पहाड़ों में प्रकृति अनुरूप विकास
हमारी भी जिम्मेदारी
मानसूनी बारिश से हिमाचल और उत्तराखंड में बाढ़ व भूस्खलन आदि के रूप में कहर टूट गया। इस तबाही ने इन राज्यों में बुनियादी ढांचे को भी बहुत नुकसान पहुंचाया। प्रकृति के इस कोप का मुख्य कारण पहाड़ों को काटने के साथ-साथ पेड़ कटान भी है। पेड़ पहाड़ों की ऊपरी परत पर सुरक्षा कवच बन भूस्खलन को रोकते हैं। अवैज्ञानिक तरीकों से सड़कों का निर्माण भी इसका एक कारण है। ऐसे में विकास कार्यों को मौसम की आवृत्ति व तीव्रता को ध्यान में रखते हुए अंजाम दिया जाना चाहिये। पहाड़ों के मूल स्वरूप को बनाए रखना भी हमारी ही प्राथमिक जिम्मेदारी है।
पूनम कश्यप, नयी दिल्ली
कुदरत से न हो छेड़छाड़
कुछ सालों से पहाड़ों पर विकास के नाम पर वनों को काटकर सड़कें, रेलवे लाइन, सुरंगें और शहर बसाने की कवायद की जा रही है। नदियों का मुंह मोड़कर बड़े-बड़े बांधों का निर्माण किया जा रहा है। बिना किसी ठोस प्लानिंग के बहुमंजिला इमारतों का निर्माण किया जा रहा है। रास्तों के निर्माण के नाम पर बड़ी-बड़ी मशीनों और डायनामाइट से खुदाई कर पहाड़ों को कमजोर किया जा रहा है। वनों का काटा जा रहा है। जबकि ये प्राकृतिक संसाधन हैं। विकास के नाम पर इस तरह प्रकृति यानी पहाड़ों, वनों के साथ छेड़छाड़ बंद करनी होगी नहीं तो परिणाम भयानक ही होंगे।
संजय डागा, इंदौर, म.प्र.
लक्ष्मण रेखा का ख्याल
आज हम पहाड़ों पर विकास और निर्माण कार्य कुछ ऐसे कर रहे हैं कि पहाड़ों की सांसें ही फूलने लगी हैं। पहाड़ी क्षेत्र के तापमान में वृद्धि होने लगी है। इस कारण कभी ग्लेशियर पिघल कर आफत बन रहे हैं तो कभी पहाड़ दरककर। पहाड़ों को बचाने के लिए वहां विकास इस तरह से किया जाना चाहिए जो प्रकृति की लक्ष्मण रेखा पार न करे। वहां किसी भी प्रकार का निर्माण करने के लिए पहाड़ों में ब्लास्टिंग इस तरह न कि जाए कि आसपास के पहाड़ों की बुनियाद ही कमजोर पड़ जाए। वहीं पहाड़ों पर अवैध निर्माण रोकने भी जरूरी है। इसके साथ ही वनों का संरक्षण बहुत जरूरी है।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
क्षमता निर्धारण
हिमाचल, उत्तराखंड सहित सभी पहाड़ी क्षेत्रों, पर्यटन स्थलों की वहन क्षमता निर्धारित करने के लिए केंद्रीय सरकार संबंधित राज्य सरकारों को निर्देश जारी करे। हिमालयी क्षेत्र के लिए तैयार की वहन क्षमता, मास्टर प्लान का आकलन करने के लिए कदम उठाने के निर्देश भी देने चाहिए। उसका स्थाई प्रबंधन संबंधित राज्यों की प्राथमिक जिम्मेदारी है। यह भी कि इस बार मानसून पहाड़ी राज्यों की सामूहिक चेतना में बना रहे ताकि भविष्य में योजनाएं प्रकृति अनुकूल बनें। पर्वतीय क्षेत्रों में अनुकूल योजनाओं को प्रोत्साहन केन्द्र सरकार प्रदान करे ताकि भविष्य में प्राकृतिक प्रकोप न झेलने पड़ें।
रमेश चन्द्र पुहाल, पानीपत
कानूनी समाधान
देश के पर्वतीय क्षेत्र मानवीय गतिविधियों के दबाव से जूझ रहे हैं। बढ़ती जनसंख्या और पर्यटन को बढ़ावा देने की खातिर उनका दोहन हो रहा है। बड़े-बड़े संस्थान व उद्योग स्थापित हो हो रहेे हैं। नयी सड़कों का निर्माण जारी है। बाढ़, बादल फटना, लैंडस्लाइड आदि की घटनाओं में वृद्धि हो रही है। इन समस्याओं से निजात पाने के लिए सरकार को पहाड़ों की क्षमता व प्रकृति अनुरूप ही उन क्षेत्रों का विकास करना चाहिए। ऐसे उद्योग-व्यवसाय जो पर्वतीय क्षेत्रों में प्रदूषण फैला ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनते हैं, उन पर सख्त कानून बनाकर लागू करें। पर्यटकों की संख्या निश्चित करनी चाहिए। ताकि हर साल आपदा व नुकसान से बचा जा सके।
ऋतु गुप्ता, फरीदाबाद
विशेषज्ञों की राय
इस मानसूनी सीजन में पहाड़ी प्रदेश हिमाचल एवं उत्तराखंड में प्रकृति के प्रकोप के कारण जन-धन की व्यापक हानि हुई है। पहाड़ी प्रदेशों की अपनी एक विशिष्ट जलवायु होती है। अंधाधुंध निर्माण, सड़कों एवं बड़े बांधों का निर्माण, जनसंख्या का बढ़ता दबाव एवं बेतहाशा पर्यटन के कारण यह स्थिति निर्मित हुई है। विशेषज्ञों की समिति गठित कर उनकी राय अनुरूप प्रकृति-सम्मत विकास कार्य होने पर पर्यावरण संतुलन कायम रखा जा सकता है। जल निकासी के प्राकृतिक मार्गों का क्षरण होने से भी समस्या बढ़ी है।
ललित महालकरी, इंदौर, म.प्र.
पुरस्कृत पत्र
निर्माण के विकल्प खोजें
हाल ही में भारी वर्षा , पहाड़ों के दरकने, और बाढ़ से हि.प्र. और उत्तराखंड में मची तबाही ने वहां जान-माल का भारी नुकसान किया। यदि पूर्वानुमति से सीमित और नियोजित तरीके से बसाहट होती, अंधाधुंध वृक्षों की कटाई नहीं होती और मनमाने ढंग से बांध नहीं बनाए जाते तो यह तबाही नहीं देखनी पड़ती। अब जरूरी है पहाड़ों की अनावश्यक खुदाई प्रतिबंधित की जाए और निर्माण के विकल्प खोजे जाएं। पर्यटन स्थल पर संस्थानों तथा पर्यटकों की सघन चैकिंग हो ताकि गंदगी और प्रदूषण से मुक्ति मिले। जरूरत है कि हम सुरक्षा के प्रति लापरवाही न बरतें।
बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन