से टकराव चल रहा है। काका के इस्तीफे के बाद बदले हुए राजनीतिक हालात और नई सरकार के चलते इस चर्चा ने जोर पकड़ा। ‘बड़े साहब’ को ‘काका’ का भरोसेमंद अफसर माना जाता है। बताते हैं कि खाकी वाले साहब की सख्ती के चलते एक लॉबी उनके पीछे पड़ी है। इस तरह की भी खबरें हैं कि ‘बड़े साहब’ को ‘धरपकड़’ का जिम्मा फिर से सौंपने की चर्चा थी। इसी के दौरान उनके लम्बी छुट्टी पर जाने की खबरें सोशल मीडिया पर वायरल हुई।
नायाब ओपनिंग
हरियाणा में दाढ़ी वाले ‘बड़े साहब’ लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद विधानसभा चुनाव की पिच पर उतर चुके हैं। ओपनिंग कर रहे बड़े साहब के ‘नायाब’ फैसले भी चर्चाओं में आ रहे हैं। गरीब परिवारों को बिजली बिलों पर मासिक फिक्स राशि में छूट देकर बड़े वोट बैंक को साधने की कोशिश की है। प्रॉपर्टी आईडी और परिवार पहचान-पत्र की त्रुटियों की वजह से लोगों की नाराजगी को भी वे भांप चुके हैं। इसलिए फील्ड के अधिकारियों को दो-टूक कहा है कि वे लोगों की सुनवाई करें और उनकी समस्याओं का समाधान सुनिश्चित करें। चंडीगढ़ में रोजाना रिपोर्ट तलब की जा रही है। बताते हैं कि आने वाले दिनों में कुछ और भी बड़े और ‘नायाब’ फैसले हो सकते हैं। हों भी क्यों ना, विधानसभा के चुनाव जो नजदीक हैं। करीबियों का कहना है कि इस तरह की प्लानिंग की जा रही है कि विपक्ष के पास चुनावों में कहने के लिए कुछ बचे ही ना।
बहनजी के तेवर
सिरसा वाली ‘बहनजी’ के तीखे तेवर कांग्रेस के साथ दूसरे दलों के नेताओं व कार्यकर्ताओं में भी चर्चाओं में हैं। कांग्रेसियों का एक खेमा जहां लोकसभा की दस में से पांच सीटों पर जीत के बाद जश्न मना रहा है। वहीं ‘बहनजी’ ने नतीजों के साथ-साथ प्रत्याशियों के चयन पर सवाल उठाकर नई बहस को जन्म दे दिया है। विधानसभा के चुनावों में अब अधिक समय नहीं है। बेशक, कांग्रेस नेताओं की गुटबाजी और आपसी खिंचतान नई नहीं है। कांग्रेसियों की गुटबाजी कभी से चली आ रही है। लेकिन जिस तरह से एसआरके खेमे के नेताओं ने तेवर कड़े किए हैं, उससे स्पष्ट है कि विधानसभा चुनावों तक कांग्रेसियों की ‘जंग’ थमने की बजाय और बढ़ने वाली है। वहीं ‘प्रधानजी’ ने ‘बहनजी’ पर पलटवार करके साफ कर दिया है कि चुप वे भी नहीं बैठने वाले हैं। लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद यह शुरुआत भर है। आने वाले दिनों में दिग्गजों का यह टकराव और भी बढ़ा हुआ देखने को मिलेगा।
भर्तियों का दौर
राज्य सरकार ने पचास हजार से अधिक पदों पर भर्तियां करने का ऐलान कर दिया है। सरकार की कोशिश विधानसभा चुनावों से पहले इसकी प्रक्रिया शुरू करने और इसे सिरे चढ़ाने की है। ‘काका’ की तर्ज पर अब ‘नायब’ सरकार भी भर्तियों में ‘मिशन मैरिट’ का दम भर रही है। बेशक, इसमें कोई दो-राय नहीं है कि लोकसभा चुनावों के दौरान भी गांवों में नौकरियों का मुद्दा गरमाया रहा। सवाल सबसे बड़ा यह है कि तीन से चार महीने के शॉर्ट पीरियड में सरकार पचास हजार पदों पर भर्ती प्रक्रिया को सिरे भी चढ़ा पाएगी या नहीं। आर्थिक व सामाजिक आधार पर गरीब परिवारों के अभ्यर्थियों को अतिरिक्त अंकों के फैसले पर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट सरकार को झटका दे चुका है। ऐसे में अब ‘नायब’ सरकार को दोहरे मोर्चे पर जंग लड़नी होगी। पहला मोर्चा हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में ‘जंग’ लड़ना है और दूसरा मोर्चा है नई भर्तियों को समय रहते सिरे चढ़ाना।
-दादाजी