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गहराई

07:26 AM Jun 02, 2024 IST
गहराई
चित्रांकन : संदीप जोशी
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भारत डोगरा
नयनतारा सच में अपने माता-पिता की आंखों का तारा ही थी, और वह भी एकमात्र तारा। नयनतारा होनहार, तेजस्वी व खूबसूरत थी, पर इसके बावजूद घमंड उसे दूर-दूर तक नहीं छू गया था। वह स्वभाव में नम्र और खुशहाल थी, और उसकी भोली-भाली बातें अजनबियों तक का मन मोह लेती थीं।
जहां तक माता-पिता का सवाल था तो वे अपनी इकलौती बेटी के किसी भी नाज-नखरे को उठाने को सदा तैयार रहते। यह बात अलग है कि उनकी बेटी ज्यादा कुछ मांगती ही नहीं थी।
नयनतारा के जन्मदिन से बहुत दिन पहले ही उसके माता-पिता यह तैयारी शुरू कर देते हैं कि इस बार यह किस तरह मनाया जाए और कौन-सा नया उपहार नयनतारा को भेंट दिया जाए।
एक दिन नयनतारा ने कुछ इठलाते हुए कहा- मम्मी! इस बार बर्थ डे पर स्वयं ही आपसे कुछ मांगने वाली हूं। आप मेरी बात मानोगी न?
मां को खुशी तो हुई पर कुछ आश्चर्य भी हुआ क्योंकि नयनतारा अपने से कुछ मांगती नहीं थी।
हां, हां, बेटी तू जो कहेगी मैं और तेरे पापा वही हाजिर करेंगे।
पर मां यदि खर्च 30,000 रुपए तक हुआ?
हां, हां तो भी। उससे ज्यादा हो तो भी।
नहीं मम्मी, मैंने हिसाब लगा लिया है। उससे ज्यादा नहीं होगा।
अब ज्यादा हिसाब-किताब मत कर। यह तो बता कि क्या चाहिए?
मम्मी! मैं बेघर लोगों के एक छोटे शेल्टर में गई थी। वहां सर्दी के तीन महीनों में नाश्ते के लिए 30 हजार रुपये चाहिए। रोज सुबह वहां के सभी लोगों को गर्म चाय-परांठे मिल जाएं, तो इससे अधिक खुशी मेरे लिए कोई और नहीं होगी। मैंने देखा कि कई लोग भूखे ही काम पर निकल जाते हैं।
नयनतारा के माता-पिता इस अजीब से उपहार की मांग से पहले कुछ हैरान जरूर हुए, पर उन्होंने दिल की गहराई में गर्व भी महसूस किया कि उनकी बेटी इतनी करुणामयी है कि अपने बर्थ डे पर कुछ न मांग कर सबसे गरीब लोगों के बारे में ही सोचती रही है। उन्हें याद आया कि कुछ दिन पहले कालेज के सोशल वर्क कार्यक्रम के अन्तर्गत नयनतारा व उसकी सहेलियों ने बेघर लोगों के लिए कुछ दिन वालयंटीयर के रूप में काम भी किया था।
मम्मी-पापा की स्वीकृति मिलते ही नयनतारा ने अपने कालेज के कुछ सहयोगियों के साथ भाग-दौड़ शुरू कर दी ताकि नाश्ते की व्यवस्था सुचारु रूप से चल सके। ऐसे कामों में उसे निमेश से सबसे अधिक सहयोग मिलता था। निमेश उसकी कक्षा का एक निरंतर किसी न किसी विवाद को उठाने वाला बहुत तेज-तर्रार छात्र था। किसी भी अन्याय या अनुचित बात की जानकारी मिलने पर और कोई बेशक चुप्पी लगा जाए, पर निमेश के विरोधी स्वर जरूर उठते थे। सच कहें तो निमेश की इसी खूबी ने उसकी ओर नयनतारा को विशेष आकर्षित भी किया था।
जब कालेज के सोशल वर्क विभाग का होमलैस प्रोजेक्ट समाप्त हो गया तो अधिकांश छात्र बेघर लोगों को भूल गए। पर नयनतारा सदा उनके लिए कुछ करने का अवसर तलाशती ही रहती थी और इसमें उसे और किसी का सहयोग मिले या न मिले, पर निमेश की सहायता अवश्य मिलती थी। नयनतारा कुछ न कुछ डोनेशन एकत्र कर शेल्टर में विभिन्न कार्यों के लिए पहंुचाती थी तो निमेश उसके साथ शेल्टर में जाता था और जो भी जरूरी कार्य हों, भाग-दौड़ करता था। इतना ही नहीं, वह देर तक बेघर लोगों से बातें भी करता रहता, उनसे ढेर से सवाल पूछता।
लौटते हुए नयनतारा कुछ हैरानी से पूछती- यह इतनी देर तक तुम होमलैस लोगों से क्या बतियाते रहते हो।
कॉजिज, नयन, कॉजिज। मैं यह समझना चाहता हूं कि आखिर किन कारणों से बेघर लोगों की संख्या इतनी तेजी से बढ़ रही है।
ओह।
हां नयन! तुम आज सौ बेघर लोगों की सहायता के लिए भाग-दौड़ करती हो पर कल सौ की जगह दो सौ हो जाएंगे, और परसों तीन सौ तो क्या होगा?
ओह।
इसलिए मैं कहता हूं कि जो बेघर हैं उनकी मदद करो पर साथ में उन कारणों की भी पड़ताल करो जिनके कारण अधिक लोग बेघर हो रहे हैं व उन कारणों को भी दूर करो।
हमेशा की तरह निमेश की इन बातों में नयनतारा को बहुत दम लगा व वह देर तक इस बारे में सोचती रही।
एक दिन मौसम बहुत सुहावना था, कालेज के पीरियड भी कम थे। नयनतारा ने यह सोचकर निमेश से घूमने का प्रस्ताव रखा कि वह तुरंत मान जाएगा, पर उसने मना कर दिया।
नहीं, नयन आज नहीं, आज मुझे बहुत जरूरी काम से जाना है।
कुछ आहत, कुछ हैरान होकर नयनतारा न पूछा- आखिर कहां जाना है?
मोहनपुर की झोपड़ी बस्ती देखी है न मार्किट के पीछे, आज उसे तोड़ने बुलडोजर आ रहे हैं। मैं और मेरे कई साथी वहां जा रहे हैं।
और भी हैरान होकर नयनतारा ने पूछा- तो तुम वहां क्या करोगे?
हमने बहुत-सी जानकारियां एकत्र की हैं, वकीलों की राय भी ली है। हम सब कागज-पत्र जुटा कर वहां झोपड़ियां तोड़ने आए अधिकारियों को दिखाएंगे व कहेंगे कि वे यह तोड़-फोड़ की कार्यवाही न करें। पहले ही कोविड के समय में लोग बहुत परेशान और बेरोजगार हो चुके हैं।
और अगर उन्होंने तुम्हारी बात न मानी तो?
तब हम धरना-प्रदर्शन करेंगे, शांतिपूर्ण विरोध करेंगे। तो भी हमारी बात न मानी तो जो लोग बेघर होंगे, उनके लिए खाने-पीने व अन्य सहायता की व्यवस्था करेंगे।
नयनतारा कुछ समय तक सोचती रही। फिर उसने दृढ़ता से कहा- चलो मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगी।
निमेश कुछ झिझका- ठीक से सोच लो नयन। वहां स्थिति बहुत कठिन और यहां तक कि खतरनाक भी हो सकती है। गिरफ्तारी तक की नौबत आ सकती है।
कुछ भी हो, मैं तो चलूंगी।
वे जब मोहनपुर पहंुचे तो वहां बहुत तनावग्रस्त स्थिति थी। निमेश के कई साथी अधिकारियों से तीखी बहस कर रहे थे। पर उनकी कोई दलील नहीं सुनी गई व झोपड़ी तोड़ने के आदेश दे दिए गए। इस स्थिति में कई युवकों के साथ निमेश भी बुलडोजर के आगे लेट गया। पुलिस ने मार-पीट शुरू कर दी व धर-पकड़ शुरू की गई। नयनतारा बीच-बचाव के लिए दौड़ी तो वह भी पकड़ में आ गई।
पुलिस स्टेशन पर कुछ समय बाद वे सब पहुंचा दिए गए पर नयनतारा व अन्य दो लड़कियों को महिला पुलिस अलग स्थल पर ले गई।
यहां एक महिला पुलिस अधिकारी ने उनसे कहा- आप भले घर की लड़की हैं। आप कैसे इन लोगों के चक्कर में फंस गई। खैर, आप तीनों को रिहा कर दिया गया है। अब आप अपने घर जा सकती हैं पर आगे से इन गड़बड़ियों से दूर रहो।
नयनतारा घर आ तो गई पर उसका मन बुरी तरह बेचैन था। वह जगह-जगह फोन कर निमेश के बारे में जानने का प्रयास करती रही। अंत में देर रात तक पता चला कि उसे भी चेतावनी देकर फिलहाल छोड़ दिया गया है। यह पता चलने पर उसने निमेश को फोन किया तो इस बार उसका नंबर मिल गया।
निमेश, तुम ठीक तो हो न?
मैं तो ठीक हूं नयन पर मोहनपुर की बस्ती उजड़ गई।
यह बहुत दुखद है निमेश पर हम कर क्या सकते हैं? क्यों न हम शेल्टर में ही मदद करते रहें, क्योंकि वहां तो वास्तव में हम होमलैस लोगों की कुछ मदद कर सकते हैं।
कॉजिज, नयन, कॉजिज। हमें लोगों के बेघर बनने के कारणों को भी तो देखना होगा कि नहीं?

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