ओलंपिक के बाद ही बजेगा दीपक पूनिया के ब्याह का ढोल
प्रथम शर्मा/हप्र
झज्जर, 8 अगस्त
झज्जर के गांव छारा की संकरी गली,उसमें किसानी करने वाले ग्रामीणों के परिवार और उसी में मौजूद कॉमनवेल्थ में गोल्ड विजेता दीपक पूनिया का खंडहरनुमा मकान। हम बात कर रहे हैं हाल में ही कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल हासिल करने वाले दीपक पूनिया के गांव छारा व उनके परिवार की। बेशक दीपक ने कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड हासिल कर लिया हो, लेकिन परिवार का निशाना अभी भी ओलंंपिक है।
ओलंंपिक के बाद ही दीपक के सिर पर सेहरा सजेगा। यह कहना के परिवार का। साल 2020 में ओलंंपिक के अंदर गोल्ड से चूकने वाले दीपक पूनिया के कॉमनवेल्थ गेम में गोल्ड हासिल करने तक का सफर बड़ा ही कष्टकारी रहा है। तीन भाई-बहनों में दीपक सबसे छोटा है। दोनों बहनों की शादी हो चुकी है और मां का भी दो साल पहले देहावसान हो गया था।
रिश्तेदारों का कहना है कि दीपक के लिए उसके पिता सुभाष ने काफी मेहनत की। जमींदारा कमजोर होते हुए भी दीपक के लिए हर रोज दिल्ली सामान सुभाष पहुंचाया करते थे। जब दीपक छारा गांव में पहलवानी सीखता था तो रोज़ाना दोनों समय दीपक को सुभाष ही अखाड़े में छोड़ने जाया करते थे। उनकी माली हालत भी कमजोर थी।
गांव के दो अखाड़ों में दीपक ने कुश्ती के दांव-पेंच कई साल तक सीखे। अपने बेटे को मुकाम तक पहुंचाने में सुभाष ने काफी मेहनत की है।
पारिवारिक पृष्ठभूमि
परिवार पृष्ठभूमि की बात करें तो दीपक के पिता एक छोटे से किसान होने के साथ-साथ लंबे समय से दूध बेचने का काम करते रहे हैं। बेटा ओलंंपिक में गोल्ड लाकर देश की शान बढ़ाए इसके लिए दीपक के पिता सुभाष पूनिया ने न सिर्फ गांव छारा में ही दीपक को कई सालों तक कुश्ती के गुर सिखाएं बल्कि जब वह दिल्ली छत्रसाल स्टेडियम में कई साल पहले कुश्ती की प्रैक्टिस करने गया तो उस दौरान परिवार की माली हालत काफी कमजोर थी। बेटे को मुकाम तक पहुंचाने के लिए पिता सुभाष ने दिल्ली जाकर दूध बेचना स्वीकार किया। जिसका उसे फायदा यह मिला कि प्रतिरोज दीपक को गांव व घर से ही बना हुआ खाना पहुंचाया जाने लगा बल्कि दूध, घी व पहलवानी से जुड़ा अन्य सामान भी गांव से ही भेजा गया। दीपक की बहन पिंकी बताती है कि इस दौरान उनके पिता को काफी परेशानियों का भी सामना करना पड़ा। गांव मेें ही टूटे फूटे खंडरनुमा मकान में रहकर पूरा परिवार गुजर बसर करता था। लेकिन अब परिवार दीपक के कॉमनवेल्थ गेम में गोल्ड जीतने पर काफी खुश है। परिवार को उम्मीद है कि दीपक ओलंंपिक में भी ठीक वैसा ही झंडा गाड़ेगा,जैसा की उसने कॉमनवेल्थ में कमाल करके दिखाया है।
क्या कहते हैं परिवार वाले
दीपक को शुरू ही पहलवानी सीखने का शौक था। दीपक के ग्रेजुएशन करने के साथ-साथ बचपन से ही गांव के अखाड़े में पहलवानी सीखी। बाद में वह दिल्ली चला गया। उसके पिता की आर्थिक हालत काफी कमजोर होने के बावजूद भी पिता ने अपना फर्ज पूरा किया। उसके लिए खान-पान की चीजें गांव से ही भेजी जाती रही हैं। अब उम्मीद है कि दीपक ओलंंपिक में भी गोल्ड हासिल करेगा। ओलंंपिक के बाद ही उसके ब्याह के लिए परिवार लड़की देखना शुरू करेगा।