प्रेम की परिभाषा
महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ बनारस में रात को एक कवि सम्मेलन से लौटते हुए एक बगीचे में अचानक ठहर गये और मधुर गीत गाने लगे। एक सहायक उनसे होटल चलकर आराम करने का बार-बार आग्रह कर रहा था। वे बोले बस एक गीत और गुनगुना लू्ं, फिर चलते हैं। वे उस सहायक से बोले, ‘तुमको पता है, यह बगीचा प्रेम की दास्तान है।’ उसने कहा, ‘जी, बिल्कुल नहीं पता महाकवि।’ तभी निराला ने संकेत करके कहा, ‘वह देखो उस क्यारी में उन फूलों के आंचल में भंवरे गहरी नींद में सो रहे हैं। भंवरा दिनभर पूरे बगीचे में शोर करता है लेकिन वही भंवरा शाम होने पर फूल की पंखुड़ियों में शरण लेने जाता है। क्योंकि वहां प्रेम है। प्रेम की ही वजह से वह यह आश्रय मंजूर कर लेता है। मुझे भी प्रकृति से प्रेम है, इसलिए मैं यहां दूर से उनको देखता हूं पर उनके आराम में खलल नहीं करता। आप जिसे चाहते हैं, उसे तंग कैसे कर सकते हैं! सुनो प्रिय जिसने जीवन में प्रेम में डुबकी नहीं लगाई, उसका तो जीवन रूखा है। सही मायने में जीवन से प्रेम घटा दो, फिर शून्य ही बचता है, जीवन में फिर कोई सार नहीं रह जाता।
प्रस्तुति : पूनम पांडे