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अमृतकाल में विषपान की मजबूरी

12:38 PM Aug 13, 2022 IST
अमृतकाल में विषपान की मजबूरी
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सहीराम

वैसे तो देश में अमृत महोत्सव चल रहा है, लेकिन पिछले दिनों हल्ला दारू पर मचा रहा। इसलिए नहीं कि गुजरात में जहरीली दारू पीकर दर्जनों लोग मर गए थे। जहरीली दारू पीकर इतने लोग अगर कहीं और मर जाते, तो जनाब लोग आसमान सिर पर उठा लेते। लेकिन गुजरात के साथ अच्छी बात यह है कि वहां चाहे कुछ भी हो जाए, कोई चूं नहीं करता। यह तो जहरीली दारू की बात है, वहां तो जहाज लद-लद कर हेरोइन आती है फिर भी कोई कुछ नहीं बोलता। मुंद्रा पोर्ट पर जो हजारों करोड़ की टनों हेरोइन मिली थी, उसे भूल गए क्या। गुजरात बिहार नहीं है न, कि काजल की कोठरी में कितनों ही सयानो जाए, काजल का दाग तो लागे ही लागे। बिहार में जहरीली दारू पीकर पांच लोग भी मर जाएं तो नीतीश कुमार की शराब नीति फेल घोषित हो जाती है और गुजरात में पिचहत्तर मरें तब भी कोई कुछ नहीं बोलता। यह शीर्ष नेतृत्व के उन पुण्यों कर्मों का फल है, जिनका बड़ा हिस्सा गुजरात के खाते में दर्ज है।

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खैर दारू पर हल्ला इसलिए नहीं मचा कि गुजरात में जहरीली दारू पी कर दर्जनों लोग मर गए। बल्कि इसलिए मचा कि दिल्ली सरकार प्राइवेट ठेकों से दारू बिकवाने लगी थी। बस जी मचा दिया भाजपा ने हल्ला। हार कर केजरीवालजी को अपनी शराब बिक्री नीति बदलकर पुरानीवाली ही लानी पड़ी। जैसे पुरानी शराब अच्छी मानी जाती है, उम्मीद है कि वैसे ही शराब बेचने की पुरानी नीति भी अच्छी साबित होगी।

कायदे से आजादी के अमृत महोत्सव पर शराब जैसे विष की बात नहीं होनी चाहिए। हालांकि अमृत मंथन में तो विष भी निकला ही था, जो अंततः भगवान शिव को पीना पड़ा। इधर लोग कह रहे हैं कि भगवान शिव की ही तरह आम जनता भी महंगाई और बेरोजगारी का विषपान कर रही है। हालांकि जयंत सिन्हा पूछ रहे हैं कि महंगाई है कहां। सिर्फ विपक्ष को दिख रही है। हमें तो दिख न रही है। महंगाई और बेरोजगारी भी लगता है कोई भूत-प्रेत हो गयी है जो सिर्फ विपक्ष वालों को ही दिखती है, सत्ताधारी पुण्यात्माओं को नहीं दिखती। अब देखो जी, विष का छोटा सा सिप तो देवेंद्र फड़नवीस ने भी लिया है, जबकि अमृत सारा शिंदे पी गए-गटाक से। ऑपरेशन लोटस ऐसे तो नहीं चलना चाहिए जी कि अपनों को ही चुस्कियां ले-लेकर विषपान करना पड़े। महाराष्ट्र में तो चलो अकेले फड़नवीसजी को ही विषपान करना पड़ा, लेकिन बिहार में तो पूरी पार्टी को ही विषपान करना पड़ रहा है। खैर जी, देश अमृत महोत्सव मना रहा है, तो अमृत कलश छलकाइए। विषपान के लिए तो शिव हैं ही।

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