उपलब्धि के बावजूद
हम देश की उस दोहरी उपलब्धि पर गर्व करें, जिसमें हमने लक्षित आबादी के आधे लोगों को एक वैक्सीन लगा दी है और एक दिन में एक करोड़ लोगों को वैक्सीन लगाने का लक्ष्य हासिल किया। देश ने नब्बे करोड़ वयस्क आबादी को कोविड-19 के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करने हेतु टीकाकरण का लक्ष्य रखा है। पिछले दिनों हमने इसमें से आधी आबादी को टीका लगा दिया। हालांकि अभी पंद्रह फीसदी आबादी को ही दोनों टीके लगे हैं। बीते शुक्रवार को हमने एक करोड़ टीके लगाने का लक्ष्य हासिल किया। गत सोलह जनवरी को शुरू हुए टीकाकरण अभियान में यह सबसे बड़ी उपलब्धि है। टीकाकरण पर राष्ट्रीय विशेषज्ञ सलाहकार समूह ने उम्मीद जगाई है कि सवा करोड़ टीके एक दिन में लगाने का लक्ष्य हासिल किया जायेगा। इस उम्मीद का आधार यह है कि पहले दस करोड़ टीके जहां 85 दिन में लगे, वहीं पचास से साठ करोड़ टीके लगने में महज 19 दिन लगे। टीकाकरण का अनुभव व टीकों की उपलब्धता भी इसमें सहायक साबित होगी। निस्संदेह यह हमारे स्वास्थ्य तंत्र की बड़ी उपलब्धि है। दरअसल, 31 दिसंबर तक देश की वयस्क आबादी के टीकाकरण लक्ष्य को हासिल करने के लिये रोज एक करोड़ लोगों को टीका लगाने की जरूरत है। लेकिन अक्तूबर में तीसरी लहर की आशंकाओं के बीच टीकाकरण के उच्च लक्ष्य हासिल करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए, जिसमें केंद्र के साथ ही राज्यों की भी उतनी ही जिम्मेदारी बनती है। यह अच्छी बात है कि अगस्त माह में टीकाकरण अभियान में हमने आशातीत सफलता हासिल की है, जिसमें उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश व महाराष्ट्र सबसे आगे हैं। हिमाचल में भी 99 फीसदी लक्षित आबादी को एक टीका लग चुका है। राज्य ने तीस नवंबर तक पूर्ण टीकाकरण का लक्ष्य रखा है। देश में 63 करोड़ लोगों को अब तक एक टीका लग चुका है। हालांकि, यह चीन के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा है, लेकिन पूरी आबादी को टीका लगाने का लक्ष्य अभी चुनौती है।
फिर भी हम न भूलें कि बीते रविवार को कोरोना संक्रमण का आंकड़ा पिछले दो माह में सर्वाधिक पैंतालीस हजार से ऊपर पहुंचा है। इसी चिंता के चलते मोदी सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों समेत कई कोरोना से जुड़े प्रतिबंधों का दायरा सितंबर तक बढ़ा दिया। स्वास्थ्य विशेषज्ञ लगातार तीसरी लहर को लेकर चेता रहे हैं। वैसे तो कोरोना संक्रमण के आंकड़ों में आया उछाल केरल में तेजी से बढ़ते आंकड़ों की वजह से है, लेकिन शेष देश को भी अतिरिक्त सतर्कता बरतनी चाहिए। केरल सरकार से पूछना चाहिए कि तुष्टीकरण के चलते एक धार्मिक आयोजन पर कोरोना कर्फ्यू में तीन दिन की छूट सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को नजरअंदाज करके क्यों दी गई थी? क्यों कोरोना महामारी से सफलता से जूझने वाली स्वास्थ्य मंत्री को हटाया गया, जिसके प्रयासों की विश्व स्वस्थ्य संगठन ने भी तारीफ की थी? साथ ही महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, असम आदि राज्यों में संक्रमण की बढ़ती दर चिंता की बात है दरअसल, कोरोना संक्रमण में आई गिरावट को देखते हुए हमने मान लिया कि शायद कोरोना की विदाई हो गई। हमने बचाव के प्राथमिक उपायों, मसलन मास्क लगाना, सुरक्षित दूरी और साबुन से हाथ धोने की अनदेखी शुरू कर दी। चिंता की बात यह है कि देश में रक्षाबंधन व जन्माष्टमी के साथ ही त्योहारों की शृंखला शुरू हो गई है। जिस अवधि में तीसरी लहर की आशंका है, उसमें पितृपक्ष, नवरात्रों, दशहरा व दीपावली की पर्व शृंखला शुरू होती है। वहीं स्कूल-कालेज खोलने का सिलसिला शुरू हो गया है। बच्चों के लिये देश में निर्मित वैक्सीन क्लीनिकल ट्राइल में तो सफल रही है लेकिन टीका उपलब्ध होने में वक्त लगेगा, तब तक सावधानी ही विकल्प है। निश्चित रूप से त्योहारी माहौल में लापरवाही खतरनाक साबित हो सकती है। अमेरिका-यूरोपीय देशों में ऐसी लापरवाही के चलते कोरोना संकट एक बार फिर गंभीर हुआ है। जब तक हम लक्षित आबादी को दोनों डोज उपलब्ध नहीं करा देते, तब तक कोविड-19 से हमारी लड़ाई जारी रहनी चाहिए।