कन्या पूजन से मनोरथ पूर्ण
मुकेश ऋषि
कन्या-पूजन की परंपरा प्राचीनकालिक है। कन्या-पूजन करके ही दैवी लाभ का अधिकारी बनना संभव होता है। कन्या-पूजन करने से नारी के प्रति पवित्र दृष्टि, भावना, सोच का मन-मस्तिष्क यानी अंतःकरण में जन्म होता है। इसके अभाव में अभीष्ट कार्य की सिद्धि संभव नहीं होती है।
नवरात्र अनुष्ठान की सफलता कन्या-पूजन, ब्रह्म दक्षिणा, ब्रह्म भोज पर आधारित है। जिसमें मन की पवित्रता अभीष्ट रूप में फलदायक व कल्याणकारी है। कन्या के प्रति मन की पवित्रता, शुचिता, वंदन, पूजन का भाव ही अनुष्ठान का ध्येय है। इसलिए दो बड़ी नवरात्रि अनुष्ठान के अतिरिक्त गुप्त नवरात्रि में भी कन्या पूजन का विशेष महत्व है। कन्याएं साक्षात् देवी का रूप होती हैं। वे शक्तिस्वरूपा हैं। वे अत्यंत पवित्र मानी जाती हैं। नौ दिन कन्या पूजन श्रेष्ठ है, लेकिन संभव न हो तो अष्टमी व नवमी तिथि के दिन तीन से नौ वर्ष की कन्याओं का पूजन किए जाने की परंपरा है।
धर्मशास्त्रों के अनुसार एक कन्या की पूजा से ऐश्वर्य, दो की पूजा से भोग और मोक्ष, तीन की पूजा-अर्चना से धर्म, अर्थ व काम, चार की पूजा से राज्यपद, पांच की पूजा से विद्या, छह की पूजा से छह प्रकार की सिद्धि, सात की पूजा से राज्य, आठ की पूजा से संपदा, अष्टसिद्धि और नौ की पूजा से नवनिधि तथा पृथ्वी के प्रभुत्व की प्राप्ति होती है। कुछ लोग नवमी के दिन भी कन्या पूजन करते हैं, लेकिन अष्टमी के दिन कन्या पूजन करना अधिक श्रेष्ठ रहता है। कन्याओं की संख्या 9 हो तो अति उत्तम है। नहीं तो दो कन्याओं से भी धार्मिक अनुष्ठान पूर्ण होता है। कन्याओं की आयु 10 साल से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।
शास्त्रों में दो साल की कन्या कुमारी, तीन साल की त्रिमूर्ति, चार साल की कल्याणी, पांच साल की रोहिणी, छह साल की कालिका, सात साल की चंडिका, आठ साल की शांभवी, नौ साल की दुर्गा और दस साल की कन्या सुभद्रा मानी जाती हैं। भोजन कराने के बाद कन्याओं को दक्षिणा देनी चाहिए। इस प्रकार महामाया भगवती प्रसन्न होकर मनोरथ पूर्ण करती हैं।
कन्या के पैर धो कर उन्हें आसन पर बैठाएं। हाथों में मौली बांधें, माथे पर रोली से तिलक लगाएं। भगवती दुर्गा को उबले हुए चने, हलवा, पूरी, खीर, पूआ व फल आदि का भोग लगाया जाता है। यही प्रसाद कन्या को भी दिया जाता है। कन्या को कुछ न कुछ दक्षिणा भी दी जाती है। कन्या को लाल चुन्नी और चूड़ियां भी चढ़ाई जाती हैं। कन्याओं को घर से विदा करते समय उनसे आशीर्वाद के रूप में थपकी लेने की भी मान्यता है। ध्यान रहे कि कन्याओं के साथ एक भैरव यानी लड़के का भी पूजन होता है।<