बांसुरी की धुन से धेनु का दुख दूर
करनाल, 25 जून
बांसुरी की मीठी धुन बज रही है। सुनने वाले मग्न हैं। उनकी आंखें बंद हैं। मानो आनंद में खोये हों... यह नजारा किसी थियेटर या ऑडिटोरियम का नहीं, बल्कि गौशाला का है, जहां दुधारू पशुओं के लिए वैज्ञानिकों ने संगीत का इंतजाम किया है। दरअसल, करनाल स्थित राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान में संगीत थेरेपी का अनूठा प्रयोग किया गया है।
वैज्ञानिकाें के अनुसार, पशु भी तनाव से पीड़ित होते हैं, उन पर जलवायु परिवर्तन का असर पड़ रहा है। इसके चलते उनके आहार सहित दूध देने की क्षमता प्रभावित हुई है। ऐसे में, दुधारू पशुओं को तनाव रहित रखने के लिए पारंपरिक तरीकों पर शोध किया गया और इसके परिणाम से वैज्ञानिक उत्साहित हैं। संस्थान में पशुओं को रोजाना बांसुरी अथवा अन्य मधुर संगीत सुनाया जाता है। वैज्ञानिकों ने पाया कि संगीत सुनने वाले पशुओं का न केवल स्वास्थ्य बेहतर रहता है, बल्कि वह करीब 10 से 15 प्रतिशत अधिक चारा खाने लगे हैं, जिससे दूध उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है। बांसुरी की धुन बजने पर आराम से आंखें बंद करके जुगाली करते हैं, जिससे पता चलता है कि पशु तनाव नहीं मान रहा।
बांधे रखने से भी बढ़ता है तनाव
डॉ. आशुतोष ने कहा कि पशु को एक ही जगह पर बांध कर रखने से वह तनाव में आ जाता है। इसको लेकर भी यहां रिसर्च चल रही है, जिसमें पशु तनावमुक्त व रिलैक्स महसूस करता है। उन्होंने कहा, हम यहां पशुओं को ऐसा वातावरण दे रहे हैं, जिसमें पशु पर कोई भी दबाव न हो।
संगीत से सुकून का वैज्ञानिक प्रमाण
कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण की बांसुरी की धुन सुनकर गायें दौड़ी चली आती थीं। संस्थान के वैज्ञानिक कहते हैं कि यह बात अब विज्ञान की दृष्टि से भी प्रमाणित हो रही है कि संगीत मवेशियों को भी सुकून देता है। संस्थान के वरिष्ठ पशु वैज्ञानिक डॉ. आशुतोष कहते हैं, काफी समय पहले सुना था कि गायों को संगीत एवं भजन पसंद होते हैं। हमने जब यह विधि अपनाई तो उसका परिणाम काफी अच्छा निकला। उन्होंने बताया कि संगीत की तरंगें गाय के मस्तिष्क में ऑक्सीटोसिन हार्मोन को सक्रिय करती हैं, जिससे तनाव घटता है और दूध देने की क्षमता बढ़ती है।