फ्लैट के कब्जे में देरी अब सेवा में कमी
श्रीगोपाल नारसन
उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत किसी बिल्डर द्वारा मकान में रहने योग्य ‘कब्जा प्रमाणपत्र’ प्राप्त करने में विफलता सेवा में कमी का मामला माना जाएगा। न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना की पीठ ने विधिक सिद्धांत प्रतिपादित किया कि यदि आवास खरीदार कब्जा प्रमाणपत्र की कमी के कारण उच्च करों और पानी के शुल्क का भुगतान करने के लिए मजबूर होते हैं तो बिल्डर पैसे वापस करने के लिए उत्तरदायी है। उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटारा आयोग के एक आदेश के विरुद्ध दायर अपील पर सुनवाई करते हुए सहकारी हाउसिंग सोसाइटी द्वारा बिल्डर की चूक के कारण नगर निकाय प्राधिकारों को भुगतान किए गए अतिरिक्त करों और शुल्कों की वापसी की मांग को स्वीकार कर लिया है।
उपभोक्ता आयोग ने किया था खारिज
राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग (एनसीडीआरसी) ने उपभोक्ता की शिकायत को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि यह उपभोक्ता विवाद से संबंधित मामला नहीं है,बल्कि वसूली की प्रक्रिया से संबंधित है। उच्चतम न्यायालय ने फैसला दिया- ‘मौजूदा मामले में प्रतिवादी कब्जा प्रमाणपत्र के साथ सोसायटी को फ्लैट का स्वामित्व हस्तांतरित करने के लिए जिम्मेदार था। प्रतिवादी द्वारा कब्जा प्रमाणपत्र प्राप्त करने में विफलता सेवा में कमी है, जिसके लिए प्रतिवादी उत्तरदायी है।’ यह भी कि अपीलकर्ता सोसायटी के सदस्यों के उपभोक्ता के रूप में अधिकार हैं कि वे कब्जा प्रमाणपत्र नहीं रहने से उत्पन्न होने वाले परिणाम के कारण दायित्व को लेकर मुआवजे के लिए अनुरोध करें।’
कोर्ट ने नकारा अप्रत्याशित घटना का तर्क
एक अन्य मामले में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के जस्टिस राम सूरत राम मौर्या,और डॉ. इंदर जीत सिंह की खंडपीठ ने बिल्डर के ‘अप्रत्याशित घटना’ यानी एक्ट ऑफ गॉड के तर्क को खारिज कर दिया और देरी के लिए फ्लैट खरीदार को मुआवजा देने का निर्देश दिया। शिकायतकर्ताओं को गुड़गांव के सेक्टर 57 में एक कंपनी के प्रोजेक्ट में फ्लैट आवंटित किया गया था। एग्रीमैंट के अनुसार, अप्रत्याशित परिस्थितियों के अधीन और शर्तों के अनुसार समय-समय पर सभी भुगतान प्राप्त होने पर फ्लैट के पूरा होने की प्रतिबद्ध तारीख उस टॉवर के निर्माण की तारीख से 36 महीने या समझौते के निष्पादन की तारीख से बाद की थी, जिसमें फ्लैट स्थित है। यूनिट को 55,41,184/- रुपये मूल्य के साथ निर्माण से जुड़ी योजना के तहत बुक किया गया था।
शिकायतकर्ताओं को कंपनी द्वारा आवंटन रद्द करने की धमकी के तहत स्टांप फीस और रजिस्ट्रेशन सहित कुल 72,25,417/- रुपये भुगतान करने के लिए मजबूर किया। वहीं अपार्टमेंट सौंपने में करीब एक वर्ष की देरी हुई। जबकि बिल्डर कम्पनी ने कहा कि राष्ट्रीय आयोग के पास आर्थिक क्षेत्राधिकार नहीं है। दोनों पक्षों को सुनने के बाद राष्ट्रीय आयोग ने कहा कि यह तर्क कि इसमें आर्थिक क्षेत्राधिकार का अभाव है, वैध नहीं है। वहीं निर्धारित अवधि के भीतर फ्लैट प्रदान करने में डेवलपर की विफलता सेवा में कमी होगी।
पेमेंट के बाद भी नहीं मिली चाबी
एक अन्य मामले में महाराष्ट्र राज्य उपभोक्ता अदालत ने फैसला दिया है कि फ्लैट का कब्जा देने में देरी सेवा में कमी है। उपभोक्ता अदालत ने एकता संकर डेवेलपर्स को निर्देश दिया है कि वह खरीदार कैप्टन भूपिंदर पाल सिंह को बतौर मुआवजा एक लाख रु. तथा मुकदमा खर्च के 25 हजार रु. अदा करें। जनवरी 2007 में भूपिंदर पाल सिंह ने डेवेलपर से दो फ्लैटों के लिए एक समझौता किया था जिनका कब्जा 31 दिसंबर 2007 तक दिया जाना था। समय पर कब्जा नहीं मिला तो सिंह ने जुलाई 2008 में उपभोक्ता अदालत में शिकायत देकर फ्लैट का कब्जा दिलाने तथा कब्जा देने में देरी के लिए मुआवजे की मांग की थी। सिंह की दलील थी कि समझौते पर हस्ताक्षर से पहले उन्होंने 29.84 लाख रु. तथा 28.32 लाख रु. अदा किए। इसके बाद भी चाबी नहीं मिली तो उन्होंने अर्जी दायर की। अंतत: बिल्डर ने उन्हें नवंबर 2009 में फ्लैटों का कब्जा दिया। वहीं उपभोक्ता अदालत में बिल्डर ने आरोप से इनकार किया। राज्य उपभोक्ता अदालत ने फैसला दिया कि कब्जा देने में देरी के कारण बिल्डर सेवा में कमी का दोषी है।
-लेखक उत्तराखंड राज्य उपभोक्ता आयोग के वरिष्ठ अधिवक्ता हैं।