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चरचा हुक्के पै

07:23 AM Nov 11, 2024 IST

मैं हूं ना...
हरियाणा में तीसरी बार बनी भाजपा सरकार को नान-स्टॉप चलाने के लिए आतुर मंत्रियों की उत्सुकता खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही। प्रदेश में ‘सुपर बॉस’ को आलाकमान द्वारा बैकफुट पर भेजे जाने के बाद ‘फ्रंट फुट’ पर खेल रहे ‘नायाब’ मुख्यमंत्री अपने पत्ते ही नहीं खोल रहे हैं। सरकार अपने 30 दिन पूरे करने की तरफ बढ़ रही है, लेकिन सचिवालय में बाबुओं की नियुक्तियां अधर में लटकी हैं। अधिकांश मंत्रियों के प्राइवेट सेक्रेटरी लगने के लिए तड़प रहे सचिवालय के अनुभवी लोगों की धड़कनें तेज हो रही हैं। हालांकि मंत्रियों के यहां निजी स्टाफ के तौर पर अधिकारी और कर्मचारी बैठ चुके हैं। लेकिन कइयों को अभी भी नियुक्ति आर्डर जारी होने का इंतजार है। बेशक, मंत्रियों की ओर से उन्हें इसके लिए आश्वस्त किया जा चुका है, जब उनके बॉस से ही ‘मैं हूं ना’ वाली बात आ चुकी है तो बाबू लोगों को भी लगता है कि देर-सवेर आर्डर भी जारी हो ही जाएंगे।

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नियुक्तियों पर मंथन
नायब सरकार के गठन के बाद सीएमओ के अलावा बोर्ड-निगमों में भी बड़ी नियुक्तियां होनी हैं। राजनीतिक एडजस्टमेंट के लिए बड़ी संख्या में भाजपा दिग्गज लॉबिंग करने में जुटे हैं। हारे हुए मंत्री व विधायक ही नहीं, वे लोग भी अब ‘चेयरमैनी’ की जुगत में हैं, जिनका टिकट विधानसभा में कट गया था। बताते हैं कि चुनाव के दौरान कई ‘बागियों’ को इसी शर्त पर मनाया गया था कि सरकार बनने के बाद उनकी एडजस्टमेंट होगी। लेकिन अब जिस तरह से पूरा कंट्रोल ‘दिल्ली’ के हाथों में दिख रहा है, उससे इन नेताओं की भी धड़कनें बढ़ी हुई हैं। दिल्ली वाले ‘बड़े साहब लोगों’ की अपनी ही प्लानिंग है। वे आज की सरकार की बजाय ‘भविष्य की राजनीति’ के हिसाब से फैसला लेने के मूड में हैं। ऐसे में राजनीतिक एडजस्टमेंट में उन नेताओं को तवज्जो मिल सकती है, जिनमें पार्टी ‘भविष्य’ देख रही है। यानी युवाओं को तरजीह मिल सकती है और कई दिग्गज एक बार फिर ‘साइड लाइन’ किए जा सकते हैं।

संघ की रहेगी ‘नज़र’
मंत्रियों के साथ 50 हजार रुपये लगभग मासिक वेतन वाले एक ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति के नियम हैं, जो मंत्री की पसंद का होता है। यह व्यक्ति सरकारी कर्मचारी भी हो सकता है और कोई प्राइवेट भी। इसके लिए बहुत अधिक योग्यता की भी जरूरत नहीं होती। आमतौर पर मंत्री अपने राजनीतिक कामकाज देखने के लिए ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति अपने साथ करते हैं, जो उनका ‘हमराज’ भी होता है। पता लगा है कि अब इस पद पर भी मंत्रियों की नहीं चलेगी। एक तरह से ‘राजनीतिक’ इस पद पर संघ पृष्ठभूमि के लोगों की पोस्टिंग होगी। बताते हैं कि दिल्ली के स्तर पर ही इस पद पर होने वाली नियुक्ति को लेकर मंथन चल रहा है। यानी मंत्रियों पर भी संघ की पूरी ‘नज़र’ रहने वाली है। जब संघ पृष्ठभूमि का व्यक्ति मंत्री के कार्यालय में तैनात होगा, तो स्वाभाविक है कि हर फैसले और फाइल पर भी उनकी पैनी नज़र रहेगी। यानी अब ‘भाई लोगों’ को बड़ा संभल कर चलना होगा।

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बलि का बकरा
कहते हैं, राजनीति में उतार-चढ़ाव और हार-जीत सामान्य है। पता नहीं क्यों, अपने कांग्रेस वाले भाई लोग इस बार विधानसभा चुनाव में हुई हार को पचा नहीं पा रहे हैं। बड़ी संख्या में हारे हुए प्रत्याशी ईवीएम पर हार का ठीकरा फोड़ रहे हैं। कोर्ट में चुनौती देने की बात भी कही जा रही है। फैक्ट फाइंडिंग कमेटी भी अपनी रिपोर्ट दे चुकी है। इस मंथन से कुछ निकलेगा, इसके कम ही आसार हैं। लेकिन ‘भाई लोगों’ ने ‘बलि का बकरा’ तलाशना शुरू कर दिया है। पिछले कुछ दिनों से जिस तरह से हरियाणा प्रभारी के खिलाफ मोर्चाबंदी शुरू हुई है, उससे तो इसी तरह के संकेत मिले हैं कि अब हार के लिए इन साहब को ‘जिम्मेदार’ ठहराया जा सकता है। हालांकि टिकट आवंटन के दौरान ये नेताजी एंटी-खेमे के रडार पर थे। लेकिन अब प्रधानजी से लेकर कई छोटे-बड़े नेता यह बताने, जताने और मनवाने की कोशिश में जुटे हैं कि प्रभारी की कार्यशैली सही नहीं रही।

हो गई छुट्टी
जींद वाले कांग्रेसी प्रवक्ता यानी ‘पंडितजी’ की भी पार्टी से छुट्टी हो गई है। पिछले दो-तीन दिनों से वे कांग्रेस विधायक दल के नेता को लेकर बयानबाजी कर रहे थे। अपने प्रधानजी ने उनकी बातों को ‘दिल’ पर ले लिया। हालांकि प्रधानजी भी अभी तक संगठन का गठन नहीं कर पाए हैं। हालांकि मीडिया में पार्टी की बात रखने के लिए प्रवक्ता व पैनलिस्ट आदि की नियुक्ति की गई थी। मीडिया चीफ ने भी स्पष्ट कर दिया है कि बयानबाजी करने वाले जींद के पंडितजी पार्टी के अाधिकारिक प्रवक्ता ही नहीं हैं। इसी वजह से प्रधानजी ने जींद वाले कथित प्रवक्ता को छह वर्षों के लिए कांग्रेस से निष्कासित करने के आदेश जारी कर दिए हैं। जींद वाले कथित प्रवक्ता ने मीडिया में बयान दे दिया था कि सीएलपी लीडर के लिए केवल दो ही नामों पर चर्चा हो रही है। इनमें एक अशोक अरोड़ा और दूसरे चंद्रमोहन बिश्नोई हैं। बताते हैं कि यही बात खटक गई।

संकल्प-पत्र पर काम शुरू
भाजपा ने हालिया विधानसभा चुनाव में किए चुनावी वादों यानी ‘संकल्प-पत्र’ को धरातल पर उतारने की कवायद शुरू कर दी है। सीएमओ में उन चुनावी वादों को लेकर मंथन शुरू भी हो चुका है, जिन्हें अगले कुछ दिनों में ही पूरा किया जाना है। दरअसल, अपने दाढ़ी वाले ‘बड़े साहब’ चाहते हैं कि सरकार के 100 दिन पूरे होने पर जब वे जनता व मीडिया के बीच जाएं तो उनके पास बताने को बहुत कुछ हो। पिछले सप्ताह स्वास्थ्य विभाग की समीक्षा बैठक में डायलिसिस, मोतियाबिंद ऑपरेशन को लेकर दो बड़े फैसले लेकर उन्होंने इसके संकेत भी दे दिए। बताते हैं कि बहन-बेटियों को 2100 रुपये मासिक आर्थिक मदद वाली योजना पर भी अंदरखाने काम शुरू हो चुका है।
-दादाजी

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