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खामोश चहलकदमी से रचनात्मक ऊर्जा

06:27 AM Oct 02, 2023 IST
खामोश चहलकदमी से रचनात्मक ऊर्जा
New Delhi: Visitors during monsoon rain at Kartavya Path near the India Gate, in New Delhi, Sunday, July 9, 2023. (PTI Photo/Kamal Singh)(PTI07_09_2023_000229B)
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रेनू सैनी

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सुबह का प्रारंभ वॉक पर जाने से किया जाए तो सुबह उत्तम हो जाती है। व्यस्तता के कारण लोगों ने वॉक के समय को बहुकार्यों में विभाजित कर लिया था। मसलन वॉक पर संगीत सुनना, फोन पर मित्रों से बातें करना, ऑफिस के लिए नोट बनाना, पॉडकास्ट सुनना और अपने प्रियजनों को संदेश भेजना आदि। लोगों का मानना है कि ऐसा कर वे वॉक करके अपने स्वास्थ्य पर तो ध्यान दे ही रहे हैं, इसके साथ-साथ अपने कामों को भी होशियारी और कुशलता से निपटा रहे हैं। पर क्या वाकई ऐसा है?
आज से पचास साल पीछे के जीवन को अपने माता-पिता या दादा-नानी से पूछकर देखिए कि उस समय सुबह के समय लोग कैसे टहला करते थे? यही जवाब आएगा कि उस समय मोबाइल, पॉडकास्ट जैसी चीजें नहीं थीं। इसलिए वे पार्क में घूमते समय वहां घूमने वाले साथियों को देखकर मुस्कुराते थे, उनके साथ मिलकर व्यायाम करते थे। अध्यात्म और ध्यान उनके वॉक की शक्ति को कई गुना बढ़ा देता था। सुबह की सूरज की नवकिरणें जब मुख पर पड़ें तो हमारा पूरा ध्यान केवल सुबह की ताजी किरणों और सूर्य की लाली पर होना चाहिए। यदि हम फोन में लगे रहेंगे, संगीत सुनेंगे तो प्रकृति की खूबसूरती से वंचित हो जाएंगे। शोर के बीच में शांति को महसूस करना असंभव है। साइलेंट वॉक का अर्थ ही है बिना किसी व्याकुलता के टहलना। जब व्यक्ति साइलेंट वॉक करता है तो उसका मस्तिष्क रचनात्मक हो जाता है क्यांेकि उस समय वह केवल अपने विचारों के साथ होता है। वहीं यदि वॉक के समय उसके साथ फोन और संगीत होता है तो विचारों की शृंखला टूट जाती है।
कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में इन्फर्मेशन साइंस की प्रोफेसर ग्लोरिया मार्क कहती हैं कि, ‘लगातार एक काम से दूसरे काम पर जाने से हमारा फोकस घटने लगता है, मानसिक ऊर्जा कम होने लगती है।’ साइलेंट वॉक करने से वह मानसिक ऊर्जा शक्ति में परिवर्तित होकर वापस लौट आती है। कंटेंट क्रिएटर एरियल लॉरे कहती हैं, ‘मैं सप्ताह में चार बार 45 मिनट के लिए साइलेंट वॉक करती हूं। अब मुझे बेहतर नींद आती है। मन शांत रहता है। मैं पूरे दिन ऊर्जावान रहती हूं।’ द जर्नल ऑफ एनवायरमेंटल साइकोलॉजी के अध्ययन के अनुसार 30 मिनट साइलेंट वॉक से लोगों का नकारात्मक विचारों पर फोकस करने का समय घट गया। इससे रचनात्मकता के साथ-साथ अवसाद से बचने में भी मदद मिली। साइलेंट वॉक मांसपेशियों में खून के बहाव और ऑक्सीजन की सप्लाई बढ़ाकर हृदय को स्वस्थ रखती है। साइलेंट वॉक से सहनशक्ति बढ़ती है और व्यक्ति के अंदर चुनौतियों का सामना करने की सामर्थ्य में वृद्धि होती है। अनेक महापुरुष साइलेंट वॉक के महत्व को समझते थे।
महात्मा गांधीजी साइलेंट वॉक करना पसंद करते थे। वे अक्सर साइलेंट वॉक पर जाया करते थे। इसी दौरान वे मार्ग में आने वाली गंदगी को साफ करते जाते थे और अनेक नए विचारों से मस्तिष्क को समृद्ध करते जाते थे। एक बार वे नौआखली में पैदल एक गांव से दूसरे गांव में घूम रहे थे। अक्सर घूमते हुए वे हरिजन व दबे-कुचले लोगों में जीने की उमंग उत्पन्न करते थे। उन्हें जागरूक करने के लिए वह हर कार्य को पहले स्वयं करते थे ताकि लोगांे को उन पर विश्वास हो जाए कि उन्हें छोटे से छोटे काम के लिए प्रेरित करने वाला व्यक्ति खुद किसी कार्य को छोटा नहीं समझता है। एक दिन मनुजी उन्हंे टोकते हुए बोलीं, ‘बापूजी, आप घूमते हुए अक्सर मूक चलते हैं और हर पगबाधा को दूर करते जाते हैं। मार्ग में आने वाली हर गंदगी को आप स्वयं साफ कर देते हैं। आखिर आप ऐसा क्यों करते हैं?’ इस पर गांधी जी मुस्करा कर मनु से बोले, ‘तू नहीं जानती। ऐसे काम करना मुझे बहुत पसंद है। दूसरा मैं जब ऐसे काम स्वयं करूंगा तभी तो लोग भी अकेले चलते हुए अपने विचारों को पुष्ट करने का प्रयास करेंगे और देश से गंदगी को मिटाने के लिए दृढ़ संकल्प होंगे। उनके अंदर सहनशीलता, दृढ़ता और धैर्य का विकास तभी हो सकता है जब वे अकेले में शांत भाव से विचरण करें, टहलें और दृढ़संकल्प होकर कार्य करें।’
गांधीजी भी मानते थे कि पैदल चलते समय दूसरे कामों में उलझने से मस्तिष्क की उर्वराशक्ति काम नहीं करती। मस्तिष्क की उर्वरा शक्ति को उपजाऊ बनाने के लिए यह जरूरी है कि व्यक्ति शांति से प्रकृति के संग विचरण करे और आसपास होने वाली समस्याओं के समाधान को हल करे।
आजकल तीस पार युवाओं में ही जोड़ों की समस्या उत्पन्न होने लगती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि युवा लगातार एक ही जगह पर बैठने का काम करते हैं। उनका शरीर एक ही स्थान पर बैठे-बैठे अकड़ने लगता है। साइलेंट वॉक से व्यक्ति के शरीर के अंदरूनी अंगों को राहत मिलती है और वे स्वस्थ रहते हैं। साइलेंट वॉक व्यक्ति के तन-मन को तो स्वस्थ रखता ही है, इसके साथ ही उनके अंदर बड़ी-बड़ी समस्याओं को हल करने की शक्ति भी प्रदान करता है।

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