ययाति की कथा का समकालीन संदर्भ
सुभाष रस्तोगी
साहित्यकार सरोज दहिया की अब तक आठ कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं। उनका हाल ही में प्रकाशित दोहा और चौपाई छंद में रचित ‘कूप-कानन’ श्रीमद् भागवत महापुराण की अनेक कथाओं में से नहुष पुत्र महाराज ययाति की कथा को प्रस्तुत करता है। श्रीमद्भागवत के इस पुराख्यान की प्रासंगिकता यांत्रिक संस्कृति के अंध भोगवाद की तस्वीर के रूप में आज भी जस की तस है।
सरोज दहिया का यह प्रबंध काव्य आठ खंडों में विभाजित है : आदि खंड, वरदान खंड, संताप खंड, विवाह खंड, आश्रम खंड, गृहस्थ खंड, शाप खंड, तथा वैराग्य खंड। ‘कूप-कानन’ प्रबंध काव्य का नेपथ्य श्रीमद् भागवत महापुराण के नवम स्कंध के अठारहवें अध्याय’ में राजा ययाति द्वारा दैत्यगुरु शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी के साथ वैवाहिक बंधन में बंधना और दैत्यराज वर्षपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा का उसके साथ दासी बनकर जाना शामिल है। इसके बाद शर्मिष्ठा का राजा ययाति के साथ प्रेम और सौतिया डाह, अपमानित देवयानी का रूठकर मायके प्रस्थान, शुक्राचार्य द्वारा जामाता ययाति को श्राप, युवराज पुरु का पिता के लिए त्याग, ययाति का वैराग्य जागरण और अंत में महारानी देवयानी के कहने पर राज के दो संभाग कर देवयानी के ज्येष्ठ पुत्र यदु और शर्मिष्ठा के सबसे छोटे बेटे पुरु को सौंप वनगमन और देवयानी का भी राजा के साथ वनगमन शामिल हैं।
‘कूप-कानन’ को पुराख्यान कथा के संदर्भ में प्रस्तुत किया गया है जिसमें किसी नवीन कथा-प्रसंग की उद्भावना संभव नहीं। लेकिन कवयित्री का मकसद केवल कथा कहना नहीं। सरोज दहिया के कहन की खूबसूरती है कि प्रबंध काव्य ‘कूप-कानन’ एक आदर्श राज समाज की स्थापना का रूपक रचता सा लगता है। जब ययाति अपने पुत्र पुरु को बूढ़े के रूप में देखता है, तो उसकी अंतरात्मा धिक्कार उठती है और वह पुरु को उसका यौवन लौटा देता है। वहीं प्रजा की इच्छानुसार पुरु को राज्य सौंप देता है :-
‘पुरुकंवर सबका प्यारा था, गुंजित सभा भवन सारा था। तब राजा ने मुकुट मंगाया, पुरु राज के शीष सजाया। जन-जन को संतोष हुआ था, निर्णय भी तो सही हुआ था।’
पुस्तक : कूप-कानन रचनाकार : सरोज दहिया प्रकाशक : सरोज प्रकाशन, सोनीपत पृष्ठ : 280 मूल्य : रु.400.