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समाज पर लानत

12:06 PM Aug 25, 2021 IST

देश में विकास के दावे भी खूब हो रहे हैं। पर जिस समाज में एक पिता अपने बेटे के कफन के लिए पांच सौ रुपये का कर्ज लेने को मजबूर है और उसके लिए बंधुआ मजदूरी करता हुआ दुखी होकर आत्महत्या करता है वहां क्या विकास, क्या उन्नति, क्या खुशहाली? महाराष्ट्र के पालघर में क्या कोई दानी नहीं, दूसरों की पीड़ा समझने वाला नहीं? जनता का सेवक होने का नारा लगाने वाला जनप्रतिनिधि नहीं? आखिर हिंदुस्तान का एक आदमी 2021 के अगस्त महीने में भी इतना मजबूर क्यों कि उसके बेटे को कफन तब तक नसीब नहीं हुआ जब तक बाप ने पांच सौ रुपया कर्ज लेकर खुद को बंधुआ मजदूर न बना लिया और हमेशा के लिए मौत का बंधुआ बन गया। क्या सरकार की, धर्म गुरुओं की, मोटे-मोटे पूंजीपतियों की, मोटा टीए-डीए लेकर संसद में लड़ने-भिड़ने वालों की आंखें खुलेंगी या आम आदमी की यही किस्मत रहेगी?

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लक्ष्मीकांता चावला, अमृतसर

सकारात्मक नजरिया हो

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पंद्रह अगस्त पर देश के प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि हर साल 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस मनाया जाएगा। इस घटना में 20 लाख लोग मारे गए और करीब दो करोड़ लोग विस्थापित हो गये। यह सब कुछ इतिहास की अन्य समतुल्य घटनाओं से बेहद अलग समय में हुआ। सामाजिक चेतना के लिए ऐतिहासिक घटनाओं का याद करना पूरी तरह एक सर्वमान्य क्रिया है, उन्हें याद किया जाना चाहिए मगर सकारात्मक तरीके से। इन सब बातों पर सोच-विचार करना होगा।

पूनम कश्यप, बहादुरगढ़

नैतिकता का ज्ञान

संस्कृत वह अनमोल खजाना है जो विद्यार्थियों को इनसानियत और नैतिकता की राह की ओर अग्रसर कराती है। स्वामी विवेकानंद ऐसी शिक्षा चाहते थे, जिससे बालक का सर्वांगीण विकास हो सके। संस्कृत के श्लोक ही बच्चों के मन में नैतिकता का बीज बो सकते हैं, बच्चे जिंदगी में कभी पथभ्रष्ट नहीं होंगे।

राजेश कुमार चौहान, जालंधर

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