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पृथ्वी के भीतरी गोले की धीमी होती गति की फिक्र

11:49 AM Oct 13, 2024 IST

मुकुल व्यास

लेखक विज्ञान मामलों के जानकार हैं।

पृथ्वी का आंतरिक कोर यानी सबसे भीतरी भाग पिछले कुछ वर्षों से वैज्ञानिक समुदाय को उलझाए हुए है। एक नए अध्ययन ने इस बात के पुख्ता सबूत पेश किए हैं कि आंतरिक कोर ने दिशा बदल दी है और वह धीमा हो रहा है। यह बदलाव 2010 में हुआ था,लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि ऐसा किस वजह से हुआ या कोर कब वापस बदलेगा। हमारे पैरों के नीचे लगभग 2,890 किलोमीटर की दूरी पर तरल धातु की एक विशाल गेंद जैसा दिखने वाला पृथ्वी का आंतरिक कोर लगभग चंद्रमा जितना बड़ा है और सूर्य की सतह जितना गर्म है। यह हमारे ग्रह के चुंबकीय क्षेत्र को बनाए रखने में मदद करता है जो हमें कोशिका नष्ट करने वाले कैंसर-प्रेरक अंतरिक्ष विकिरण से बचाता है।

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खुद-ब-खुद घूमने वाला भाग

दरअसल,पृथ्वी को तीन अलग-अलग परतों में विभाजित किया जाता है। इन परतों में क्रस्ट (पपड़ी),मेंटल यानी बाहरी कोर और आंतरिक कोर शामिल हैं। क्रस्ट पर हम रहते हैं और कोर को सबसे आंतरिक परत के रूप में जाना जाता है। मेंटल इन दोनों के बीच में है। कई सिद्धांतों के अनुसार पृथ्वी का कोर स्वतंत्र रूप से घूम रहा है। इसे ऐसा कहा जा सकता है कि पृथ्वी के भीतर एक ठोस धातु की गेंद है जो पृथ्वी से स्वतंत्र रूप से घूमती है,जैसे एक बड़ी गेंद के अंदर घूमती हुई गेंद।

बेहद गर्म ठोस लोहे का गोला

पृथ्वी का कोर आज भी एक बड़ा रहस्य बना हुआ है। डेनिश भूकंप विज्ञानी इंगे लेहमैन ने 1936 में से खोजा था। आंतरिक कोर का अर्द्धव्यास 1220 किलोमीटर और तापमान 5200 डिग्री सेल्सियस है। यह ठोस गोला है जो मुख्य रूप से लोहे से बना है। आंतरिक कोर ने शोधकर्ताओं को काफी आकर्षित किया है। इसकी गति जिसमें घूर्णन (रोटेशन) गति और दिशा शामिल है,दशकों से चल रही बहस का विषय है। हालिया सबूत बताते हैं कि कोर के घूर्णन में काफी बदलाव आया है, हालांकि वैज्ञानिक इसे लेकर विभाजित हैं।

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बैकट्रैकिंग से संबंधित डेटा

पिछले दशक से वैज्ञानिकों को आंतरिक कोर के व्यवहार के बारे में कुछ असामान्य डेटा मिल रहा है कि इसका घूर्णन थोड़ा गड़बड़ा रहा है। यह भी कि 2010 में आंतरिक कोर ने पृथ्वी की सतह की तुलना में अपनी घूर्णन दिशा उलट दी थी। वैज्ञानिक इसे बैकट्रैकिंग कहते हैं। अब आंतरिक कोर अधिक धीमी गति से घूम रहा है। कुछ हलकों में आंतरिक कोर की दिशा बदलने के असर पर तरह-तरह की आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं। हालांकि घूर्णन के धीमा होने से ज्यादा से ज्यादा हमारे दिन की लंबाई थोड़ी कम हो सकती है। लेकिन यह अत्यंत सूक्ष्म व नामालूम से स्तर पर होगी।

नये अध्ययन के निष्कर्ष

वैज्ञानिक कुछ नहीं जानते कि पृथ्वी के मध्य में क्या चल रहा है। हालांकि हाल ही में किए गए एक अध्ययन ने डेटा को देखने का एक नया तरीका पेश किया है। इस शोध टीम का कहना है कि उसके पास पक्का सबूत है कि आंतरिक कोर वास्तव में पीछे की ओर बढ़ रहा है और अधिक धीमी गति से आगे बढ़ रहा है। शोध दल ने दक्षिण अटलांटिक महासागर में दक्षिण सैंडविच द्वीप समूह में 1991 और 2023 के बीच बार-बार आए 100 से अधिक भूकंपों के सीस्मोग्राम का विश्लेषण किया और उनकी तुलना की। भूकंपीय ऊर्जा उन कुछ तरीकों में से एक है जिससे हम आंतरिक कोर का अध्ययन कर सकते हैं। ऊर्जा तरंगें सतह से मेंटल के माध्यम से,कोर तक जाती हैं और फिर वहां से वापस आ सकती हैं। वैज्ञानिक इसका पता लगा सकते हैं और माप सकते हैं। इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता जॉन विडेल और उनकी टीम ने देखा कि बार-बार आने वाले भूकंपों के सीस्मोग्राम एक दूसरे से कितने अच्छी तरह से संबंधित हैं। उन्होंने कहा कि हम आंतरिक कोर के हिलने पर सीस्मोग्राम की तरंगों में परिवर्तन स्पष्ट रूप से देख सकते हैं।

नई विधि में अनुमान नहीं

आम तौर पर वैज्ञानिक भूकंपीय तरंगों के बीच समय के अंतर को मापते हैं और यह देखते हैं कि उन्हें कोर तक जाने और वापस आने में कितना समय लगता है। यह कोर की स्थिति और समय के साथ इसमें होने वाले परिवर्तनों को मैप करने में मदद कर सकता है। लेकिन इसके लिए आंतरिक कोर की संरचना के बारे में अनुमान लगाने पड़ते जिसे हम अच्छी तरह से नहीं जानते। टीम की नई विधि में इस तरह के अनुमानों की आवश्यकता नहीं है। शोधकर्ताओं ने केवल यह देखा कि सीस्मोग्राम कितने अच्छे तरीके से मेल खाते हैं। भले ही हम यकीनी तौर पर यह कह सकते हैं कि आंतरिक कोर पीछे की ओर झुक रहा है और धीमा हो रहा है,लेकिन रोटेशन की सही-सही गति या परिवर्तन का कारण क्या है,इसकी गणना करना मुश्किल है।

आंतरिक कोर की रहस्यभरी संरचना

वैज्ञानिक आंतरिक कोर के अध्ययन के लिए भूकंप द्वारा उत्पन्न भूकंपीय तरंगों का उपयोग करते हैं। इन तरंगों का अध्ययन करने के एक नए तरीके का उपयोग करते हुए शोधकर्ताओं ने एक आश्चर्यजनक खोज की है। उन्होंने पता लगाया है कि भूमध्य रेखा के चारों ओर कोर का एक डोनट (मोटे छल्ले जैसी पेस्ट्री) के आकार का क्षेत्र है,जो कुछ सौ किलोमीटर मोटा है,जहां भूकंपीय तरंगें कोर के बाकी हिस्सों की तुलना में लगभग 2 प्रतिशत धीमी गति से यात्रा करती हैं। वैज्ञानिकों को लगता है कि इस क्षेत्र में सिलिकॉन और ऑक्सीजन जैसे अधिक हल्के तत्व हैं जो कोर के माध्यम से बहने वाली तरल धातु की विशाल धाराओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं जो पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र को उत्पन्न करतीं हैं। भूकंप द्वारा उत्पन्न भूकंपीय तरंगों के अधिकांश अध्ययन बड़ी प्रारंभिक तरंगों को देखते हैं जो भूकंप के बाद एक घंटे या उससे अधिक समय में दुनिया भर में यात्रा करती हैं। वैज्ञानिकों ने महसूस किया कि हम इन तरंगों के बाद के कमज़ोर हिस्से को देखकर कुछ नया सीख सकते हैं, जिसे कोडा के नाम से जाना जाता है। पिछले अध्ययनों ने निष्कर्ष निकाला था कि बाहरी कोर की ‘छत’ के चारों ओर हर जगह तरंगें अधिक धीमी गति से चलती हैं। हालांकि शोधकर्ताओं ने ताजा अध्ययन में दिखाया है कि कम वेग वाला क्षेत्र केवल भूमध्य रेखा के पास है। बाहरी कोर का निचला हिस्सा ऊपर से ज्यादा गर्म होता है। तापमान के अंतर के कारण तरल धातु स्टोव पर रखे बर्तन में उबलते पानी की तरह हिलती है। इस प्रक्रिया को तापीय संवहन कहा जाता है। अगर बाहरी कोर में हर जगह एक ही सामग्री भरी हुई है,तो भूकंपीय तरंगों को भी हर जगह लगभग एक ही गति से यात्रा करनी चाहिए। तो ये तरंगें डोनट के आकार वाले क्षेत्र में धीमी क्यों हो जाती हैं? वैज्ञानिकों को लगता है कि इस क्षेत्र में हल्के तत्वों की मात्रा अधिक होने के कारण तरंगें धीमी हो जाती हैं। बाहरी कोर में एक और ग्रह-स्तरीय प्रक्रिया भी काम कर रही है। पृथ्वी का घूर्णन और छोटा ठोस आंतरिक कोर बाहरी कोर के तरल को उत्तर-दक्षिण दिशा में चलने वाली लंबी भंवरों में व्यवस्थित करता है। इन भंवरों में तरल धातु की अशांत गति ‘जियोडायनेमो’ बनाती है जो पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र को बनाने और उसे बनाए रखने के लिए जिम्मेदार है। यह चुंबकीय क्षेत्र हमारे ग्रह को हानिकारक सौर पवन और विकिरण से बचाता है, जिससे सतह पर जीवन संभव होता है। बाहरी कोर की बनावट का अधिक विस्तृत दृश्य जिसमें हल्के तत्वों का नया खोजा गया डोनट भी शामिल है, हमें हमें पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेगा। समय के साथ चुंबकीय क्षेत्र अपनी तीव्रता और दिशा कैसे बदलता है,यह पृथ्वी पर जीवन और बाहरी ग्रहों की संभावित आवास योग्यता के लिए महत्वपूर्ण है l

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