चुनौतियों का चिंतन
24 जुलाई के दैनिक ट्रिब्यून में प्रकाशित राजकुमार सिंह के ‘दिल मिले न मिले, पर साथ चले’ लेख बताता है कि आसन्न विधानसभा चुनाव तक कैप्टन अमरेंद्र सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच संगठनात्मक ढांचे को लेकर सहमति बनने में संदेह है। सिद्धू ने पहले भी अपने रवैये में परिपक्वता नहीं दिखायी, चाहे क्रिकेट हो, भाजपा से अलगाव हो या मंत्रिमंडल का मुद्दा, कैप्टन से उनकी टसल जारी रही। सच्चाई यह है कि कैप्टन हवा को देखकर ही चुप्पी साधे बैठे हैं । कॉमेडी शो में ‘ठोको-ठोको’ जैसी मसखरी में भीड़ तो वह जुटा लेते हैं पर यह टोटका चुनाव में काम आयेगा, इसमें संदेह है। लेखक ने सही लिखा है कि कैप्टन राजनीतिक-प्रशासनिक कार्यों में उदासीनता न दिखाएं। लेखक ने गहन छानबीन के बाद पंजाब की राजनीति की गांठें खोली, लेख के लिए साधुवाद!
मीरा गौतम, जीरकपुर
शहीदों का स्मरण
27 जुलाई के दैनिक ट्रिब्यून में संपादकीय ‘एक विजय, कई सबक’ भारतीय क्षेत्र कारगिल पर हमला करने व हमारे जवानों द्वारा पाकिस्तान को बुरी तरह से हराना विजय दिवस की याद ताजा कराने वाला था। पाकिस्तान ने चोरी-छिपे अपने सैनिकों को भेजकर कारगिल में भारत के खिलाफ जंग छेड़ी थी। उनमें से जो सैनिक मारे गए उनकी लाशें लेने से भी पाकिस्तान ने इंकार कर दिया, जिनका बाद में भारतीय सैनिकों ने विधिपूर्वक दाह-संस्कार किया! कारगिल युद्ध में शहीद हुए भारतीय वीरों को देश शत-शत नमन करता है!
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल