उपभोक्ता ही बाजार का असली राजा
कंज्यूमर राइट्स
श्रीगोपाल नारसन
बाजार कोई भी हो, उपभोक्ता राजा की सी हैसियत में ही रहता है, जबकि उत्पादक उसके आगे एक सेवादार की हैसियत से है। उसे यदि अपना उत्पाद बेचना है तो उसे हर तरह से उपभोक्ता की पसंद-नापसंद, आवश्यकता व इच्छाओं का ख्याल रखना होता है। इसके विपरीत जब उत्पादक या सेवा प्रदाता अधिक लाभ कमाने के चक्कर में अपने उत्पाद मानक से कम निर्मित कर बाजार में उतारने लगता है, या फिर सेवा में कमी करने लगता है तो उपभोक्ता रूपी राजा व उत्पादक रूपी सेवादार के बीच अविश्वास जन्म ले लेता है। आहत उपभोक्ता न्याय के लिए आंदोलन करने या फिर उपभोक्ताओं के उत्पीड़न मामलों को उपभोक्ता अदालतों में उठाने के लिए विवश हो जाता है । पीड़ित उपभोक्ताओं को न्याय दिलाने की इस मुहिम में कई स्वयंसेवी संस्थाएं व एनजीओ भी आगे आए हैं।
व्यवस्था का सवाल
वर्तमान में जमाखोरी, कालाबाजारी, मिलावट, बिना मानक की वस्तुओं की बिक्री, निर्धारित मूल्य से अधिक दाम, गारंटी व वारंटी के बाद भी सेवा न देना, उपभोक्ता से ठगी, कम नाप-तौल आदि के चलते उपभोक्ता को परेशानी होती है। उपभोक्ता संरक्षण के लिए विभिन्न कानून भी बने हैं, लेकिन फिर भी आज वह व्यवस्था पर निर्भर हो गया है। क्योंकि विभिन्न राज्यों के जिला ,राज्य व राष्ट्रीय स्तर के आयोगों में अध्यक्ष व सदस्य पदों पर रिक्तियों के कारण कहीं कोरम पूरा नहीं है, तो कहीं उपभोक्ता शिकायतों,अपीलों व निगरानी वादों की संख्या बहुत अधिक होने के कारण उनके निस्तारण में देरी हो रही है। वहीं जो लोग उपभोक्ता शोषण की दिशा में गैरकानूनी काम जैसे मिलावटखोरी आदि करते हैं, उनको राजनैतिक संरक्षण प्राप्त होने से पीड़ित उपभोक्ता को न्याय मिलने में कठिनाई
आती है।
जागरूक होना जरूरी
उपभोक्ता चूंकि संगठित नहीं है, इसलिए हर जगह ठगे जाने की आशंका रहती है। उपभोक्ता आन्दोलन की शुरुआत भी यहीं से होती है। इसलिए उपभोक्ता को जागना होगा व स्वयं का संरक्षण करना होगा। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के अनुसार कोई व्यक्ति जो अपने उपयोग के लिये सामान अथवा सेवाएं खरीदता है व बदले में वस्तु का निर्धारित मूल्य चुकाता है या चुकाने का वायदा करता है वही व्यक्ति या संस्था उपभोक्ता की परिधि में आते हैं। वही ऐसे सामान या सेवाओं का उपयोग करने वाला व्यक्ति या संस्था भी उपभोक्ता की श्रेणी में है। तभी तो प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी रूप में उपभोक्ता है। यदि किसी उपभोक्ता को अनुचित प्रतिबंधात्मक पद्धति के प्रयोग करने से कोई क्षति हुई है अथवा खरीदे गये सामान में यदि कोई खराबी है या फिर किराये पर ली गई या उपभोग की गई सेवाओं में कमी पाई गई है या फिर विक्रेता ने उपभोक्ता से प्रदर्शित मूल्य अथवा लागू कानून द्वारा अथवा इसके मूल्य से अधिक मूल्य लिया है तो ऐसा करना उपभोक्ता सेवा में कमी की परिधि में आएगा।
शिकायत करने के विकल्प
इसके अलावा यदि किसी कानून का उल्लंघन करते हुये जीवन तथा सुरक्षा के लिये जोखिम पैदा करने वाला सामान जनता को बेचा जा रहा है तो भी उसकी शिकायत दर्ज की जा सकती है। न्याय प्राप्त करने के लिए उपभोक्ता स्वयं या कोई स्वैच्छिक उपभोक्ता संगठन जो समिति पंजीकरण अधिनियम 1860 अथवा कंपनी अधिनियम 1951 अथवा फिलहाल लागू किसी अन्य विधि के अधीन पंजीकृत है, शिकायत दर्ज कर सकता है। इसके अलावा केन्द्र सरकार या राज्य सरकार अथवा संघ क्षे़त्र में भी शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। उपभोक्ता अदालतें पीड़ित उपभोक्ताओं को बेचे गए सामान से खराबियां हटाने, सामान को बदलकर देने, चुकाये गये मूल्य को वापस दिलाने के अलावा हुई क्षति व मानसिक,आर्थिक शारीरिक संताप के लिये क्षतिपूर्ति दिलाने, सेवाओं में त्रुटियां अथवा कमियां हटाने के साथ-साथ पीड़ितों को पर्याप्त वाद-व्यय प्रदान कर राहत दे
सकती हैं।
-लेखक उत्तराखंड राज्य उपभोक्ता आयोग के वरिष्ठ अधिवक्ता हैं।