चरचा हुक्के पै
अब शाही सरकार
हरियाणा में लगातार तीसरी बार सत्ता में आई भाजपा सरकार में इस बार ‘शाही’ झलक देखने को मिलेगी। कैबिनेट गठन में इसके स्पष्ट संकेत मिल चुके हैं। अब मंत्रियों के विभागों के बंटवारे में भी ऐसा ही कुछ देखने को मिलेगा। अपने ‘दाढ़ी वाले नेताजी’ विभागों के बंटवारे पर चर्चा के लिए नई दिल्ली पहुंचे हुए हैं। उनकी कई केंद्रीय नेताओं के साथ मुलाकात भी हुई है। बताते हैं कि सात-आठ मंत्री भी विभागों की लॉबिंग के लिए दिल्ली में अपने ‘आकाओं’ से मुलाकात कर चुके हैं। मनोहर पार्ट-।। के मुकाबले इस बार कैबिनेट में शामिल चेहरों में कई मजबूत और अनुभवी हैं। यह भी कह सकते हैं कि कैबिनेट में ‘शाही’ झलक के साथ-साथ पूरा बैलेंस भी बनाया गया है।
दादा को नहीं मिली ‘खीर’
भाजपाई से कांग्रेसी, कांग्रेसी से जजपाई और इस बार फिर से भाजपाई हुए बड़े कद वाले पंडित जी यानी ‘दादा’ को इस बार भी ‘खीर’ नहीं मिल पाई। दादा का हलका भी बदल दिया गया। वे ‘रिमोट’ एरिया में जाकर भी चुनाव जीत गए। तीन बार के विधायक ‘दादा’ को इस बार कैबिनेट में जगह मिलने की पूरी उम्मीद थी। लेकिन दादा इस बार भी चूक गए। कैबिनेट गठन के बाद ‘दादा’ के कई फोटो और वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुए हैं। एक वीडियो में वे यह कहते सुनाई व दिखाई दे रहे हैं कि कहां है खीर है। कहा था खीर बनाई है लेकिन हमें तो मिली नहीं। बिना लाग-लपेट के अपनी बात रखने वाले ‘दादा’ की खासियत यह है कि वे दिल के साफ हैं और जो बोलते हैं मन से बोलते हैं। इस वजह से उनकी पूर्व की गठबंधन सरकार में ‘बड़े कद’ वाले ‘छोटे सीएम’ के साथ भी नहीं बन पाई थी।
दाढ़ी वाले बाबा
अपने अंबाला कैंट वाले ‘दाढ़ी वाले बाबा’ यानी ‘गब्बर’ इस बार बदले-बदले नज़र आ रहे हैं। नायब सरकार के पहले कार्यकाल में वे कैबिनेट में नहीं आए। इस बार उनकी वरिष्ठता का ख्याल रखते हुए भाजपा ने सीएम के बाद उनकी ओथ करवाई है। ‘काका’ के समय में कई मुद्दों पर सीएमओ से भी टकरा चुके ‘गब्बर’ ने जिस दरियादिली और जोश के साथ ‘दाढ़ी वाले बड़े साहब’ का स्वागत किया, उससे इस तरह के संकेत भी मिले हैं कि बाबा अब सिस्टम से खुश हैं। उन्हें यह भी लगता है कि ‘काका’ के राज में उनके कद के हिसाब से उनका मान-सम्मान नहीं हुआ लेकिन इस बार प्रोटोकॉल का पूरा ख्याल सरकार रखेगी। वैसे बाबा को भी समझा दिया गया है कि इस बार ‘पंगा’ लेने से काम भी नहीं चलेगा। चूंकि सरकार की मॉनिटरिंग ‘शाही’ तरीके से हो रही है।
निर्दलीय खाली हाथ
भाजपा के खुद के 48 विधायक होने की वजह से वह बहुमत के आंकड़े से आगे हैं। ऐसे में किसी सहयोगी की जरूरत नहीं है। फिर भी तीनों ही निर्दलीय विधायकों ने बिना शर्त के सरकार को समर्थन देने का ऐलान कर दिया है। भाजपा ने भी 48 की बजाय 51 विधायकों के साथ सरकार का गठन किया है। निर्दलीय विधायकों को उम्मीद थी कि सरकार में उन्हें भी जिम्मेदारी मिलेगी, लेकिन ऐसा कुछ हो नहीं पाया। वे खाली हाथ ही रह गए। हालांकि अभी सरकार में बहुत कुछ बचा है। ऐसे में निर्दलीय ‘भाई लोग’ भी उम्मीद पर कायम हैं। कुछ नहीं भी मिलेगा तो भी वे संतुष्ट ही नजर आएंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि निर्दलीय चुनाव लड़ने के दौरान लोगों से जो वादे किए हैं, उन्हें पूरा करने के लिए सरकार का सहयोग उन्हें हर पल चाहिए होगा।
दोनों ‘पावर सेंटर’ खाली
पिछले 20 वर्षों तक सत्ता के पावर सेंटर रहे दोनों जिले – रोहतक व करनाल इस बार सरकार में साझीदार नहीं हैं। रोहतक से तो भाजपा का कोई विधायक नहीं बन पाया। लेकिन करनाल की पांचों सीटों पर कमल खिलने के बाद भी यहां के किसी विधायक को कैबिनेट में जगह नहीं मिल पाई। 2005 से 2014 तक सांघी वाले ताऊ की वजह से रोहतक और फिर 2014 से 2024 तक ‘काका’ की वजह से करनाल पावर सेंटर बना रहा। इस बार पावर सेंटर कुरुक्षेत्र जिला बन गया है। हालांकि कुरुक्षेत्र जिले की चार में से तीन सीटों पर ‘हाथ’ मजबूत रहा लेकिन फिर भी प्रदेश की सबसे बड़ी ‘कुर्सी’ इसी जिले के हाथ आई है।
चाचा-भतीजा को संजीवनी
कांग्रेस को उम्मीद के हिसाब से चुनावों में जीत हासिल नहीं हो पाई। एग्जिट पोल के साथ सभी प्रकार के सर्वे भी फेल हो गए। भाजपा ने जीत की हैट्रिक लगाते हुए तीसरी बार पूर्ण बहुमत से सरकार भी बना ली। चाचा-भतीजा की पार्टी को उम्मीद के हिसाब से चुनाव नतीजे नहीं मिले। लेकिन भाजपा की सरकार बनने को उनके समर्थक चाचा-भतीजा की पार्टियों के लिए ‘संजीवनी’ मानकर चल रहे हैं। उन्हें लगता है कि कांग्रेस की सरकार बनती तो सांघी वाले ताऊ या उनके सांसद पुत्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बन जाते। अब भाजपा के सरकार बनाने से चाचा-भतीजा को लगता है कि उनसे दूर हुआ जाट वोट बैंक फिर से उनके साथ जुड़ सकता है। यानी अब दोनों ने 2029 के लिए प्लानिंग करनी शुरू कर दी है।
‘सरदारी’ कब तक
कांग्रेस वाले ‘प्रधानजी’ की ‘सरदारी’ पर बड़ी तलवार लटकी है। हरियाणा के गुजराती प्रभारी ने तो बीमारी के ‘बहाने’ भविष्य में अपनी ‘महत्वपूर्ण’ और ‘संघर्षपूर्ण’ सेवाएं देने से खुद को बेबस करार दे दिया है। प्रदेश वाले ‘नेताजी’ ने हार के लिए ईवीएम को जिम्मेदार ठहरा दिया है। इस बात पर कोई चर्चा करने को राजी नहीं है कि पिछले 10 वर्षों से भी अधिक समय से बिना संगठन के काम करने की वजह से भी चुनावों में नुकसान हुआ है। वैसे भी राजनीति में अब ‘नैतिकता’ जैसी कोई बात नहीं रही है। हालांकि एंटी खेमा प्रधानजी के खिलाफ पूरी तरह से मोर्चा खोल चुका है। अब यह देखना अहम रहेगा कि अपने वाले प्रधानजी की ‘सरदारी’ कब तक बनी रहेगी।
भाजपा की ‘किरण’
बरसों तक कांग्रेस में एक्टिव रहीं भिवानी वाली ‘मैडम’ भाजपा के लिए शुभ साबित हुई हैं। कांग्रेस छोड़कर जब वे भाजपा में आईं तो भाजपा ने उनसे बड़ी उम्मीदें पाली। ओल्ड भिवानी बेल्ट में वे भाजपा के लिए आशा की नई ‘किरण’ थीं। पहली बार इस बेल्ट की छह में से पांच सीटों पर कमल खिला। उन हलकों में भी भाजपा का कमल खिलखिला उठा, जहां कभी ऐसा नहीं हो पाया था। सो, भाजपा नेतृत्व ने भी इस ‘किरण’ को बनाए रखने के लिए उनकी ‘लाडली’ को नायब सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाकर उनका मान-सम्मान बढ़ाने का काम किया है। इससे पहले उन्हें खुद भी भाजपा राज्यसभा में भेज चुकी है। यानी बम्पर फायदा भिवानी वाली ‘मैडम’ को हुआ है।
-दादाजी