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Whistle blowers Death कारोबारी दुनिया की पर्देदारी पर सवाल

04:05 AM Jan 12, 2025 IST
whistle blowers death कारोबारी दुनिया की पर्देदारी पर सवाल
सुचिर बालाजी
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अकसर बड़ी कंपनियां व संगठन कारोबारी वजहों से अपने आविष्कार,नवाचार की प्रक्रिया को लेकर गोपनीयता बरतते हैं। उनके कर्मियों पर भी सीक्रेट बनाए रखने के नियम लागू होते हैं। लेकिन इस प्रक्रिया में यदि कानून-नैतिकता का उल्लंघन होता है तो कंपनी का कोई कर्मचारी यानी व्हिसल ब्लोअर उसे उजागर करता है जिसे नौकरी से लेकर जान तक का खतरा होता है। अमेरिका स्थित एक नामी कंपनी में रिसर्चर व व्हिसल ब्लोअर सुचिर बालाजी की संदिग्ध मौत भी तकनीकी जगत की पर्देदारी पर सवाल उठा रही है।

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डॉ. संजय वर्मा/एक मीडिया संस्थान में एसोसिएट प्रोफेसर 

तकनीक और विज्ञान की दुनिया में कई काम चुपचाप किए जाते हैं। खास तौर से तब, जब कंपनियों के बीच प्रतिद्वंद्विता हो या आविष्कार अथवा पेटेंट के चोरी हो जाने का खतरा हो। गोपनीयता या पहरेदारी बरतने के कारोबारी कारण होते हैं, लेकिन इसी पहरेदारी के बीच अगर उस दुनिया में कुछ गलत काम भी हो रहे हों, तो दुनिया को इसका पता शायद ही कभी चलता है। मौलिक विचार (आइडिया), आविष्कार या पेटेंट को लेकर अक्सर यह बात दावों के साथ कही जाती है कि विकसित पश्चिमी मुल्कों में इन्हें लेकर कड़े मानक हैं। अगर साबित हो जाता है कि किसी आविष्कार या मौलिक विचार को कहीं से उड़ाया गया है, तो भारी-भरकम जुर्माने और कड़ी सजाओं का प्रावधान है। लेकिन यह कैसे पता चले कि किसी संस्था ने आइडिया, आविष्कार, बौद्धिक संपदा या डेटा संबंधी कोई चोरी की है। अक्सर इसकी जिम्मेदारी किसी संस्था या कंपनी से जुड़ा कोई शख्स उठाता है, जो वहां हो रही गड़बड़ी से परेशान हो। उसे अनैतिक मानता हो। और इन गड़बड़ियों का खुलासा कर साबित करना चाहता हो कि दुनिया में नैतिकता और अच्छाई की कोई कीमत होती है। इन सारे नजरियों से हाल में एक 26 वर्षीय नौजवान सुचिर बालाजी की मौत को देखें, तो कई संदेह और सवाल तकनीक की उस दुनिया को लेकर उपजते हैं जिसने हाल के दशकों में अपने आविष्कारों के बल पर यह साबित करने की कोशिश की है कि इक्कीसवीं सदी का इंसान सभ्यता के इतिहास में वह सब कुछ हासिल करने जा रहा है, जिसका वह हकदार है।
बेशक, विज्ञान और तकनीक ने हमें वे सब सुख-सहूलियतें दिलाई हैं जिनकी कभी सिर्फ कल्पना की जाती थी। लेकिन सवाल है कि आखिर किस कीमत पर हमें यह तरक्की मिली है। इस कसौटी पर सुचिर बालाजी की मौत को देखें, तो शायद हमें तकनीक की दुनिया के उस अंधेरे का कुछ अहसास हो जिस पर शायद ही कभी नजर जाती है। सुचिर की मौत कैसे हुई- इस बारे में फिलहाल साक्ष्य और आरंभिक पुलिसिया जांच सिर्फ यह बताती है कि सैन फ्रांसिस्को (अमेरिका) के एक अपार्टमेंट में उन्होंने अनजान कारणों से खुदकुशी कर जान दे दी।
सुचिर की मौत का रहस्य
रिसर्चर सुचिर की मौत हत्या थी या आत्महत्या- इसे लेकर हालांकि तब भी जिज्ञासा रहती कि आखिर अमेरिका गए एक नौजवान की अचानक मृत्यु क्यों हो जाती है। लेकिन जब यह पता चलता है कि सुचिर जेनरेटिव एआई का उन्नत संस्करण यानी चैटजीपीटी बनाने वाली कंपनी ओपनएआई के एक पूर्व शोधकर्ता और सचेतक या मुखबिर (व्हिसल ब्लोअर) थे, तो हमारा चौंकना स्वाभाविक है। सुचिर ने चैटजीपीटी के निर्माण के वक्त बौद्धिक संपदा की चोरी और कॉपीराइट मामलों की अनदेखी पर सवाल उठाए थे और नियमों का उल्लंघन करने पर चिंता जताई थी। ऐसे में इस ओर किसी की नजर जा सकती है कि कहीं सुचिर की मौत के पीछे ओपनएआई की ओर से पैदा कोई दबाव ही एक बड़ी वजह तो नहीं था। अक्सर ऐसे मामलों में इस तथ्य का उद्घाटन कभी नहीं होता है कि अगर ऐसे व्हिसल ब्लोअर की हत्या नहीं करवाई गई है, तो भी किसी बड़ी कंपनी या रसूखदार व्यक्ति की ओर से निरंतर दी जाने वाली मानसिक प्रताड़ना के दबाव में आकर आत्महत्या की गई होगी। सुचिर के मामले में तो इसकी आशंका और भी ज्यादा है क्योंकि इतनी युवा उम्र में उसके पास आत्महत्या (अगर यह आत्महत्या ही है तो) का कोई बड़ा कारण नहीं हो सकता। किसी सचेतक यानी व्हिसल ब्लोअर पर कैसे और कितने दबाव हो सकते हैं, इसके लिए समझना होगा कि कंपनी या संगठन के भीतर रहते हुए ऐसे सचेतक की भूमिका क्या होती है।
कंपनी में व्हिसल ब्लोअर की भूमिका
एक उदाहरण से समझें तो जिस तरह फुटबॉल के एक मैच में खेल के दौरान मैदान पर मौजूद रेफरी नियम-कायदों का ध्यान रखते हुए यह तय करता है कि किस टीम या खिलाड़ी ने क्या गलती (फाउल) की है और उस गलती का क्या दंड हो सकता है, कुछ वैसी ही भूमिका एक कंपनी में सचेतक की होती है। ऐसा व्यक्ति, जो अनिवार्य रूप से कंपनी या संगठन का कर्मचारी हो, कंपनी की गतिविधियों पर बारीकी से नजर रखते हुए वहां की जा रही गड़बड़ियों, भ्रष्टाचार, वित्तीय अनियमितताओं, कॉपीराइट नियमों के उल्लंघनों और अवैध तथा अनैतिक क्रियाकलापों के खिलाफ आवाज उठाता है। उसका उद्देश्य होता है कि इन अनैतिक और अवैध गतिविधियों को रोका जाए, ताकि देश, दुनिया और समाज में कंपनी की सकारात्मक छवि बने। इसके लिए अक्सर वह अपनी नौकरी को दांव पर लगाता है।
कंपनियों में पर्देदारी और कारोबारी हित
खास तौर से जो कंपनियां नई दवाओं या तकनीकों का आविष्कार कर रही हैं, वहां इसकी अत्यधिक आशंका रहती है कि नियमों और नैतिकताओं को ताक पर रखकर कुछ ऐसा काम किया जा रहा है जो नई ईजाद तो करता है और कंपनी के मुनाफे में बढ़ोतरी करता है, लेकिन नैतिक कसौटियों पर वह कहीं से भी खरा न उतरता हो। लेकिन आविष्कार या नई तकनीक के निर्माण और कारोबारी हितों की गोपनीयता का हवाला देते हुए ये कंपनियां ऐसे मामलों में बहुत पर्देदारी बरतती हैं।
नामी कंपनियों में व्हिसल ब्लोइंग के मामले
चूंकि तकनीक और प्रौद्योगिकी ने दुनिया को कुछ ज्यादा ही प्रभाव में लिया है, इसलिए गूगल, मेटा, एप्पल और ओपनएआई जैसी कंपनियों में सचेतन यानी व्हिसल ब्लोइंग से जुड़े मामलों की भरमार है। जैसे, तीन साल पहले वर्ष 2021 में फेसबुक (मेटा) की पूर्व प्रोडक्ट मैनेजर फ्रांसिस हौगेन ने इस कंपनी के हजारों अंदरूनी दस्तावेजों को उजागर करते हुए दावा किया कि इस कंपनी ने अपने उपभोक्ता की सेहत, लाभ और सार्वजनिक हित के बजाय अपने स्वार्थ और फायदे को तरजीह दी। खास तौर से यह देखते हुए कि कंपनी ऐसा एल्गोरिद्म अपनाती है, जिससे उस पर आने वाला कंटेंट बच्चों, किशोरों और विशेष रूप से लड़कियों के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है और लोकतंत्र को कमजोर करता है। हौगेन का दावा था कि कंपनी प्रबंधन यह तथ्य जानता था कि उसके मंच पर मौजूद घृणास्पद, विभाजनकारी और ध्रुवीकरण करने वाली सामग्री लोगों को अन्य भावनाओं की तुलना में ज्यादा उकसाती है या क्रोधित करती है, तब भी ऐसी सामग्री को रोकने की बजाय उसे बढ़ावा दिया गया ताकि मुनाफा बढ़ सके। उन्हीं की तरह गूगल के एक शोधकर्ता टिमनिट गेबरू ने जब एक सह-लेखक के साथ कंपनी के सर्च इंजन को संचालित करने वाले आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से संचालित सॉफ्टवेयर के नुकसान के बारे में एक शोधपत्र लिखा, तो उन पर दबाव पड़ा कि वे उसे वापस ले लें। गेबरू ने ऐसा नहीं किया। बल्कि उन्होंने इस कंपनी पर शोध को दबाने और नस्लवाद का आरोप लगाया। इस पर गेबरू को नौकरी से निकाल दिया गया। वर्ष 2020 में एक अन्य सोशल मीडिया कंपनी पिंटरेस्ट की कर्मचारी इफियोमा ओजोमा ने कंपनी की नस्लवादी नीतियों को उजागर किया, तो उन्हें इसके खिलाफ काफी कुछ सहना पड़ा। हमें नहीं मालूम कि सैन फ्रांसिस्को में जान गंवाने वाले सुचिर बालाजी पर ओपनएआई की ओर से कोई दबाव वास्तव में था या नहीं, लेकिन यह सच है कि उन्होंने इस कंपनी द्वारा ग्राहकों का डाटा जमा करने की अनैतिक नीतियों की खुलेआम आलोचना की थी और इस पर सवाल खड़े किए थे। इस घटना ने उन्हें चर्चा में ला दिया था और एक व्हिसल ब्लोअर की उनकी भूमिका स्थापित की थी।
नवाचार, डेटा और विनियामक कानून
अब सवाल है कि आखिर प्रौद्योगिकी या तकनीकी कंपनियां ऐसा क्या कर रही हैं जो उन्हें अपने कामकाज में अत्यधिक गोपनीयता बरतने और नियम-कायदों को धता बताने के लिए प्रेरित कर रहा है। इसकी गहराई में जाने के लिए यह जानना जरूरी है कि तकनीक के मौजूदा दौर में दुनिया में दर्जनों कंपनियां डिजिटल प्लेटफॉर्म, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, ड्रोन, सेल्फ ड्राइविंग कारों से लेकर तमाम उभरती हुई तकनीकों के विकास का काम कर रही हैं। इन ज्यादातर कार्यों ने उनके लिए जरूरी बना दिया है कि वे तकनीकों का विकास करने के लिए ढेर सारा डाटा और अन्य जरूरी जानकारियां जमा करें। इससे तकनीकी नवाचार (इनोवेशन) और असल विनियमन (रेगुलेशन) के बीच एक स्पष्ट अंतर या खाई पैदा हो गई है। विनियामक पुराने कानूनों और परिपाटियों पर टिके रहना चाहते हैं, जबकि तकनीकी कंपनियां इसमें छूट चाहती हैं। वे यह नहीं बताना चाहतीं कि नई तकनीकों के विकास के लिए उन्होंने डाटा और जानकारी कहां से और कैसे जुटाई। साथ ही, व्यापार और कॉरपोरेट- दोनों से संबंधित कारोबारी कंपनियां गोपनीयता कानूनों का फायदा उठाना चाहती हैं। ऐसे में गोपनीयता को लेकर कंपनियों का यह आक्रामक रवैया समस्या बढ़ाता है क्योंकि व्हिसल ब्लोअर्स को लगता है कि उनकी कंपनी जो जानकारियां छिपा रही है, उन्हें असल में सार्वजनिक किया जाना चाहिए।
कर्मचारियों पर नियंत्रण, निगरानी
इतना ही नहीं, ये तकनीकी कंपनियां अपने कर्मचारियों पर कई तरह से नियंत्रण रखना चाहती हैं। जैसे, उनका प्रबंधन तय करता है कि कर्मचारी विभिन्न मुद्दों और विषयों पर न तो कहीं बोलें और न ही किसी डिजिटल मंच यानी सोशल मीडिया पर कुछ लिखें। यानी ये कंपनियां अपने कर्मचारियों के आंतरिक और बाह्य संचार पर पूर्ण नियंत्रण चाहती हैं। इसके अलावा वे कर्मचारियों के कंप्यूटर-लैपटॉप से की जा रही प्रत्येक गतिविधि पर नजर रखती हैं और कार्यस्थल पर सख्त निगरानी के उपकरण स्थापित करती हैं। यहां तक कि कर्मचारियों के निजी इलेक्ट्रॉनिक गैजेट इस निगरानी के दायरे में रहते हैं। अक्सर ये सारे प्रबंध नियामकों और यहां तक कि सरकारों की निगाह से ओझल रहते हैं, जबकि कंपनियां अपनी इन नीतियों का जमकर फायदा उठाती हैं। इसी से परेशान होकर अक्सर कुछ कर्मचारी आवाज उठाते हैं और सचेतक यानी व्हिसल ब्लोअर की भूमिका में आ जाते हैं।
सुरक्षा के कानूनी प्रावधान
ऐसा नहीं है कि गोपनीयता और मुनाफा कमाने की जिद में अनैतिक और अवैध हथकंडे अपनाने वाली कंपनियों के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले सचेतकों या मुखबिरों को दुनिया भर की सरकारों ने असहाय छोड़ दिया हो। इस मामले में वैश्विक कानूनों का भले ही अभाव हो, लेकिन कई देशों में इसके लिए विशिष्ट कानून बनाए हैं जिनसे वे अपने देश में सचेतकों की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं। जहां व्हिसल ब्लोअर संबंधी कानूनों का अभाव है, वहां की सरकारों ने या तो अपने देश में प्रचलित श्रम कानूनों में ही सचेतकों की सुरक्षा के प्रावधान किए हैं या फिर संबंधित कानूनी अधिनियम बनाए हैं। हालांकि ऐसे कानून की स्पष्ट कमी कई देशों में हैं जो केवल प्रौद्योगिकी या तकनीकी उद्योग से जुड़े सचेतकों (मुखबिरों) को लक्ष्य करते हुए बनाए गए हैं। ऐसी स्थिति में प्रौद्योगिकी उद्योग के व्हिसल ब्लोअर को उन कानूनों के तहत सुरक्षा दी जाती है, जो आम तौर पर सभी उद्योगों में ऐसे कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए बनाए जाते हैं। हालांकि कुछ विकसित देशों में व्हिसल ब्लोअर की सुरक्षा के लिए कानून हैं, लेकिन वहां भी ऐसे कानून केवल सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों पर केंद्रित हैं। लेकिन ध्यान रखना होगा कि ऐसा कदाचार सिर्फ सार्वजनिक क्षेत्र के संगठनों या कंपनियों द्वारा ही नहीं किया जाता, बल्कि निजी क्षेत्र के संगठनों में भी यह समान रूप से हो रहा है। इस समस्या की तरफ संयुक्त राष्ट्र का ध्यान गया है। इस संगठन ने कदाचार, भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले सचेतकों (मुखबिरों) की सुरक्षा के खिलाफ एक कन्वेंशन की स्थापना की और इसकी जरूरत को अंतर्राष्ट्रीय कानून के एक हिस्से के रूप में मान्यता दी। इस कन्वेंशन पर आरंभ में 140 देशों ने हस्ताक्षर किए थे। जिनमें से बाद में 137 देशों ने इसे मंजूरी दी। इस पहल के चलते 60 से ज़्यादा देशों ने अब व्हिसल-ब्लोअर के लिए विशेष सुरक्षा कानून अपनाए हैं।
हर कारोबार पर कॉमन कानून लागू
ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, कनाडा, भारत, न्यूज़ीलैंड, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, दक्षिण अफ़्रीका जैसे देशों में व्हिसल ब्लोअर की सुरक्षा के लिए समर्पित राष्ट्रीय कानून हैं। लेकिन इन ज्यादातर देशों में ये कानून सभी तरह की कंपनियों के लिए हैं, प्रौद्योगिकी उद्योग पर विशिष्ट रूप से इन्हें लागू नहीं किया गया है। हालांकि अमेरिका में पहले से ही व्हिसल ब्लोअर को पुरस्कृत करने संबंधी कानून हैं जिसके ज़रिये व्हिसल ब्लोअर को न सिर्फ सुरक्षा दी जाती है, बल्कि इस कार्य यानी धोखाधड़ी उजागर करने के लिए इनाम देकर सराहा भी जाता है। ऐसे में यह काफी हैरानी की बात है कि इसी देश में सैन फ्रांसिस्को में भारतीय मूल के एक सचेतक सुचिर बालाजी की अचानक मौत हो जाती है और कोई हंगामा भी नहीं मचता है। इससे लगता है कि दुनिया प्रौद्योगिकी कंपनियों के दबदबे के आगे खामोश रहने को अहमियत दे रही है- जो एक बड़ी चिंता की बात है।

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भारत में व्हिसल ब्लोइंग और सुरक्षा व्यवस्था

हमारे देश में सचेतक यानी व्हिसल ब्लोअर की भूमिका के तौर पर सत्येंद्र दुबे को पहला ऐसा कार्यकर्ता माना जाता है। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण में परियोजना निदेशक 31 वर्षीय दुबे ने इस परियोजना के संचालन में अनुचित वित्तीय रेकॉर्डों का खुलासा किया था। करीब 20 साल पहले उन्होंने इस अनियमितता की शिकायत प्राधिकरण से की थी। देश की सबसे बड़ी सड़क परियोजना में ऐसी गड़बड़ी की शिकायत की सूचना मिलने से हड़कंप मच गया था। इसके बाद नवंबर 2003 में बिहार के गया जिले में एक अज्ञात बंदूकधारी ने उनकी हत्या कर दी थी। एक राष्ट्रीय अंग्रेजी दैनिक की खबर के मुताबिक, सिविल इंजीनियर और परियोजना निदेशक दुबे की हत्या उस शिकायत के लीक हो जाने के बाद की गई थी, जो उन्होंने व्हिसल ब्लोअर के रूप में प्रधानमंत्री कार्यालय और राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण से की थी। इस शिकायत में दुबे ने लिखा था कि परियोजना में गंभीर भ्रष्टाचार कायम है और कई अवैध कार्य हो रहे हैं। देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने हत्या की जांच के आदेश दिए थे। यह भी उल्लेखनीय है कि हत्याकांड के मामले में जब केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई ने पूछताछ की, तो उसके एक ही दिन बाद मुख्य गवाह को भी मृत पाया गया था। बाद में, यानी मरणोपरांत सत्येंद्र दुबे को ब्रिटिश मानवाधिकार संस्था इंडेक्स ऑफ सेंसरशिप ने व्हिसल ब्लोअर ऑफ द ईयर का पुरस्कार भी दिया था, जो आईआईटी में उनके सहपाठी प्रवाल गुप्ता ने ग्रहण किया था। इस मामले ने भारत में व्हिसल ब्लोअर कानून बनाने की जरूरत पर ध्यान केंद्रित किया था। इस तरह देश में पहला व्हिसल ब्लोअर संरक्षण अधिनियम, 2014 अस्तित्व में आया। इस कानून में व्हिसल ब्लोअर की पहचान की सुरक्षा करने के साथ-साथ उत्पीड़न को रोकने के लिये कठोर मानदंड शामिल किए गए थे। यह भी सुनिश्चित किया गया कि व्हिसल ब्लोअर द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच लंबित रहने तक उसके खिलाफ संगठन या कंपनी द्वारा कोई भी कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती है। यह भी जरूरी किया गया कि सभी सूचीबद्ध और सार्वजनिक क्षेत्र की फर्मों में इस अधिनियम के तहत व्हिसल ब्लोअर नीति लागू की जाए और शिकायतकर्त्ताओं के लिए एक प्रक्रिया सुनिश्चित करे। उल्लेखनीय है कि कंपनी अधिनियम तथा भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड के गवर्नेंस मानदंडों में इन कानूनी प्रावधानों को अपनाया गया है। इससे प्रतीत होता है कि भले ही प्रौद्योगिकी कंपनियों में विशिष्ट व्हिसल ब्लोअर कानून न हो, लेकिन शेष संगठनों व कंपनियों में इसकी व्यवस्था है।

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