मौसम की तीव्रता से मुकाबला
अनुकूल ढालें
सदियों से ऋतु परिवर्तन का चक्र चलता रहा है। सर्दी के बाद गर्मी फिर बरसात हमारे जीने के ढंग को बदलने के संकेत देते हैं। बर्फ, धूप फिर पानी फसलों की भी आवश्यकता है। आग और फाग के पर्व भी मौसम की तीव्रता को कम करते हैं। लेकिन बाजार-मीडिया आबोहवा के चरम को व्यापार में बदल कर रख देते हैं। वरना हम सामान्य खान-पान, पहरावा और शारीरिक श्रम से अपने शरीर को कुदरत प्रदत्त मौसम की प्रतिकूलताओं के अनुकूल ढालने के लायक बना ही लेते हैं।
देवी दयाल दिसोदिया, फरीदाबाद
मजबूत बनें
ऋतु परिवर्तन प्रकृति का नियम है। गर्मी, सर्दी, वर्षा इसके अंग हैं। देश की अर्थव्यवस्था मौसम पर निर्भर करती है। वर्षा अच्छी होगी तो फसल अच्छी होगी। ठंड अधिक होगी तो पहाड़ों पर जल संचय होगा जो गर्मी में काम आता है। लेकिन मीडिया अपनी लोकप्रियता के लिए मौसम की खबरों का भयावह विश्लेषण करता है जिससे जनमानस पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। प्रकृति हमें सहारा देती है। हमें हर तरह के मौसम का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। हमें योग, खान-पान व दैनिक क्रियाओं में सुधार करके अपने शरीर को सुदृढ़ बनाना चाहिए ताकि हम हर तरह के मौसम का मुकाबला कर सकें।
सोहन लाल गौड़, कैलरम, कैथल
आदतों में परिवर्तन
आज के भौतिकवादी तथा बाजारवादी युग हमें मौसम से बचाने की खातिर, बल्कि अपनी चीजें बेचने की खातिर भ्रमित करता रहता है। बाजारवाद का हम पर ज्यादा प्रभाव पड़ रहा है। इन सबने हमारी इम्यूनिटी पर असर डाला है और हम मौसम के बदलने का बहाना बनाकर बीमार रहने लगते हैं। हमें अपने आप को मौसम के मुताबिक ढालना चाहिए। मौसम के विपरीत प्रभाव से बचने के उपाय हमें कमजोर तथा बीमार बना देते हैं। हर मौसम में घूमना फिरना चाहिए, बरसात का लुत्फ उठाना चाहिए। गर्मी-सर्दी सहन करने की आदत होनी चाहिए।
शामलाल कौशल, रोहतक
सामंजस्य बनाएं
हम प्रकृति से बहुत कुछ सीख सकते हैं। बहुत से ऐसे जीव-जन्तु हैं जो सर्दी के मौसम में कहीं भूमिगत हो जाते हैं। कई-कई महीनों तक बिना खाये-पीये कहीं चिपके पड़े रहते हैं। प्रकृति से अपने आपको बचाते हैं। कुदरती रूप से। मानव प्रकृति के रूप को देखकर कुछ ज्यादा ही हाय-तौबा मचाता है। डरा-सहमा रहता है। इंसान प्रकृति के अनुसार अपने आपको ढालना नहीं चाहता। प्रकृति को ही चुनौती देना चाहता है। यही दुख का कारण है। प्रकृति के अनुसार चलें। उससे सामंजस्य बनाये रखें।
सत्यप्रकाश गुप्ता, बलेवा, गुरुग्राम
बाजार के खेल
मौसम मनुष्य जीवन का प्रमुख प्राकृतिक संसाधन है। बिना ऋतु परिवर्तन के मनुष्य का जीवन चलना मुश्किल है। मौसम का परिवर्तन मनुष्य के जीवन के शारीरिक विकास के लिए बहुत जरूरी है। लेकिन वहीं बाजारवाद ने मौसम के आनंद को शारीरिक कष्ट बना दिया है। हम मौसम के अनुकूल व्यवहार न करके प्रतिकूल हालात और बाजारवाद के जाल में फंस गये हैं। प्रकृति ने हर मौसम के बदलने के साथ उसका समाधान हेतु फल-सब्जियां, आहार दिये हैं। लेकिन हम उसकी उपयोगिता का अनदेखा कर बाजार की उपयोगिता को महत्व दे रहे हैं।
नैन्सी धीमान, अम्बाला शहर
मुकाबला करें
सर्दी, गर्मी, बरसात आदि ऋतुओं का चक्र सदियों से चलता आया है। सभी ऋतुओं का हमारे जीवन पर प्रभाव पड़ता है। पिछले कुछ वर्षों से ग्लोबल वार्मिंग की समस्या बढ़ती जा रही है। गर्मी का प्रकोप बढ़ रहा है। पर्यावरण की समस्या गंभीर होती जा रही है। मनुष्य को आज के समय के अनुसार अपने खानपान व जीवन शैली में परिवर्तन की आवश्यकता है। वर्तमान समय में कार्यशैली अत्यधिक व्यस्त हो गई है। इसके साथ भी सामंजस्य बिठाया जाना चाहिए। इन बातों पर विचार करके ही हम मौसम की तीव्रता से मुकाबला कर सकेंगे।
सतीश शर्मा माजरा, कैथल
पुरस्कृत पत्र
जीवनशैली बदलें
मौसम तीव्र होते ही हम चिल्लाने लगते हैं। रही-सही कसर मीडिया पूरी कर देता है–यह खाइए, वह पहनिए, खुद को बुरे मौसम की मार से बचाइए। आखिरकार हम अपने को उसके चंगुल में फंसा पाते हैं। बाज़ार की लूट से बचने के लिए प्रकृति की ओर लौटना बहुत ज़रूरी है। प्रकृति मौसम के अनुसार खाद्य पदार्थ उगाती है। लेकिन उस समय हमारी जिद सामने आड़े आ जाती है। हम मौसमी आहार की अनदेखी कर बेमौसमी खाना खाने पर अड़ जाते हैं और लगते हैं प्रकृति को कोसने। अत: मौसमी व स्वास्थ्यवर्धक आहार और व्यायाम इस दिशा में बेहतर परिणाम दे सकते हैं।
कृष्णलता यादव, गुरुग्राम