सुगम हुई न्याय की राह ऑनलाइन हाेने से कंज्यूमर राइट्स
श्रीगोपाल नारसन
उपभोक्ता आयोगों में अब उपभोक्ताओं को ई-दाखिल पोर्टल के माध्यम से अपनी शिकायतें दर्ज करने के लिए प्रोत्साहित करने पर जोर दिया गया है और यह व्यवस्था लागू भी कर दी गई है। जिसके लिए ई-दाखिल तंत्र स्थापित किया है, जिसमें ई-नोटिस, केस डॉक्यूमेंट डाउनलोड लिंक और वर्चुअल हियरिंग लिंक, विपरीत पक्ष द्वारा लिखित उत्तर पत्र दाखिल करने, शिकायतकर्ता द्वारा प्रत्युत्तर दाखिल करने और एसएमएस/ई-मेल के माध्यम से अलर्ट पाने सहित कई विशेषताएं दी गई हैं। उपभोक्ता अदालतों में ई-दाखिल के माध्यम से ऑन लाइन केस दर्ज करना अनिवार्य करने के साथ ही शिकायत या अपील ,निगरानी वाद पत्र मैनुअल भी उपभोक्ता आयोग के समक्ष प्रस्तुत करना होगा,ताकि न्याय में सुगमता हो सके।
स्टे ऑर्डर सिर्फ एक माह का
वहीं देश के उपभोक्ता कार्य विभाग ने उपभोक्ता शिकायतों की शीघ्र सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय, राज्य और जिला उपभोक्ता आयोगों को पत्र लिखकर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत प्रदान की गई समयसीमा का पालन करने के लिए कहा है। जिसके तहत एक महीने से अधिक के लिए कार्यवाही स्थगन आदेश नहीं देने की बात कही गई है। उपभोक्ता वादों में स्थगन के कारण शिकायतों के निस्तारण में 2 महीने से अधिक की देरी होने पर, उपभोक्ता आयोग पक्षों यानी वादी-प्रतिवादी पर हर्जाना लगाने पर विचार कर सकता है। उपभोक्ताओं को सस्ता, सहज और शीघ्र न्याय दिलाने पर जोर दिया गया है। नई व्यवस्था के तहत किसी भी परिस्थिति में लंबी अवधि के लिए स्थगन प्रदान नहीं किये जाने की व्यवस्था दी गई है।
नोटिस मिलने पर 3 माह सीमा
नई व्यवस्था के तहत किसी भी पक्ष द्वारा स्थगन के दो से अधिक प्रार्थना पत्रों के मामले में, उपभोक्ता आयोग उस पर हर्जाना लगा सकता है। उपभोक्ता अधिनियम की धारा 38(7) के तहत कहा गया है कि प्रत्येक शिकायत का यथासंभव शीघ्र निपटारा किया जाना आवश्यक है और विरोधी पक्ष द्वारा नोटिस प्राप्त होने की तारीख से 3 महीने की अवधि के भीतर शिकायत का निस्तारण (कुछ खास मामलों को छोड़कर) गुण-दोष के आधार पर हो जाना चाहिए।
स्थगन के पुख्ता कारण की अनिवार्यता
उपभोक्ता आयोगों द्वारा तब तक शिकायत सुनवाई स्थगित नहीं की जाएगी जब तक कि पर्याप्त कारण न दर्शाया गया हो और स्थगन के कारणों को लिखित रूप में दर्ज न किया गया हो। उपभोक्ता अधिनियम की धारा 38(2)(ए) के अनुसार उपभोक्ता आयोग स्वीकार की गई शिकायत की एक प्रति विरोधी पक्ष को भेजकर 30 दिनों की अवधि के भीतर पुख्तावाई करने में या निर्धारित समय के भीतर अपने मामले को पेश करने में विफल रहता है, तो आयोग साक्ष्य के आधार पर एक पक्षीय निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है।
समय बढ़ाने की सीमित शक्ति
न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम हिली मल्टीपर्पज कोल्ड स्टोरेज प्राइवेट लिमिटेड मामले में सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ के 4 मार्च, 2020 के फैसले में कहा गया कि उपभोक्ता आयोगों के पास शिकायतों का जवाब दाखिल करने के लिए अधिनियम की धारा 13 में उल्लिखित 30 दिनों के अतिरिक्त 15 दिनों तक की अवधि की समय बढ़ाने की शक्ति है। इससे आगे उपभोक्ता आयोग समय नहीं बढ़ा सकता। एक अन्य फैसले में भी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उक्त निर्णय की पुष्टि की गई है।
लेखक उत्तराखंड राज्य उपभोक्ता आयोग के वरिष्ठ अधिवक्ता हैं।