कर्ज का मर्ज
कभी देश की किसानी के लिये आदर्श कहे जाने वाले पंजाब के किसान आज कर्ज के मर्ज से इतना क्यों त्रस्त होते जा रहे हैं, यह गंभीर विमर्श का विषय होना चाहिए। निस्संदेह, मौजूदा हालात में कृषि अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये प्रभावी कदम उठाने की सख्त जरूरत है। हाल ही में लोकसभा में पेश की गई नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट की रिपोर्ट पंजाब के किसानों की गंभीर वित्तीय स्थिति को उजागर करती है। जो उन्हें देश में संस्थागत ऋण लेने वाले किसानों की सूची में शीर्ष पर रखती है। यह रिपोर्ट कई चौंकाने वाले खुलासे करती है। रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख किया गया है कि राज्य के लगभग पच्चीस लाख किसानों ने कृषि कार्यों के लिये विभिन्न बैंकों से ऋण लिया है। वहीं दूसरी ओर प्रत्येक किसान पर करीब तीन लाख रुपये का कर्ज चढ़ा है। इससे पहले देश की संसद को सूचित किया गया था कि पंजाब में वर्ष 2017 से 2021 तक करीब एक हजार किसानों ने अपनी जीवन लीला आत्महत्या करके समाप्त कर ली थी। दरअसल, जांच-पड़ताल में यह बात भी सामने आई थी कि इन आत्महत्याओं के मूल में कर्ज का भारी बोझ ही था। कर्ज न चुका पाने या कर्ज वसूली के तौर-तरीकों से आहत किसान मौत को गले लगाना अंतिम समाधान मानने लग जाते हैं। ऐसा भी नहीं है कि इस संकट से सिर्फ किसान ही जूझ रहे हैं, कमोबेश खेतिहार मजदूरों के लिये भी परिदृश्य उतना ही निराशाजनक है। दरअसल, पिछले साल अर्थशास्त्रियों के पटियाला स्थित एक थिंक टैंक द्वारा कराये गये एक अध्ययन में पाया गया कि पंजाब में खेतों में काम करने वाले मजदूरों पर उनकी वार्षिक आय से चार गुना कर्ज चढ़ा हुआ था। यह कर्ज औसतन चौबीस हजार रुपये बताया गया था। यह अध्ययन कई गंभीर मुद्दों की ओर ध्यान दिलाता है। इस अध्ययन में बताया गया कि वर्ष 2015 से 2019 के बीच 898 खेतिहर मजदूरों ने भी आत्महत्या करके जीवन लीला समाप्त कर ली थी।
निस्संदेह, ये हालिया आंकड़े कृषि की चिंताजनक स्थिति की ओर इशारा करते हैं। वहीं दूसरी ओर ये आंकड़े उन कृषि नीतियों पर सवालिया निशान लगाते हैं, जो अनाज उत्पादक किसानों की आर्थिक परेशानियों को कम करने के लिये लागू करने की बात देश के नीति-नियंता करते हैं। पंजाब की आम आदमी सरकार विगत में दावे करती रही है कि वह अपनी किसान कल्याण नीति के निर्माण की दिशा में तेजी लायेगी। साथ ही यह भी कह रही है कि वह चुनाव के दौरान किसानों की समस्याओं को दूर करने के लिये किये गये वायदे को पूरा करने के लिये प्रतिबद्ध है। यह साफ है कि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के दौरान लाई गई ऋण माफी योजना के प्रभावी परिणाम सामने नहीं आये हैं। जो इस बात की ओर इशारा करते हैं कि किसानों की किस्मत बदलने के लिये सिर्फ राहत पैकेज से काम नहीं चलेगा। इसके लिये कुछ ठोस कदम उठाने की भी जरूरत होगी। दरअसल कृषि अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिये प्रभावी और महत्वपूर्ण स्थायी कदम उठाने की जरूरत है। मौजूदा ऋण संकट के अलावा नीति-नियंताओं को लगातार बढ़ते ग्लोबल वार्मिंग के खतरों के बीच व्यापक रणनीति बनाने की जरूरत होगी। इसके अंतर्गत जहां पर्यावरण अनुकूल और अधिक उपज देने वाली फसलों की किस्मों के विविधीकरण पर बल देने की जरूरत है, वहीं भूजल संकट को भी नियंत्रित करने की आवश्यकता होगी। साथ ही फसलों के उन बीजों के शोध व अनुसंधान पर भी काम करना होगा जो कम बारिश व अधिक तापमान के बीच उत्पादकता को बढ़ा सकती हैं। अन्यथा हमारी खाद्य शृंखला संकट में पड़ सकती है। इसमें पराली जलाने से उपजे संकट का भी समाधान निकालना होगा। इसमें दो राय नहीं कि जो किसान देश के नागरिकों की थाली में भोजन पहुंचाने के लिये तन झुलसाती गर्मी, रक्त जमाती सर्दी और बारिश में कड़ी मेहनत करते हैं, वे बेहतर सुविधाओं के हकदार हैं। ताकि उनके लिये कृषि महज घाटे का सौदा साबित न हो।