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कालाबाजारियों पर लगाम

12:11 PM May 24, 2021 IST
कालाबाजारियों पर लगाम
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दंड मिले

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कोरोना महामारी के दौर में कई लोग मानव सेवा की अनुकरणीय मिसाल पेश कर रहे हैं। स्वयंसेवी संस्थाएं, एनजीओ, धर्मार्थ संस्थाएं नि:शुल्क दवाइयां, ऑक्सीजन, वस्त्र, आवास, भोजन जुटा रहे हैं। कुछ संवेदनहीन मानवीय मूल्यों को ताक पर रख कर कफन, दवाइयों, ऑक्सीजन सिलेंडरों की कालाबाजारी के धंधे में खासा मुनाफा बटोर रहे हैं। समाज पर बोझ इस व्यवसाय में संलिप्त लोगों को कठोर सज़ा मिलनी आवश्यक है। आजीवन कारावास, नौकरी से बर्खास्तगी, संपत्ति जब्त करने का प्रावधान निश्चित हो ताकि इस कोरोना काल में कालाबाजारी करने वालों की आंखें खुल सकें।

अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल

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नये कानून बने

जिस प्रकार चंद मुट्ठीभर लोग जनता पर राज करते हैं, ठीक उसी प्रकार आबादी का एक प्रतिशत वर्ग हवाओं का रुख पहचानकर अपने आर्थिक लाभ के लिए बाजार से आवश्यक वस्तुओं को अपने कब्जे में लेकर मनचाहा मुनाफ़ा कमाकर अपनी तिजोरियां भरता है। यह काम ऊपर से नीचे मिलीभगत के बिना नहीं होता| इसकी कीमत हमेशा जनता को चुकानी पड़ती है| हमें भ्रष्टाचार को लेकर कानून में संशोधन करना चाहिए जो इस समय कालाबाजारी में पकड़े जाते हैं। उन पर हत्या और नरसंहार के केस चलने चाहिए। जैसा कि कोर्ट फरमा चुका है।

मनजीत कौर ‘मीत’, गुरुग्राम


इंसान नहीं

देश कोरोना वायरस महामारी से त्रस्त है। मगर, कुछ स्वार्थी लोग इस संकट काल में भी जरूरी दवाओं, उपकरण आदि की कालाबाजारी करने से बाज नहीं आ रहे हैं। ऐसे लोग बीमार लोगों की जान की कीमत पर अपनी तिजोरियां भर रहे हैं। इस आपदा काल में जीवन-मृत्यु के बीच संघर्ष करते लोगों से नाजायज मुनाफा कमाने वाले लोग इंसान कहने लायक नहीं हैं। केंद्र सरकार हो या राज्य सरकारें, ऐसी कालाबाजारी करने वाले गिद्धों को पकड़ने में नाकामयाब रहे हैं। ऐसे असंवेदनशील लोगों को कठोरतम सज़ा देनी चाहिए। इन पर हत्या का केस चलना चाहिए।

पूनम कश्यप, बहादुरगढ़


सामाजिक बहिष्कार हो

भयानक महामारी के दौर में मुर्दे का कफन, एंबुलेंस का मनमर्जी से किराया वसूली, महंगी दवाई, आक्सीजन सिलेंडर की कालाबाजारी करने वाले निर्दयी लोगों को इंसान बिल्कुल नहीं कहा जा सकता। ऐसे लोग समाज में रहने के लायक नहीं हैं, इनका सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए। इस भयावह दौर में भी जो लोग अपने फायदे के लिए मानवता को ताक पर रखकर केवल अपना लाभ सोचते हैं वे तो इंसान हो ही नहीं सकते। ऐसे संवेदनहीन लोगों को कठोर कारावास की सज़ा देना ही उचित होगा ताकि कोई भी व्यक्ति भविष्य में ऐसा काम न कर सके।

श्रीमती करुणा कक्कड़, चंडीगढ़


सख्त सज़ा मिले

कोरोना महामारी के चलते कोई भी व्यक्ति अपने परिवार के सदस्य को बचाने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार रहता है। उसे अपने परिवार के सदस्य को हर हाल में बचाना है। लेकिन इसी पल का फायदा समाज के निर्दयी लोग महंगी दवाई, मुर्दे का कफन, एबुलेंस का सैकड़ों गुणा किराया, आक्सीजन सिलेंडर की कालाबाजारी करके उठाते हैं। ऐसे लोगों को समाज में रहने का कोई हक नहीं है। ऐसे बेरहम लोगों को सरकारें सख्त से सख्त सज़ा दें ताकि कालाबाजारियों को लगे कि हमने अपने जीवन में गलत कार्य किया है, जिसके लिए वे सख्त सजा के हकदार हैं।

सतपाल सिंह, करनाल


शासन जिम्मेदार

कोरोना महामारी में शासन की ओर से उपयुक्त व्यवस्था न होना और ऊपर से मरीजों के लिए दवाओं, टीकों, ऑक्सीजन, बिस्तरों और वाहनों आदि की कमी के बाद धड़ल्ले से कालाबाजारी का होना समाज के लिए सबसे बड़ा कलंक हैै। अजीब बात यह है कि यहां आग लगने के बाद ही कुआं खोदने की बात सोची जाती है, मगर कुआं फिर भी नहीं खोदा जाता। इसके लिए मुख्य रूप से शासन जिम्मेदार है, क्योंकि जनता की अपनी सीमित भूमिका है। किसी भी समस्या के हल के लिए शासन को ही आगे कदम बढ़ाना पड़ता है। फिर जनता उसका अनुगमन करती है।

स्वाति मंडवारिया, नीमच, म.प्र.


पुरस्कृत पत्र

देशद्रोही मानें

कुल जनसंख्या के कुछ प्रतिशत लोग ही कालाबाजारी में लिप्त होते हैं, लेकिन इससे पूरा समाज प्रभावित होता है। वर्तमान परिस्थितियों में सामने वाले की मजबूरी का फायदा उठाकर क्षणिक लोभ के कारण कुछ लोग इस धन्धे में लिप्त हो रहे हैं। कालाबाजारी का अर्थ केवल आवश्यक सामग्री का अभाव पैदा कर उसे महंगे भाव पर बेचना नहीं है अपितु पचास किलोमीटर की यात्रा के लिए एम्बुलेंस चालक द्वारा एक लाख रुपया लेना भी इसी दुष्प्रक्रिया का रूप है। कालाबाजारी को रोकने का उपाय है कि इस तरह के लोगों के अपराध सिद्ध हो जाने की स्थिति में उनके साथ सहानुभूति, संवेदना अथवा दया न रखकर उन्हे देशद्रोही मानते हुए कड़ी से कड़ी सजा देनी चाहिए।

अनूप कुमार गक्खड़, हरिद्वार, उत्तराखंड

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