सृजन में सांस्कृतिक चेतना
सत्यवीर नाहड़िया
हरियाणा में लोकनाट्य परंपरा, विशेषकर सांग, प्राचीन काल से समृद्ध रही है। रागिनी, जो सांग का प्रमुख हिस्सा है, कथानक को आगे बढ़ाने में मदद करती है। इसमें टेक, कली और तोड़ जैसे घटक होते हैं, जो गीत के मुखड़े और अंतरे से मेल खाते हैं। शिव मत के अनुसार, हर राग की पांच रानियां होती हैं, इसीलिए ‘छह राग-तीस रागनी’ जैसी कहावत प्रचलित है। समय के साथ रागनी के विषय भी विस्तारित हुए हैं।
‘संसार सागर’ एक महत्वपूर्ण काव्य संग्रह है, जिसमें 65 रागनियां शामिल हैं। इसे वरिष्ठ साहित्यकार रामफल गौड़ द्वारा रचित इस रागनी संग्रह की रचनाओं में लोक कहावतों व मुहावरों के चलते माटी की सौंधी महक को महसूस किया जा सकता है। इस संग्रह का प्रारंभ मंगलाचरण से होता है और इसमें किसान की व्यथा, समय की महिमा, कोरोना का प्रभाव, राजनीतिक मुद्दे, सामाजिक विसंगतियों और सूक्ष्म मानवीय संवेदनाओं का चित्रण है। उदाहरण के लिए, ढोंगी बाबाओं पर केंद्रित रागनी की टेक में संत और गुरु का दर्जा बताया गया है।
संग्रह में शहीदों और महापुरुषों पर रचनाएं भी हैं, जैसे गुरु नानक, शंकराचार्य, और महात्मा गांधी। ‘राम का उत्तर’, ‘म्हारा तिरंगा’, और ‘नारी का दरद’ जैसी रागनियां विशेष प्रभाव छोड़ती हैं। इस काव्य संग्रह की विशेषताएं इसमें कलात्मक आवरण, सुंदर छपाई और हरियाणवी शब्दों का हिंदी अर्थ शामिल हैं। कुल मिलाकर, यह रागनी संग्रह हरियाणा की सांस्कृतिक चेतना और भाषा के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान देता है, जिससे यह संग्रहणीय बनता है।
पुस्तक : संसार-सागर रचनाकार : रामफल गौड़ प्रकाशक : कुरुक्षेत्र प्रेस, कुरुक्षेत्र पृष्ठ : 100 मूल्य : रु. 250