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ओबराय शृंखला के सरदार का अवसान

08:03 AM Nov 15, 2023 IST
स्मृति शेष : बिक्की ओबराय

विवेक शुक्ला

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पृथ्वीराज सिंह ओबराय (पीआरएस) को भारत के होटल और टूरिज्म सेक्टर के शिखर पुरुष का दर्जा दिया जा सकता है। उन्हें कॉर्पोरेट संसार में बिक्की ओबराय भी कहा जाता था। उनके मंगलवार को निधन से भारत ने एक इस तरह की शख्सियत को खो दिया है जिसने देश में कई विश्वस्तर के होटल खड़े किए। उन्होंने पिछले साल ही लगभग 93 साल की उम्र में ओबराय होटल ग्रुप के चेयरमैन पद को छोड़ा था। बेशक, भारत से बाहर विश्वस्तरीय ओबराय होटलों के चलते ही भारत की इमेज उजली हुई। बिक्की ओबराय बहुत आहत हुए थे जब उनके प्रिय ट्राइडेंट होटल को मुंबई में हुए 26/11 के हमलों में तबाह कर दिया गया था। वहां पर पाकिस्तानी आतंकियों ने दर्जनों बेगुनाहों को मार डाला था। पीआरएस ओबराय दुखी थे पर वे दुनिया को संदेश देना चाहते थे कि वे और भारत राख के ढेर पर से भी उठना जानते हैं। तब उनकी सरपरस्ती में ओबराय ट्राइडेंट होटल का नए सिर से रेनोवेशन हुआ। वे कई महीनों के लिये दिल्ली से मुंबई चले गए थे। उन्होंने दिल खोलकर पैसा लगाय़ा। यानी उन्होंने इसे राख के ढेर से फिर खड़ा किया।
वे अपने जीवन के हर पल को सार्थक बनाने में जुटे रहते थे। बेशक से मानव जीवन क्षणभंगुर हो फिर भी उसे इंसान को अपने सतकर्म से सार्थक बनाना चाहिए। वे सदैव बेहतर कर्म करते रहना चाहते थे। उनका जीवन बेदाग रहा है। उनके समूह पर कभी किसी तरह का आरोप नहीं लगा। उन पर कभी किसी बैंक या अन्य वित्तीय संस्थान से धन लेने के बाद उसे वापस न करने का आरोप नहीं लगाया।
बिक्की ओबराय भविष्य द्रष्टा थे। उन्हें ईश्वर ने यह शक्ति दी थी कि वे जान लें किस शहर या देश में इनवेस्ट करने से लाभ होगा। उन्होंने गुरुग्राम में अपना होटल खोला। उसमें तगड़ा इनवेस्टमेंट किया। तब कुछ लोग दबी जुबान से कह रहे थे कि उनकी गुरुग्राम की इनवेस्टमेंट का लाभ नहीं होगा। पर वे सब गलत साबित हुए। पिछले 15 सालों में गुरुग्राम बदल गया है। अब यह शहर आईटी हब बन गया है। यहां हजारों विदेशी रहते हैं और आते जाते हैं। इनका गुरुग्राम का होटल धड़ल्ले से चल रहा है।
दरअसल शिखर पर बैठे शख्स से यही उम्मीद रहती है कि वह भविष्य की संभावनाओं को जान ले। इस लिहाज से बिक्की ओबराय लाजवाब थे। वे यह साबित कर पाए कि आप ईमानदारी से बिजनेस की दुनिया में आगे बढ़ सकते हैं। यकीन मानिए कि आर्थिक उदारीकरण से पहले भारत के टाटा, गोदरेज, महिन्द्रा तथा ओबराय जैसे ब्रांड ही देश से बाहर जाने जाते थे। तब तक आईटी क्रांति और आईटी कंपनियों को आना था। भारत आने वाले विदेशी व्यापारी और पर्यटक मुंबई के ओबराय ट्राइडेंट तथा दिल्ली के ओबराय इंटरकांटिनेंटल पर जान निसार करते हैं। इन दोनों को बिक्की ओबराय ने अपने हाथों से बनाया था। इसकी योजना बनाने से लेकर इसे शुरू करने तक वे इससे जुड़े रहे थे। वे सारे फैसले खुद लेकर अपने पिता सरदार मोहन सिंह ओबराय को बता भर देते थे। उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपने पिता को इस बात के लिये तैयार किया था कि वे दिल्ली में भी एक होटल और खोलें। हालांकि तब तक ओबराय ग्रुप का ओबराय मेडिंस होटल चल रहा था।
यह 1960 के दशक के शुरू की बातें हैं। तब दिल्ली में लक्जरी होटल के नाम पर अशोक होटल तथा इंपीरियल होटल ही कायदे के होटल थे। ओबराय पिता-पुत्र ने अपने दिल्ली के होटल के लिए जमीन ली डॉ. जाकिर हुसैन रोड पर। यह जगह दिल्ली ग़ोल्फ क्लब से सटी है। बिक्की ओबराय ने इसके डिजाइन का काम सौंपा पीलू मोदी को। हालांकि उनके पास देश-दुनिया के तमाम आर्किटेक्ट अपने डिजाइन लेकर आए थे। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के बाल सखा और टाटा अध्यक्ष रूसी मोदी के बड़े भाई पीलू मोदी सियासी शख्सियत होने के साथ-साथ प्रयोगधर्मी आर्किटेक्ट भी थे। उन्होंने इसका शानदार डिजाइन बनाया। यह 1965 में शुरू हुआ।
भारत में लक्जरी होटल की जब भी बात होती है, तो ओबराय इंटरकांटिनेंटल होटल का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। पीआरएस ओबराय विश्व नागरिक होने के बाबजूद दिल से हिन्दुस्तानी थे। उनकी इस सोच के चलते सभी ओबराय होटलों में आने वाले गेस्ट का होटल स्टाफ नमस्कार करके ही स्वागत करते हैं। वे मानते थे कि नमस्कार ही भारत की पहचान है। जब कोई ओबराय होटल में आए तो उसे पता चले कि इस होटल का संबंध भारत से है।
बिक्की ओबराय जानते थे कि अपने ब्रांड को कैसे बाजार में सम्मान दिलवाया जाता है। वे होटल इंडस्ट्री के भीष्म पितामह थे। वे 1988 में ओबराय होटल के चेयरमेन बने थे। उनसे पहले उनके पिता सरदार मोहन सिंह ने ही ओबराय होटल ग्रुप की कमान संभाल रखी थी। उल्लेखनीय है कि मोहन सिंह ने सबसे पहले शिमला में ओबराय होटल की शुरुआत की थी। वे अपने पिता के जीवनकाल में ही अपने ग्रुप के लिए अहम फैसले लेने लगे थे।
बिक्की ओबराय बड़े ही आस्थावान सिख थे। वे राजधानी के गुरुद्वारा बंगला साहब में नियमित रूप से पहुंचते थे। वहां शबद कीर्तन सुनते। उन्हें अपने होटलों के बलिष्ठ भुजाओं वाले सुरक्षा कर्मियों से पंजाबी में बतियाना भी पसंद था।

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