लाहौर से एक अस्पताल भी आया दिल्ली
सर गंगाराम इस मायने में बेमिसाल हैं कि दिल्ली और लाहौर में अपने नाम के अस्पतालों के जरिए दोनों मुल्कों के लोगों की जिन्दगी के दुखों को बराबर कम करने में जुटे हैं। वर्ष 1947 में हिंदुस्तान के बंटवारे के साथ लोग ही उधर से इधर नहीं आए, दिल्ली का एक नामी सर गंगा राम अस्पताल ट्रस्ट भी लाहौर से दिल्ली आ गया। दिल्ली के करोल बाग के नजदीक जिस सड़क पर यह है, उसका नाम भी सर गंगा राम अस्पताल रोड ही है। यानी अस्पताल से ही सड़क का नामकरण हुआ है। सर गंगा राम अस्पताल की स्थापना 1921 में लाहौर (अब पाकिस्तान) में सर गंगा राम के हाथों से हुई थी। जमीन भी सर गंगा राम ने ही भेंट स्वरूप दी और बनवाया भी। आज उसमें 831 बेड हैं। बंटवारे के बाद, 1947 में, लाहौर के अस्पताल का जोड़ीदार अस्पताल इसी नाम से दिल्ली में बनाने की योजना पर उनके भाई और पद्मविभूषण डॉ. धर्मवीर की कोशिशों से शुरू हुआ। अस्पताल की आधारशिला तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अप्रैल, 1951 में रखी और उन्हीं के हाथों अप्रैल, 1954 में उद्घाटन भी हुआ। करीब 11 एकड़ जमीन पर फैला अस्पताल आज करीब 700 बेड का मल्टी स्पेशिलिटी हॉस्पिटल है।
सर गंगा राम का उपनाम अग्रवाल था। जन्म 13 अप्रैल, 1851 में लाहौर (अब पाकिस्तान) में हुआ और मृत्यु 10 जुलाई 1927 को लंदन में हुई। उन्हें ‘आधुनिक लाहौर का पितामह’ कहा जाता है। क्योंकि आधे से ज्यादा लाहौर के निर्माण का श्रेय उन्हें ही जाता है। उन्हें अंग्रेजों ने राय बहादुर और सर की उपाधियों से नवाजा। वह पेशे से सिविल इंजीनियर थे और उन्होंने 12 साल तक लाहौर में इंजीनियर के तौर पर काम किया। उन्होंने लाहौर का जनरल पोस्ट ऑफिस, लाहौर म्यूजियम, मॉडल टाउन, गंगा राम ट्रस्ट बिल्डिंग वगैरह इमारतों और कॉलोनियों को डिजाइन किया और बनवाया। सर गंगा राम अस्पताल की तरह पहले बालक राम मेडिकल कॉलेज के नाम से जाना जाता फातिमा जिन्ना मेडिकल कॉलेज भी सर गंगा राम की देन है। यही नहीं, लाहौर स्थित हेले कॉलेज ऑफ कॉमर्स, नेशनल कॉलेज ऑफ आर्ट्स, सर गंगा राम हाई स्कूल (अब नाम है लाहौर कॉलेज फॉर वुमन) उन्होंने ही बनवाए थे।
गंगा राम के तीन बेटे थे- सेवक राम, हरि राम और बालक राम। तीनों बंटवारे के साथ दिल्ली आ बसे थे। सर गंगा राम की संगमरमरी प्रतिमा दिल्ली के अस्पताल में मौजूद है। दिल्ली में अस्पताल और सड़क है, तो लाहौर में अस्पताल और अब के पाकिस्तान में एक गांव गंगापुर भी उन्हीं के नाम पर है। इतिहास में दर्ज है कि सर गंगाराम ने ही बचियाना रेलवे स्टेशन से अपने गांव गंगापुर तक रेलवे लाइन बिछवाई थी, जिस पर घोड़ों से ट्रेन खींचते थे। तब गंगापुर के वासियों के लिए सर गंगा राम के सौजन्य से घोड़ों की ट्रेन का सफर मुफ्त था। सर गंगा राम दानी थे और पढ़े-लिखे भी कम नहीं थे। सनzwj;् 1873 में उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग की परीक्षा गोल्ड मेडल के साथ पास की। उन्हें असिस्टेंट इंजीनियर की नौकरी मिली और दिल्ली में इम्पीरियल एसेम्बलेज की बिल्डिंग बनाने का काम सौंपा गया। उनके नाम से 1957 में आईआईटी (रुड़की) में ‘गंगा भवन’ नाम से स्टूडेंट्स के लिए होस्टल बनाया गया था।
सर गंगाराम इस मायने में बेमिसाल हैं कि दिल्ली और लाहौर में अपने नाम के अस्पतालों के जरिए दोनों मुल्कों के लोगों की जिन्दगी के दुखों को बराबर कम करने में जुटे हैं। वह पैदा हुए और बड़े हुए ब्रिटिश इंडिया में। थोमसन इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (रुड़की) में दाखिला लिया। सर गंगा राम इस कॉलेज के ग्रेजुएट होने वाले पहले छात्र थे। सर गंगा राम ट्रस्ट का गठन कर उन्होंने समाज सेवा का काम शुरू किया। लाहौर में एक मामूली डिस्पेंसरी से शुरू सफर आज दिल्ली और लाहौर समेत दो मुल्कों में इलाज करने में जुटा है। दोनों अस्पताल ‘आगाज-ए-दोस्ती’ पैगाम फैलाने में जुटे हैं। दोनों अस्पतालों में इलाजी तालमेल और सहयोग का रिश्ता आज तक बाकायदा कायम है।
बंटवारे के दिनों का वाक्या है। लाहौर की मॉल रोड पर सर गंगा राम की आदमकद प्रतिमा लगी थी। बंटवारे की मार-काट का जिक्र कलम के फनकार सआदत हसन मंटो ने कुछ यूं किया है, ‘…हुजूम ने रुख बदला और सर गंगाराम के बुत पर टूट पड़ा। लाठियां बरसाईं और पत्थरबाजी पर उतारू हो गए। एक ने प्रतिमा के मुंह पर तारकोल मल दिया। दूसरे ने ढेर सारे पुराने जूते जमा किए और उनका हार बना कर बुत के गले में पहनाने के लिए आगे बढ़ने लगा। तभी पुलिस आ धमकी और गोलियां बरसाने लगी। जूतों का हार पहनाने वाला लहू-लुहान होकर लुढ़क गया। तभी दंगइयों की भीड़ में से कोई चीखा, ‘इसे फौरन गंगा राम अस्पताल ले जाओ… फौरन!’
पंडित नेहरू के कर कमलों द्वारा उद्घाटन करने के अलावा भी अस्पताल से नेहरू-गांधी परिवार का नाता रहा है। कांग्रेस मुखिया सोनिया गांधी तो आज तक अपने चेकअप और इलाज के लिए भी इसी अस्पताल का रुख करती हैं। और भी कई सेलेब्रिटीज़ इलाज के लिए यहीं आते रहे हैं। ‘टाइगर’ नाम से मशहूर पूर्व भारतीय क्रिकेट कप्तान मंसूर अली खान पटौदी का इलाज भी यहीं हुआ करता था।