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बांध बम के जरिये विध्वंसक मंसूबे

11:36 AM Jun 09, 2023 IST
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यूक्रेन के द्नीपर नदी की धाराओं को पनबिजली में परिवर्तित करने के मकसद से काखोव्का बांध 1956 में बनाया गया था। फिलहाल यह रूसी कंट्रोल में है, नोवा काखोव्का शहर इसकी ज़द में आता है। 44 मीटर की ऊंचाई वाले बांध की परिधि में 2155 वर्गमील इलाके आते हैं, जिसमें यूक्रेन के हिस्से वाला खेरसॉन शहर भी शामिल है। 6 जून, 2023 को इस बांध के अचानक से ढह जाने से तबाही मच गई है, जिसमें यूक्रेन वाला हिस्सा सबसे अधिक प्रभावित हुआ है। अधिकारियों का कहना है कि बांध से निकलने वाले पानी की वजह से 17 हज़ार लोगों को सुरक्षित स्थानों पर विस्थापित करना पड़ा है।

यूक्रेन वाले हिस्से में तीन लोगांे के मौत की ख़बर मिली है। काखोव्का जलाशय से जापोरिजजिया न्यूक्लियर पॉवर प्लांट की कूलिंग के लिए वाटर सप्लाई की जाती है। यह एटमी प्लांट अभी रूस के हिस्से में है। आशंका है कि अगर क्षतिग्रस्त बांध के रास्ते जलाशय से बहुत ज्यादा पानी निकल गया, तो रिएक्टरों को ठंडा करने के लिए पानी नहीं बचेगा, इससे अकल्पनीय तबाही मच सकती है। काखोव्का जलाशय से एक नहर के ज़रिये रूस के कब्जे वाले क्राइमिया को भी पानी की आपूर्ति की जाती रही है। बांध के टूटने का दुष्प्रभाव वहां भी जान-माल पर पड़ा है।

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यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने बांध को उड़ाने के लिए रूसी फौजों को जिम्मेदार ठहराया है। लेकिन क्या यूक्रेन बदले की कार्रवाई करेगा? वाशिंगटन पोस्ट ने पश्चिमी इंटेलिजेंस एजेंसियों के हवाले से ख़बर दी है कि यूक्रेनी सैनिक नार्ड स्ट्रीम-1 और 2 पाइप लाइनों को उड़ा सकते हैं, जिससे यूरोप के लिए रूस गैस सप्लाई करता है। ये पहले भी ऐसी गड़बड़ी कर चुके हैं। लेकिन लगता नहीं कि यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ऐसा कोई आत्मघाती क़दम उठायेंगे, वो भी ऐसे समय जब यूरोप उनके साथ खड़ा हो, और नाटो का समर्थन मिल रहा हो। 7 जून, 2023 को यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने ‘यूरोपियन प्रावदा’ को दिये इंटरव्यू में कहा कि वाशिंगटन पोस्ट इसका सुबूत दे। राष्ट्रपति मैं हूं, और कमांडर इन चीफ वेलेरी को ऑर्डर मैं ही देता हूं।

सितंबर, 2022 में नॉर्वे की पेट्रोलियम सेफ्टी अथॉरिटी ने जानकारी दी कि नॉर्ड स्ट्रीम-1 में दो जगहों से रिसाव हुआ है। इनमें से एक स्वीडिश इकोनॉमिक जोन के पास है, दूसरा डेनिश जोन के पास। दोनों रिसाव डेनिश द्वीप बोर्नहोम के उत्तर पूर्व में हैं। नार्ड स्ट्रीम पाइप लाइन से छेड़छाड़ का शक वाशिंगटन पर भी गया था, क्योंकि यूक्रेन युद्ध से पहले अमेरिका की भृकुटि ‘नार्ड स्ट्रीम वन और टू’ दोनों की वजह से तनी रहती थी। उन दिनों नेटवर्क ऑपरेटर नॉर्ड स्ट्रीम एजी का कहना था, ‘एक ही दिन नॉर्ड स्ट्रीम गैस पाइपलाइनों में तीन जगहों पर हुए नुकसान की घटना हैरान करती है। ऐसा पहले कभी हुआ नहीं।’

काखोव्का जलाशय टूटने के बाद यूक्रेन के लिए जान-माल की रक्षा का संकट उपस्थित हो चुका है। दक्षिणी खेरसोन के इलाके में केमिकल वाला पानी फैल चुका है। मछलियां बेतहाशा मरी हैं, जिससे महामारी फैलने की आशंका है। लोगों को मछलियां न खाने की चेतावनी यूक्रेन प्रशासन ने दे रखी है। एंटीबायोटिक्स और हैजारोधक दवाओं को स्टॉक किया जा रहा है। तुर्की के राष्ट्रपति रिज़ेब तैय्यप एर्दोआन ने पुतिन को फोन करके काखोव्का जलाशय तोड़े जाने की जांच किसी अंतर्राष्ट्रीय आयोग से कराने का प्रस्ताव दिया है। पुतिन ने फोन पर जवाब में एर्दोआन को कहा है कि यह बर्बर कृत्य है, हम भी चाहते हैं कि जांच हो, दूध का दूध और पानी का पानी हो।

इस तरह की घटनाएं अंतर्राष्ट्रीय अपराध की श्रेणी में आती हैं, ऐसा कई विशेषज्ञ कह रहे हैं। इंटरनेशनल बार एसोसिएशन के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. मार्क एलिस का कहना है, ‘सैन्य जरूरतों के मद्देनजर बांध जैसे सिविलियन टार्गेट पर हमला हो सकता है लेकिन अगर नागरिकों को हुए नुकसान के मुकाबले फौजी लाभ बहुत कम हो तो इसे अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन माना जा सकता है।’ लेकिन बांध तोड़ने की वजह से किसी शासन प्रमुख या सैन्य कमांडर को शायद ही सज़ा सुनाई गई है।

यों, बांध तोड़े जाने की घटना पहली बार नहीं हुई है। फरवरी, 2022 में जब रूसी फौजें यूक्रेन की राजधानी किएव की ओर बढ़ रही थीं, यूक्रेन की सेना ने इरपिन बांध को उड़ा दिया था। इससे निकले पानी के बहाव ने रूसी टैंकों को आगे बढ़ने से रोक दिया था। दूसरी घटना सितम्बर, 2022 में हुई। तब दक्षिणी यूक्रेन में क्रेवेई री शहर में काराचुनिव्स्क जलाशय पर बना बांध मिसाइल हमले में तबाह हो गया था। इससे हज़ारों लोगों को घर-बार छोड़कर भागना पड़ा था।

ठीक से देखा जाए, तो बांधों को बम के रूप में इस्तेमाल करने का अपराध अतीत में भी होता रहा है। फौजी इतिहासकार अगस्त, 1941 की घटना को बताते हैं, जब जर्मन फौज आगे बढ़ रही थी, और सोवियत सेना तेजी से पीछे हट रही थी। उस समय सोवियत कमांडरों ने जापोरिजजिया पर बने बांध और पुलों को ध्वस्त करने का फैसला लिया, ताकि शत्रु को नीप्रो नदी पार करने से रोका जा सके। वो इसमें सफल भी रहे। सोवियत कमांडरों ने नागरिकों को किसी तरह की चेतावनी जारी नहीं की थी। जापोरिजजिया बांध विस्फोट से 3,000 लोग मारे गए थे।

काखोव्का जलाशय तोड़ने का दोष पुतिन पर मढ़ने की कूटनीति इस समय तेज़ हो चुकी है। जर्मन चांसलर ओलाफ शुल्त्ज़ बांध के विध्वंस को लेकर पुतिन के विरुद्ध आक्रामक हैं। उन्होंने इसके हवाले से सिविलियन पर हमले को मुद्दा बनाया है। संभव है, यह यूरोपियन संसद में इस हफ्ते बहस का सबब बने। डब्ल्यूडीआर को इंटरव्यू देते हुए ओलाफ शुल्त्ज़ ने कहा कि पुतिन युद्ध की स्थिति से बाहर नहीं निकल कर हिंसा को बढ़ावा देने पर तुले हुए हैं। क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्रि पेस्कोव ने उल्टा यूक्रेन को इसके लिए ज़िम्मेदार ठहराया है। चीन ने बांध वाले इलाके में बसे लोगों को अचानक से उजड़ जाने को लेकर संवेदना व्यक्त करते हुए रूस के पाले में ही वक्तव्य दिया है।

बांध को तोड़ने के लिए कौन दोषी है, यह तय नहीं हो पा रहा है, लेकिन आरोपों के प्रक्षेपास्त्र दोनों तरफ से दागे जा रहे हैं। भारत ने काखोव्का बांध के विध्वंस पर कोई आधिकारिक बयान अब तक जारी नहीं किया है। पिछले दिनों पीएम मोदी जब हिरोशिमा में थे, यूक्रेन विवाद सुलझाने का आग्रह उनसे किया गया था। ऐसे माहौल में क्या पुतिन भारत में आहूत जी-20 की शिखर बैठक में आ पायेंगे? यह भी एक बड़ा सवाल है।

लेखक ईयू-एशिया न्यूज़ के नयी दिल्ली संपादक हैं।

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