गठबंधन को बता मजबूरी, निर्दलीयों से घटा रहे दूरी
दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 8 जून
पिछले करीब साढ़े तीन वर्षों से चल रहे भाजपा-जजपा गठबंधन में अब ‘दरारें’ पड़ने लगी हैं। दोनों दलों के बीच बढ़ रही दूरियां साफ नज़र आ रही है। अब तो एक-दूसरे के खिलाफ जुबानी जंग भी बढ़ गई है। बेशक, शुरुआत भाजपा की ओर से हुई है, लेकिन गठबंधन सहयोगी जजपा भी इस मुद्दे पर चुप्पी साधने के मूड में नहीं है। भाजपा नेताओं के बयानों पर पलटवार भी किया जा रहा है और यह भी जताने व बताने की कोशिश हो रही है कि गठबंधन दोनों की मर्जी से हुआ था।
अहम बात यह है कि भाजपा के कई वरिष्ठ नेता जहां जजपा के साथ गठबंधन को ‘मजबूरी’ बता रहे हैं वहीं निर्दलीय विधायकों से दूरी घटाई जा रही है। बेशक, सात निर्दलीयों में से छह ने भाजपा को समर्थन दिया हुआ है, लेकिन अब एकाएक निर्दलीय विधायकों की ‘इज्जत’ बढ़ने लगी है। इस पूरी कवायद को भविष्य की राजनीति से ही जोड़कर देखा जा रहा है। कारण साफ हैं ndash; अगर किसी स्टेज पर जाकर भाजपा को जजपा से अलग होना भी पड़ता है तो सरकार में बने रहने के लिए निर्दलीयों का सहारा ही चाहिए होगा।
दोनों पार्टियों के बीच चल रही जुबानी जंग के बीच अब हरियाणा मामलों के प्रभारी बिप्लब कुमार देब ने निर्दलीयों के साथ भी पींग बढ़ानी शुरू कर दी हैं। बृहस्पतिवार को उन्होंने चरखी दादरी से निर्दलीय विधायक सोमबीर सिंह सांगवान के साथ बैठक की। देब ने खुद अपने ट्विटर पर पोस्ट करते हुए लिखा कि सोमबीर सिंह सांगवान के साथ शिष्टाचार भेंट हुई और राजनीतिक विषयों पर चर्चा हुई। अब यह सामान्य घटना तो हो नहीं सकती। सांगवान के साथ सुबह मुलाकात हुई। सूत्रों का कहना है कि पांच निर्दलीय विधायकों को एक साथ देब ने अपनी कोठी पर बुलाया था। सांगवान शाम को कहीं व्यस्त थे, इसलिए उनसे पहले मुलाकात हुई। इसके बाद रणधीर सिंह गोलन, धर्मपाल गोंदर और राकेश दौलताबाद ने रात करीब साढ़े आठ बजे बिप्लब कुमार देब से मुलाकात की। नयनपाल रावत बाहर होने की वजह से नहीं आ पाए। बताते हैं कि रावत शुक्रवार को नई दिल्ली में देब से मुलाकात करेंगे। चौ़ रणजीत सिंह को सरकार ने पहले ही कैबिनेट मंत्री बनाया हुआ है। निर्दलीय विधायकों की मुलाकात के बड़े राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं।
गठबंधन पर टिका-टिप्पणी तो पहले भी कई बार होती रही है। यह मामला ‘दिल्ली दरबार’ तक भी पहुंचा है। हर बार मामला शांत होता रहा। इस बार चूंकि खुद हरियाणा मामलों के प्रभारी बिप्लब कुमार देब और केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान खुलकर गठबंधन पर तीर चला रहे हैं तो मामला गंभीर नज़र आने लगा है। भाजपा नेताओं की बयानबाजी को इसलिए भी हल्के में नहीं लिया जा सकता है कि इसके पीछे उनके खुद के राजनीतिक कारण हो सकते हैं।
केंद्र और हरियाणा के बीच सेतू की भूमिका निभाने वाली नेताओं द्वारा भी अगर गठबंधन के रिश्तों पर अब सवाल उठाए जा रहे हैं तो यही माना जाएगा कि कहीं न कहीं केंद्रीय नेतृत्व की भी इस पूरे घटनाक्रम में सहमति हो सकती है। कम से कम हरियाणा मामलों के प्रभारी और केंद्रीय मंत्री इस तरह के बयान अपने स्तर पर तो नहीं देंगे। दोनों दलों के बीच गठबंधन रिश्तों में खटास पैदा करने में उचाना कलां विधानसभा क्षेत्र केंद्र बिंदू बनकर उभरा है।
उचाना को प्रदेश की हॉट सीट माना जाता है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि इस सीट पर पूर्व केंद्रीय मंत्री चौ़ बीरेंद्र सिंह का वर्चस्व रहा है। हालांकि एक बार इनेलो सुप्रीमो चौ़ ओमप्रकाश चौटाला, बीरेंद्र सिंह को यहां से शिकस्त दे चुके हैं। 2019 के विधानसभा चुनावों में बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेमलता को जजपा के दुष्यंत चौटाला के हाथों हार का मुंह देखना पड़ा। भाजपा प्रभारी ने दो-टूक कहा, उचाना से अगला चुनाव प्रेमलता लड़ेंगी और वे विधायक बनेंगी।
यहां बता दें कि दुष्यंत ने इस सीट से चालीस हजार से अधिक मतों के अंतर के साथ चुनाव जीता था। दुष्यंत कई बार यह कह चुके हैं कि वे अगला चुनाव भी उचाना से ही लड़ेंगे। प्रभारी के बयान के बाद केंद्रीय मंत्री संजीय बालियान ने सोनीपत में कहा कि हरियाणा में भाजपा का जजपा के साथ मजबूरी का गठबंधन है। भाजपा नेताओं के बयानों के बाद पार्टी के वरिष्ठ नेता डॉ़ केसी बांगड़ और प्रदेशाध्यक्ष सरदार निशान सिंह पलटवार कर चुके हैं। दुष्यंत ने भी इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट कर दिया है।
7 में से 6 भाजपा के साथ
2019 के विधानसभा चुनावों में 7 निर्दलीय विधायक चुने गए। शुरुआत में सभी ने भाजपा को समर्थन दिया था। बाद में रोहतक नगर निगम में कथित घोटाले को लेकर महम विधायक बलराज कुंडू का सरकार से छत्तीस का आंकड़ा हो गया। कुंडू ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया। बाकी छह विधायक – चौ रणजीत सिंह, नयनपाल रावत, धर्मपाल गोंदर, रणधीर सिंह गोलन, सोमबीर सिंह सांगवान व राकेश दौलताबाद सरकार के साथ हैं। रणजीत सिंह को सरकार ने कैबिनेट मंत्री बनाया हुआ है। अधिकांश निर्दलीयों को चेयरमैनी देकर एडजस्ट किया गया। सिरसा से हलोपा विधायक गोपाल कांडा ने भी सरकार को समर्थन दिया हुआ है।
सरकार गठन के लिए चाहिए 45 एमएलए
90 सदस्यों वाली हरियाणा विधानसभा में सरकार गठन के लिए 46 विधायकों की जरूरत है। आदमपुर उपचुनाव में जीत के बाद भाजपा विधायकों की संख्या 41 हो चुकी है। जजपा के 10 विधायकों का समर्थन है। अगर गठबंधन टूटता है तो भाजपा को सरकार में बने रहने के लिए पांच और विधायकों की जरूरत होगी। छह निर्दलीय विधायक खुलकर सरकार के साथ हैं। गोपाल कांडा का भी समर्थन है। ऐसी स्थिति में भी भाजपा के पास कुल संख्या बल 48 बनता है।
दलीय स्थिति
पार्टी विधायक
भाजपा 41
कांग्रेस 30
जजपा 10
निर्दलीय 07
इनेलो 01
हलोपा 01
कुल 90
मेरी मुलाकात भाजपा प्रदेश प्रभारी बिप्लब देब से हुई है। ऐसी मुलाकात होती हैं तो राजनीतिक चर्चा जरूर होती है। हरियाणा के राजनीतिक हालात को लेकर उन्होंने फीडबैक लिया है। कुछ मुद्दों पर सुझाव भी मांगे हैं।
सोमबीर सिंह सांगवान, विधायक दादरी
अभी बिप्लब देब की दिल्ली कोठी पर पहुंचा हूं। मेरे साथ धर्मपाल गोंदर और राकेश दौलताबाद भी हैं। हमें बुलाया गया तो हम पहुंच गए। किस मुद्दे पर और क्या बात होगी, इस बारे में तो कुछ नहीं कह सकते।
रणधीर गोलन, पुंडरी विधायक