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मुफ्त रेवड़ी बांटने के खतरे

11:36 AM Jun 05, 2023 IST

देश हित नहीं

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देश का दुर्भाग्य ही है कि वोट पाने के लिए राजनेताओं एवं पार्टियों द्वारा मुफ्त में रेवड़ियां बांटने की प्रथा खूब फल-फूल रही है। इसका सबसे बड़ा खतरा है जनता में काम न करने की प्रवृत्ति का पनपना तथा देश-प्रदेश में विकास एवं योजनाओं के लिए धन जुटाने की समस्या। जिसके लिए एक ही रास्ता है कर्ज लेकर काम चलाना, जिसका असर हम अपने देश के कई राज्यों तथा विश्व के कई देशों की गिरती अर्थव्यवस्था से देख चुके हैं। इसलिए इस प्रथा को देश हित में सभी राजनीतिक दलों तथा जनता को मिलकर बन्द करना होगा।

एमएल शर्मा, कुरुक्षेत्र

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राजनीतिक भ्रष्टाचार

आजकल चुनावों से पहले मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्त में आटा, बिजली, पेंशन, बेकारी भत्ता, प्लॉट या मकान, महिलाओं को बसों में मुफ्त यात्रा की सुविधा आदि तरीके इस्तेमाल किए जाते हैं। कांग्रेस ने अभी-अभी कर्नाटक विधानसभा चुनाव इसी तरीके से जीता है। सुप्रीम कोर्ट ने मुफ्त रेवड़ी कल्चर पर एतराज किया है। चुनाव आयोग को इसे आचार संहिता का उल्लंघन घोषित कर देना चाहिए। सवाल यह पैदा होता है कि इन मुफ्त की सुविधाओं के लिए पैसा कहां से आएगा। या तो सरकारों को उधार लेना पड़ेगा या फिर नए कर लगाने पड़ेंगे। सवाल उठता है कि राजनेताओं को सत्ता तक पहुंचाने के लिए हम ज्यादा टैक्स क्यों दें। यह तो एक प्रकार से राजनीतिक भ्रष्टाचार है।

शामलाल कौशल, रोहतक

विकास विरोधी

मुफ्त की रेवड़ियां बांटने की बजाय राज्य सरकारों को युवाओं के लिए रोजगार उपलब्ध करवाने चाहिए। दरअसल, मुफ्त की घोषणाओं को कार्यान्वित करने से देनदारियां इतनी बढ़ जायेंगी कि भविष्य में अर्थव्यवस्था ख़तरे में पड़ सकती है। जिससे विकास की परियोजनाओं को अमलीजामा पहनाने में वित्त की आवश्यकताओं की पूर्ति करने में बाधा आयेगी। देश में बेरोज़गारी और महंगाई बढ़ेगी। सरकार को अतिरिक्त आय के संसाधन जुटाने पड़ेंगे। राजस्व निरन्तर बढ़ाने के लिए सरकार को अतिरिक्त संसाधनों का प्रबंध करना पड़ेगा।

जयभगवान भारद्वाज, नाहड़

मुफ्तखोरी को बढ़ावा

राजनीतिक पार्टियां सत्ता प्राप्ति के लिए मुफ्त की रेवड़ी बांटकर मुफ्तखोरी को बढ़ावा दे रही हैं जो देश के लिए घातक है। जनता को सुविधाओं में कुछ रियायतें तो सही है मगर बिलकुल मुफ्त तो पतनकारी ही है। असल में इसकी शुरुआत आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में की थी, जो इसी कारण आज पंजाब में भी सत्ता में है और वह अब आगे बढ़ कर राष्ट्रीय पार्टी भी बन चुकी है। सरकार को इन मुफ्त की रेवड़ियों के बदले जनता को सही काम के साथ सही दाम ही देना उचित है। इसके लिए तेजी से बढ़ते हुए निजीकरण को त्याग राष्ट्रीयकरण की ओर बढ़ना होगा तभी कुछ सुधार संभव है।

वेद मामूरपुर, नरेला

तार्किक नहीं

आये दिन चुनावों के दौरान खैरात बांटने जैसी हो रही घोषणाएं व्यक्ति को आलसी जीवन की ओर धकेल रही हैं। मुफ्त की रेवड़ी बांटने की टूटती सीमाओं के मद्देनजर प्रधानमंत्री ने राजनीति से इस संस्कृति समाप्त करने के साथ इसे देश और जनता के लिए घातक बताया। दिल्ली सरकार शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को फ्री में देना रेवड़ी बांटना नहीं मानती, जो कुछ सीमा तक सही है, किंतु जो भी रेवड़ी मुफ्त में बंट रही है, उन्हें एकदम बंद या समाप्त करना आसान नहीं है। मुफ्त के बजाय रियायती मूल्यों पर सुविधा दी जाये या क्रमशः इनमें कटौती की जाये तो अधिक उत्तम होगा।

बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन

राजकोष को पलीता

रेवड़ी कल्चर देश के भविष्य के लिए खतरनाक है। मुफ्त वाली योजनाओं पर सुप्रीम कोर्ट का रुख भी सख्त है। मुफ्त के सामान बांटने की राजनीतिक दलों की प्रवृत्ति अंततः देश के राजकोष को पलीता ही लगाती है। मुफ्त की योजनाओं के कारण ईमानदारी के साथ अपना टैक्स अदा करने वाले समुदाय के साथ अन्याय होता है। इसके साथ ही साथ सरकारें मुफ्त की स्कीम चला कर लोगों को पंगु भी बना रही हैं। फ्री की योजनाओं के कारण लोग काम करना नहीं चाहते हैं। चंद वोटों की लालच में लोगों को कर्महीन बनाना कहां तक जायज कहा जा सकता है?

ललित महालकरी, इंदौर, म.प्र.

पुरस्कृत पत्र

काहिली को प्रोत्साहन

मुफ्त रेवडि़यां बांट कर या बांटने का प्रलोभन दे कर भारत में राजनीतिक दल सत्ता साधने की प्रतिस्zwj;पर्द्धा में हैं। पूंजीवादोन्zwj;मुख मिश्रित अर्थव्zwj;यवस्zwj;था में यह प्रवृत्ति राष्zwj;ट्र, समाज तथा नागरिकों के दीर्घकालीन हित में कतई नहीं है। इससे उद्यमिता की अपेक्षा काहिली को प्रोत्zwj;साहन मिलता है। सरकार को प्रत्zwj;यक्ष तथा अप्रत्zwj;यक्ष करों के रूप में अधिक संसाधन जुटाने पड़ते हैं। फलस्zwj;वरूप करदाताओं पर कर का अधिक बोझ पड़ता है। मुफ्त रेवडि़यों के स्zwj;थान पर शिक्षा, कौशल विकास व प्रशिक्षण प्रकल्zwj;पों में निवेश कर नागरिकों को रोजगार हेतु सक्षम बनाना बेहतर होगा। रोजगार के नए अवसर उत्zwj;पन्zwj;न करने होंगे। सार्वजनिक क्षेत्र में नए उद्यम स्zwj;थापित करने हेतु रेवडि़यों स्zwj;वरूप वितरित की जाने वाली राशि से पूंजी का निवेश किया जा सकता है।

राजीव चन्द्र शर्मा, अम्बाला छावनी

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