Digital Leak बॉलीवुड का नया सिरदर्द डिजिटल लीक का खेल
डिजिटल लीकेज की समस्या बॉलीवुड समेत देश-दुनिया के फिल्मोद्योगों के लिए बड़ी समस्या बन गयी। लीक होने पर फिल्म या वेब सीरीज, थिएटर तो दूर, ओटीटी पर भी रिलीज नहीं हो पाती। वहीं अगर लीक फिल्म पसंद नहीं आती तो उसके बारे दर्शकों की नेगेटिव राय बन जाती है यानी फिल्म फ्लॉप! निर्माता, निर्देशक और कलाकार के कैरियर पर असर होता है। भारतीय फिल्मोद्योग को इससे सालाना 20 हजार करोड़ रुपये का लॉस है।
डी.जे.नंदन
अगर आपसे पूछा जाए फिल्म ‘उड़ता पंजाब’, ‘बाहुबली-2: द कनक्लूजन’, ‘मणिकर्णिका: द क्वीन ऑफ झांसी’, ‘कबीर सिंह’ और ‘थलाइवी’ के बारे में। यह कि आखिर इन फिल्मों में समान बात क्या है? साल 2016 से 2021 के बीच रिलीज होने वाली इन चार बॉलीवुड और एक दक्षिण भारतीय फिल्म में समान बात यह है कि ये सभी फिल्में बड़े पर्दे पर प्रदर्शित होने के पहले ही डिजिटली लीक हो गई थीं। डिजिटल लीकेज का मतलब यह होता है कि किसी फिल्म, वेब सीरीज, फिल्म के गाने या किसी दूसरी महत्वपूर्ण डिजिटल सामग्री का आधिकारिक रिलीज या प्रदर्शन से पहले ही बिना अनुमति के इंटरनेट पर लीक हो जाना।
डिजिटल लीकेज की समस्या अकेले बॉलीवुड की ही नहीं है बल्कि देश और दुनिया के सभी फिल्म उद्योगों के लिए यह एक नया सिरदर्द बन गई है। क्योंकि डिजिटल लीकेज के कारण जहां फिल्म की कमाई पर सीधा असर पड़ता है, वहीं कई बार यह लीकेज इस हद तक खतरनाक बन जाती है कि फिर कोई फिल्म या वेब सीरीज, ओटीटी पर भी रिलीज नहीं हो पाती। क्योंकि कोई भी इसके अधिकार नहीं लेना चाहता, वजह यही होती है कि लोग इनके आधिकारिक प्रदर्शन के पहले ही मुफ्त में इसे देख चुके होते हैं। फिल्म इंडस्ट्री के लिए डिजिटल लीकेज कितने बड़े संकट के रूप में सामने आया है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भारतीय उद्योग को इससे हर साल लगभग 20 हजार करोड़ रुपये का नुकसान होता है। सिर्फ भारत में ही नुकसान का यह स्तर नहीं होता बल्कि दुनिया के दूसरे देशों खासकर तकनीक के मामले में बेहद उन्नत राष्ट्रों में भी यह डिजिटल समस्या एक बड़ा सिरदर्द बन गई है।
ऐसे होती है डिजिटल लीकेज
किसी फिल्म की एडिटिंग, मिक्सिंग या डबिंग के दौरान महत्वपूर्ण डाटा चोरी या लीक हो सकता है। इसी तरह जब कोई फिल्म बनने के बाद जजों, क्रिटिक्स द्वारा या प्रमोशन के लिए प्रिव्यू के रूप में दिखायी जाती है या किसी को इसके प्रिव्यू का लिंक भेजा जाता है, तो यह लीक हो सकती है। कई बार फिल्म स्टूडियो या स्ट्रीमिंग प्लेटफार्म के डेटा को हैक करके भी कंटेंट चुरा लिया जाता है और कई मर्तबा जब थियेटर में दिखाये जाने के लिए शुरुआती प्रिंट्स डिजिटल डाटा के रूप में भेजे जाते हैं तो वे भी लीक हो जाते हैं। ओटीटी पर रिलीज के तुरंत बाद भी रिकॉर्डिंग या डेटा एक्सट्रैक्शन के जरिये डाटा फाइलें लीक हो जाती हैं। इस तरह फिल्मों के लीक होने के कई तरीके हैं।
क्यों सिरदर्द है लीकेज?
डिजिटल लीकेज से जहां फिल्म को आर्थिक नुकसान होता है, वहीं अगर लीक फिल्म लोगों को पसंद नहीं आती तो उसके बारे में लोगों की बड़ी नकारात्मक राय बन जाती है और इस तरह वह फिल्म न सिर्फ नाकामयाब हो जाती है बल्कि उस प्रोडक्शन हाउस के दूसरे प्रोजेक्ट्स को भी लोगों में नीची निगाहों से देखने का मनोविज्ञान बन जाता है। इस तरह की लीकेज से कलाकारों की महीनों की मेहनत और करोड़ों रुपये की लागत बर्बाद हो जाती है। निर्माता, निर्देशक और कलाकार इस ‘दुर्घटना’ से सिर्फ निराश ही नहीं होते, कई बार तो इससे उनका समूचा कैरियर ही तबाह हो जाता है और जो सबसे बड़ी बात होती है, ऐसे लीकेज में वह यह होती है कि फिल्म चाहे कितनी ही अच्छी क्यों न हो, जब उसका क्लाइमेक्स पहले से रिलीज हो जाता है तो दर्शकों की उसमें रुचि कम हो जाती है।
पारंपरिक पायरेसी और डिजिटल लीकेज
डिजिटली लीकेज पारंपरिक पायरेसी के मुकाबले ज्यादा खतरनाक और चिंताजनक है। पारंपरिक पायरेसी में जहां किसी थियेटर में बैठकर चुपके से फिल्म को रिकॉर्ड किया जाता है और फिर उसकी सीडी या डीवीडी बनायी जाती है और तब उसे लाखों या हजारों सीडी/डीवीडी में कॉपी करके बेचा जाता है। जबकि डिजिटल लीकेज के तहत सामग्री को सीधे क्लाउड, सर्वर या डिजिटल प्रिंट्स से ही लीक कर दी जाती है। डिजिटल लीकेज कई बार सिर्फ एक नकारात्मक क्लिक भर करने से हो जाती है। इस तरह देखें तो डिजिटल लीकेज बहुत तेजी से एक ही समय पर देश-दुनिया में हर जगह पहुंच सकती है और इससे फिल्म को भारी आर्थिक और व्यावसायिक नुकसान हो जाता है। डिजिटल लीकेज किसी सामग्री को पलक झपकते ही दुनिया के किसी भी कोने तक पहुंचा सकती है और फिर मिनटों में यह सामग्री टोरेंट साइट्स, टेलिग्राम चैनल्स और अन्य मीडिया प्लेटफॉर्म तक पहुंच जाती है। पारंपरिक पायरेसी में जहां एक फिजिकल मीडिया की जरूरत थी, वहीं डिजिटल लीकेज में केवल इंटरनेट और डिजिटल फाइल्स ही काफी हैं। पारंपरिक पायरेसी रोकने के लिए पुलिस और फिजिकल ऑपरेशन किसी हद तक कारगर थे, लेकिन डिजिटल लीकेज को रोकना इतना आसान नहीं है और अभी तक दुनिया के पास मजबूत साइबर कानूनों का भी अभाव है।
जब इन फिल्मों का भट्ठा बैठा
हाल के सालों में फिल्म ‘थलाइवी’ और सलमान खान की ‘राधे’ जैसी दुर्गति शायद ही बड़े बजट की दूसरी फिल्मों की हुई हो। थलाइवी दक्षिण भारत की सर्वकालिक हिट जोड़ी एम जी रामचंद्रन और जयललिता की कहानी पर बनी थी, जिसमें कंगना रनौत और अरविंद स्वामी ने मुख्य भूमिकाएं अदा की थी। एक बिलियन रुपये के बजट वाली यह फिल्म थियेटर में आने के पहले डिजिटल लीक हो गई और बुरी तरह से पिट गई। अपने मोबाइल और लैपटॉप में देखने के बाद लोग इसे देखने थियेटर में नहीं गये और ऐसा ही कुछ बुरा हाल सलमान स्टारर ‘राधे’ का भी हुआ। जहां सलमान अमिताभ स्टाइल में एंग्री यंगमैन बनकर मारधाड़ के सुपरहिट फिल्म देना चाहते थे, लेकिन 90 करोड़ रुपये में बनी यह फिल्म भी डिजिटल लीकेज के कारण अपनी लागत तो दूर, इतनी भी रकम नहीं कमा सकी कि फिल्म के निर्देशक प्रभु देवा फिल्म की भरपायी करने के लिए दूसरी फिल्म का ऐलान कर सकते। इन दोनों फिल्मों के डिजिटली लीक हो जाने के कारण इनका थियेटर कारोबार तो चौपट हो ही गया, ओटीटी व्यूज भी प्रभावित हुए, क्योंकि लोग देखने ही नहीं गये। रिलीज होने के पहले ही लीक हो जाने के कारण इन फिल्मों की प्रमोशनल रणनीति भी नहीं बन पायी।
रोकथाम की जरूरत
डिजिटल लीकेज फिल्म इंडस्ट्री के लिए हाल के दिनों में एक बड़ी लीकेज बनकर रह गई है। जिस कारण अब हर तरफ से यह मांग होने लगी है कि हर हाल में इस डिजिटल लीकेज को रोका जाए। सवाल है इसके लिए क्या उपाय करने होंगे? विशेषज्ञों की मानें तो-
प्रोडक्शन हाउसेज को मजबूत साइबर सुरक्षा तकनीकों और एन्क्रिप्शन का उपयोग करना होगा। वहीं फिल्म के डिजिटल लीक होने के जितने भी संभावित स्रोत हैं, उन सब पर गहन निगरानी करनी होगी। जैसे- प्रिव्यू सक्रीनर्स को ट्रैक करने के लिए डिजिटल वॉटरमार्किंग का उपयोग करना होगा। डिजिटल लीकेज के अपराधियों के विरुद्ध सख्त कानूनी कार्रवाई करनी होगी और जो भी शख्स इस अपराध में शामिल पाया जाए, उसे कड़ी से कड़ी सजा के साथ ही उस पर आर्थिक जुर्माना लगाया जाए। इसके साथ ही स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स को कंटेंट की सुरक्षा हेतु बेहतर सुरक्षा उपाय अपनाने होंगे। इस तरह देखें तो डिजिटल लीकेज जो न सिर्फ बॉलीवुड बल्कि देश के समूचे फिल्म उद्योग के लिए खतरनाक अपराध बन गया है, उस पर जल्द से जल्द काबू पाना होगा वर्ना मुट्ठीभर लोगों के टेक्नो आतंक के कारण खरबों रुपये की इंडस्ट्री बर्बाद हो जायेगी। -इ.रि.सें.