जुगनू की रोशनी में दिन फिरना
बेचारे टट्टू जब भी घोड़ों को देखते अपनी किस्मत पर रोते। विचारते हममें और इनमें आखिर अंतर ही कितना है! भारी अंतर हो तो कोई भी समझौता कर लें लेकिन मामूली अंतर को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। टट्टू विचारते कि काश! हम भी घोड़ों की तरह थोड़े बड़े होते! थोड़े से बड़े होने भर से बड़ा अंतर आ जाता है। रातोंरात पूछ-परख बढ़ जाती है। विज्ञापनविदों ने कहा भी है कि बड़ा है तो बेहतर है। मगर कटु सत्य है एक प्रजाति से होने के बाद भी टट्टू घोड़ों की बराबरी नहीं कर सकते। एक बेल पर लगने वाला कोई तुम्बा संतों संग काशी चला जाता है तो दूसरा घूरों पर सड़ता है। घोड़े होने के लिए बहुत कुछ अपने अंदर और बाहर समेटना पड़ता है तब जाकर कोई घोड़ा होता है।
कहते हैं समय आने पर घूरे के भी दिन फिरते हैं, फिर टट्टू तो चलते-फिरते जीव हैं, उनके दिन कैसे न फिरते? दौड़ में बने रहने का यही तो फायदा है। टट्टुओं के ऐसे दिन फिरे कि पखवाड़े भर में फ्री फंड में दुनिया फिर आए। जीवन में ऐसा मौका फिर आए न आए! हुआ यूं कि गांव-गांव, जनपद-जनपद जुगनुओं को अपने लोकरथ खींचने के लिए टट्टुओं की जरूरत पड़ी। जुगनुओं को एक दिन सूरज हो जाने का भ्रम है और टट्टुओं को घोड़े हो जाने की उम्मीद। भ्रम से बड़ा हमदर्द नहीं और उम्मीद से बड़ा सहारा नहीं। सो ताबड़तोड़ टट्टुओं की बाड़ाबंदी की जाने लगी। वो समय और था जब बाड़ाबंदी को कोई जीव पसंद नहीं करता था।
बोझा ढोने वाले टट्टुओं ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि एक दिन मौजां ही मौजां होंगी। उन्होंने किया ही क्या था अपने पर भरोसा दिखाने वाली गउओं को ‘बेस्ट ऑफ़ लक’ कर अपने लक का लॉक खुलवाने बाड़ों में बंद हो लिए थे। गउओं की मजबूरी है गधे हो, टट्टू हो या कि निखट्टू हो, भरोसा करना ही पड़ता है। कई बार भरोसा न हो तो भी दिखाना पड़ता है।
जुगनुओं के इशारे पर गधे टट्टुओं को लगाम लगाकर गंगा नहला लाए, पचमढ़ी घुमा लाए, काशीपुर से जयपुर की घोड़ा मंडियां भी दिखा दी। बोल मेरे आका कि तर्ज पर टट्टुओं ने दूध मांगा तो खीर खिलाई और दवा मांगी तो दारू पिलाई। शर्त बस इतनी कि रथयात्रा वाले दिन तक अज्ञातवास में रहें और जाकर सीधे जुगनुओं के रथ में जुत जाएं। टट्टू घोड़ों की तरह अड़ियल नहीं। सो उन्हें तो बंदी होकर भी चंदी से मतलब। रथयात्रा के मौके पर उन्होंने वैसा ही किया जैसा उन्हें रटाया गया । टट्टुओं के सहारे जुगनू चमक उठे।
रोशनी के रथ पर सवार होकर जुगनू खुश हैं। रोशनी में नहाए टट्टू खुश हैं। मगर इस चकाचौंध से गधे दुखी हैं कि काश! वे भी टट्टू हो गए होते। घोड़े चिंतित हैं कि जगमगाते जुगनू कल को सूरज और टट्टू कहीं घोड़े न हो जाएं! विचारशून्य गउएं खड़ी हैं।