असहमति के बावजूद जगी भविष्य की उम्मीदें
डॉ. शशांक द्विवेदी
पिछले दिनों दक्षिण कोरिया के बुसान में एक वैश्विक बैठक प्लास्टिक प्रदूषण पर रोक लगाने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय संधि पर सहमति बनाने के उद्देश्य से आयोजित की गई थी। लेकिन यह बैठक बिना किसी समझौते के समाप्त हो गई। कुल 175 देशों के प्रतिनिधि महत्वपूर्ण मुद्दों, जैसे प्लास्टिक उत्पादन और वित्त पर रोक लगाने, पर सहमति बनाने में विफल रहे।
यह अंतर-सरकारी वार्ता समिति (आईएनसी) की पांचवीं बैठक थी, जो 2022 से प्लास्टिक प्रदूषण पर एक कानूनी संधि तैयार कर रही है। एक हफ्ते तक चली बातचीत में प्लास्टिक उत्पादन और हानिकारक रसायनों पर रोक लगाने की मांग और केवल कचरे के प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करने वाले देशों के बीच गहरे मतभेद दिखे। परिणामस्वरूप, मसौदा अधिकांश चिंताओं को अनसुलझा छोड़कर समाप्त हुआ। सभी देशों ने वार्ता जारी रखने के लिए अगले साल फिर से मिलने पर सहमति जताई। इस दौरान, सन्धि के लिए मसौदे और देशों की स्थिति पर बेहतर समझ विकसित हुई, लेकिन महत्वपूर्ण मुद्दों पर मतभेद अब भी बने हैं।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेस के अनुसार, ‘हमारी दुनिया प्लास्टिक प्रदूषण में डूब रही है। हर वर्ष, हम 46 करोड़ टन प्लास्टिक का उत्पादन करते हैं, जिसमें से अधिकांश को जल्दी ही फेंक दिया जाता है।’ उन्होंने चेतावनी दी कि वर्ष 2050 तक महासागरों में प्लास्टिक की मात्रा मछलियों से अधिक हो सकती है। इसके अलावा, हमारी रक्तधारा में प्लास्टिक के सूक्ष्म कण स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन रहे हैं, जिनके बारे में हमने अभी पूरी तरह से समझना शुरू किया है।
हर दिन, कूड़े से भरे लगभग 2,000 ट्रकों के बराबर प्लास्टिक, महासागरों, नदियों और झीलों में फेंक दिया जाता है। यही प्लास्टिक वन्यजीवों एवं मानव स्वास्थ्य के लिए गम्भीर ख़तरा पैदा कर रहा है। माइक्रोप्लास्टिक के कण, भोजन, पानी, मिट्टी और यहां तक कि मानव अंगों व नवजात शिशुओं के प्लासेंटा तक में पाए गए हैं। वर्ष 2022 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा के प्रस्ताव द्वारा अपनाई गई सन्धि के तहत, प्लास्टिक के पूरे जीवन चक्र पर ध्यान देने के प्रयास किए गए हैं। इनमें एक क़ानूनी रूप से बाध्यकारी संधि के ज़रिए प्लास्टिक के उत्पादन, डिज़ाइन और निपटान के लिए उचित समाधान तलाश किया जाना शामिल है।
भारत का मत है कि प्लास्टिक प्रदूषण को खत्म करने के लिए एक कानूनी उपकरण होना चाहिए। प्लास्टिक के विकल्पों की उपलब्धता, पहुंच, वहनीयता के लिए तकनीक हस्तांतरण, वित्तीय सहायता और क्षमता निर्माण पर भी चर्चा करके एक्शन लिया जाना चाहिए। वर्ष 2022 में केंद्र सरकार ने प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम जारी किया था। इसके अनुसार प्लास्टिक की वस्तुओं से होने वाले प्रदूषण की गंभीरता को देखते हुए 1 जुलाई, 2022 से सिंगल यूज प्लास्टिक सामान पर प्रतिबंध लगाया गया। इसके अलावा 30 सितंबर, 2021 से प्लास्टिक कैरी बैग की मोटाई को कम-से-कम 75 माइक्रोन किया गया जो पहले 50 माइक्रोन हुआ करती थी।
दुनिया भर में दैनिक जीवन में एकल प्रयोग वाले प्लास्टिक, बोतलों व अन्य उत्पादों को लेकर जागरूकता का प्रसार किया जाता है। उसकी रि-साइकिलिंग, प्लास्टिक के उचित निपटान व सतत् उपयोग के तरीक़े सुझाए जा रहे हैं। लेकिन उत्पादन के आरम्भ में, कृषि और उससे संबद्ध क्षेत्रों में, प्लास्टिक के इस्तेमाल की समस्या तेज़ी से उभरकर सामने आई है। केवल भूमि पर ही नहीं, जलीय कृषि उत्पादन में भी हर स्तर पर प्लास्टिक का उपयोग किया जाता है, फिर चाहे वो टैंक, जाल, फ़ीड बैग, लाइनर, पाइपिंग, पॉलीस्टाइनिन बक्से, उत्पाद परिवहन या फिर रासायनिक के भंडारण के लिए हों।
एफएओ के अनुमानों के मुताबिक़ अभी तक यह माना जाता रहा है कि महासागरों में पाए जाने वाला लगभग 80 प्रतिशत प्लास्टिक कचरा, जलीय कृषि जैसे समुद्री उद्योगों के बजाय भूमि-आधारित स्रोतों से उत्पन्न होता है। अब यह स्पष्ट हो रहा है कि विभिन्न प्रकार के मछली पकड़ने वाले गियर भी समुद्र को नुक़सान पहुंचा सकते हैं। कृषि में इस्तेमाल उत्पादों से होने वाले प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिए संग्रह, पुन: उपयोग और रि-साइकिलिंग प्रमुख उपाय हैं। जिन प्लास्टिक वस्तुओं को प्रयोग के बाद एकत्र नहीं किया जा सकता, उन्हें पर्यावरण अनुकूल, बायोडिग्रेडेबल व सुरक्षित विकल्पों से बदला जाना चाहिए। किसी भी समझौते में प्लास्टिक के जीवन चक्र का ध्यान रखना होगा, एकल-इस्तेमाल और कम अवधि की प्लास्टिक की समस्या से निपटना होगा। इसके साथ ही, कचरा प्रबन्धन को मज़बूती देते हुए वैकल्पिक सामग्री को बढ़ावा देना होगा। इसके लिए देश के साथ-साथ वैश्विक कानून होने चाहिए, जिससे प्लास्टिक प्रदूषण पर समय रहते लगाम लगाई जा सके।
पिछले दो वर्ष से प्लास्टिक प्रदूषण पर क़ानूनी रूप से बाध्यकारी उपाय के लिए अन्तर-सरकारी स्तर पर वार्ता जारी थी, जिसमें भूमि व समुद्री पर्यावरणों का भी ध्यान रखा गया, और उसके बाद बुसान में यह बैठक आयोजित की गई। इसमें भले ही अभी कोई सहमति न बनी हो लेकिन इस बैठक ने भविष्य में संभावनाओं के द्वार तो खोल ही दिए हैं।
लेखक विज्ञान विषयों के जानकार हैं।