For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

सिटी ऑफ जॉय खुशियों की तमाम वजहें हैं कोलकाता में

07:38 AM Jan 19, 2024 IST
सिटी ऑफ जॉय खुशियों की तमाम वजहें हैं कोलकाता में
ईडन गार्डन
Advertisement

अमिताभ स.
कोलकाता की सड़कों पर हर ओर नीला और सफेद रंग छाया है। सड़कों को छूती फुटपाथ के बार्डर नीले-सफेद रंगे हैं तो रात में स्ट्रीट लाइटों के खम्भों पर लिपटीं नीली-सफेद लाइटों की लड़ियां मनमोह लेती हैं। ऐसे विविध रंग समेटे कोलकाता ‘सिटी ऑफ जॉय’ कहलाता है।
कोलकाता ओल्ड और न्यू टाउन में बंटा है। न्यू टाउन बीते बीसेक सालों में उभरा है, आज भी बन ही रहा है। खुली-खुली सड़कें, ऊंची इमारतें, बड़े-बड़े मॉल, हाई- फाई सिटी के बीच हरियाली भी भरपूर है। उधर ओल्ड टाउन के बाज़ार बेशक पुराने हैं, फिर भी यहां-वहां अंग्रेजी स्पर्श से सजे हैं।

Advertisement

हाथ रिक्शा तो ओला-उबर भी

कोलकाता घूमने के लिए ट्रांसपोर्ट के इतने विविध साधन हैं, जितने देश के किसी अन्य शहर में शायद ही मिलें। अंग्रेजों के जमाने की अंडरग्राउंड मेट्रो में पुराने शहर का चप्पा-चप्पा घूम सकते हैं। और फिर, मेट्रो ने देश में सबसे पहले कोलकाता में ही दस्तक दी थी। नई मेट्रो का विस्तार भी हुआ है, आगे और निर्माण भी ज़ारी है। कुछेक सड़कों पर ट्राम भी दौड़ती है, रफ्तार इतनी धीमी कि चलती ट्राम से मज़े-मज़े चढ़ और उतर सकते हैं। ट्राम की हालत देख कर अंदाजा लगता है कि अन्तिम सांसें गिन रही है।
शहर के कुछ हिस्सों में ऑटो चलते हैं, बैटरी रिक्शा भी हैं। और सबसे खास है हाथ रिक्शा। हाथ रिक्शा कोलकाता की दशकों से पहचान बनी है। शायद कोलकाता देश का अकेला शहर है, जहां आज भी आदमी कंधों पर रिक्शा खींचता है। सवारियां आज भी इस पर घूमती हैं। 1950 के दशक की ‘दो बीघा ज़मीन’ का ताना-बाना हाथ रिक्शा के इर्द-गिर्द ही बुना गया है। ओला-उबर के अलावा उम्दा टैक्सी सर्विस के जरिए भी घूमना-फिरना आसान है। पीली (नीली पट्टी वाली) अम्बेसडर टैक्सियां नॉन-एसी हैं तो सफेद (नीली पट्टी वाली) रंग की एसी। ‘वेस्ट बंगाल ट्रांसपोर्ट कार्पोरेशन’ की पब्लिक बस सेवा के साथ-साथ रंग-बिरंगी प्राइवेट बसों का भी जाल बिछा है।

कालीघाट मन्दिर

कालीघाट मन्दिर से मिला नाम

कोलकाता जाने वाला हर हिन्दू कालीघाट मन्दिर काली मां के दर्शन करने जरूर जाता है या जाना चाहता है। ‘जय काली कलकत्ते वाली, तेरा वचन न जाए खाली’ भक्ति-मंत्र कालीघाट मन्दिर की महिमा का गुणगान करता है। मन्दिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। बताते हैं कि कालीघाट से ही, शहर को ‘कलकत्ता’ (कोलकाता का पुराना नाम) नाम मिला है। किसी जमाने में, मन्दिर हुगली नदी (भागीरथ) के तट पर था, जो समय के साथ दूर होती गई। मां काली को किस्म-किस्म के रंग-बिरंगे फूल और पेड़े चढ़ाने की प्रथा है।
काली मां का एक और मन्दिर है दक्षिणेश्वर काली मन्दिर। हुगली नदी के पूर्वी तट पर मन्दिर का निर्माण 1855 में रानी रशमोणी ने करवाया था। उधर, रामकृष्ण परमहंस मिशन के मुख्य अनुयायी स्वामी विवेकानंद ने कोलकाता में ही बेलुड़ मठ की स्थापना की थी। यही रामकृष्ण परमहंस मिशन का हेडक्वार्टर भी है। यहां रोज बड़ी तादाद में लोग दर्शन करने उमड़ते हैं।

Advertisement

हावड़ा ब्रिज

हावड़ा ब्रिज

हावड़ा ब्रिज, विद्यासागर सेतु और बाली ब्रिज हुगली नदी पार कराते तीन शानदार पुल भी टूरिस्ट अट्रेक्शन हैं। साल 1943 में चालू धातु का हावड़ा ब्रिज का नया नाम बेशक रविन्द्र सेतु है, लेकिन आज भी हावड़ा ब्रिज के तौर पर ही मशहूर है। इसे कोलकाता का लैंडमार्क कह सकते हैं। करीब एक लाख वाहन रोज इससे आर-पार होते हैं। ‘युवा’, ‘परिणीता’ वगैरह कई बॉलीवुड फिल्मों में भी नज़र आता रहा है। विद्यासागर सेतु भी हुगली नदी पर बना है और कोलकाता व हावड़ा जिलों को एक-दूसरे से जोड़ता है। खास बात है कि करीब 800 मीटर लम्बा पुल केबल तारों के सहारे बना है। पैदल चलने या खड़े होने पर बाकायदा ज़रा-ज़रा झूलता महसूस होता है। यह केबलों पर टिका देश का सबसे लम्बा पुल है।

विक्टोरिया मेमोरियल

ब्रिटिशआर्किटेक्चर की छाप

कोलकाता की सड़कों-बाज़ारों में अंग्रेजी आर्किटेक्चर की छाप साफतौर से झलकती है। क्वींस वे पर ‘विक्टोरिया मेमोरियल’ को तो सबसे भव्य अंग्रेजी इमारत कह सकते हैं। खासी बड़ी है, सफेद संगमरमर से बनी है। इसका निर्माण 1906 से 1921 के बीच हुआ और महारानी विक्टोरिया (1819-1901) को समर्पित है। इसमें आज म्यूजियम है। बगल में, लम्बा-चौड़ा मैदान है, जो ब्रिगेड परेड ग्राउंड कहलाता है।
शहर का सबसे बड़ा मैदान है और ‘मैदान’ नाम से ही लोकप्रिय है। नेताओं की रैलियां होती हैं। दशहरा पर्व में यहीं मनाया जाता है। शाम होते-होते बगल की सड़क पर घोड़ा बग्घियों की जॉय राइड का लुत्फ उठा सकते हैं। ईडन गार्डन, इंडियन म्यूजियम (जादूघर), बिरला तारामंडल वगैरह ही नहीं, सेंट रॉल’स, कैथेड्रल और सेंट जान’स चर्च भी अंग्रेजों के जमाने की अट्रेक्शंस हैं। साल 1841 से चालू प्रिंसेप घाट से हुगली नदी और विद्यासागर सेतु के सबसे दिलकश नज़ारों के दीदार होते हैं।
कोलकाता ठाकुर रवीन्द्रनाथ टैगोर और मदर टैरेसा दो-दो नोबल विजेताओं की जन्म और कर्म भूमि रही है। ‘मदर हाउस’ नाम से फेमस मिशनरीज ऑफ चैरेटी का हैडक्वार्टर और मदर टैरेसा की कब्र पर रोज टूरिस्ट आते-जाते हैं। द्वारकानाथ टैगोर लेन स्थित जोड़ा शाको ठाकुर बाड़ी रवीन्द्रनाथ टैगोर का पुश्तैनी घर है। अगस्त, 1941 में उनकी मृत्यु यहीं हुई थी, फिर 1961 से यह हवेली ‘रवीन्द्र भारती म्यूजियम’ है।

पार्क स्ट्रीट

पार्क स्ट्रीट की रौनकें

बड़ा बाजार, बर्मन रोड, केनिंग स्ट्रीट, बहू बाज़ार वगैरह जाने-माने बाज़ार हैं। कॉलेज स्ट्रीट तो अपने डीयू नॉर्थ कैम्पस की माफिक है। सड़क के दोनों ओर कॉलेज हैं और पटरी पर कतार से किताबों की सैकड़ों स्टॉलनुमा दुकानें। लगता है कि पढ़ाकू दुनिया में आ गए हैं। वरदान मार्केट को स्ट्रीट फूड का हब कह सकते हैं। फुटपाथ पर ही झालमुड़ी, पानी पुचका, घुघनी, वड़ा वगैरह के लाइन से स्टॉल हैं, जिन पर खाने वालों का हरदम मजमा लगा रहता है। यहीं झोले में टोकरी बांधे चना जोर गर्म बनाते-खिलाते वैंडर्स बड़े मस्त लगते हैं।
सबसे रौनक़ और चहल-पहल वाला इलाक़ा है पार्क स्ट्रीट। नया नाम मदर टैरेसा सरनी है। शाम होते-होते रौनकें शबाब पर होती हैं। नाइट लाइफ का अड्डा समझिए। ब्लू फॉल्स, मौगेम्बो, पीटर केट वगैरह तमाम रेस्टोरेंट-पब खचाखच भरे रहते हैं। बेकरी शॉप ‘फ्लूरिज’ की धूम 1927 से है। पैदल घूमते लगता ही नहीं कि किसी हिन्दुस्तानी शहर में हैं, यूरोपीय शहर की सड़क लगती है। यही नहीं, 1874 से चालू न्यू मार्केट भी देखने लायक है। पहले नाम था सर स्टूअर्ट हग मार्केट और आज 2000 से ज्यादा स्टॉलों पर किस्म-किस्म का सामान मिलता है।

विश्व बंगला गेट

न्यू टाउन का जलवा

न्यू टाउन को मार्डन कोलकाता कह सकते हैं। आधुनिक खेल-झूलों से लेस ‘निक्को पार्क’ है तो झील, हरियाली और सेवन वंडर्स के दीदार करने के लिए ‘ईको पार्क’ भी। सामने ‘मदर्स वेक्स म्यूजियम’ भी क्या खूब है। मैडम टुसार्ड म्यूजियम के मोम के पुतलों की दुनिया कह सकते हैं। और बगल में है ‘बंगाल मिष्टी हब’। खासियत है कि एक ही परिसर में समूचे बंगाल के नामी-गिरामी हलवाइयों की मिठाइयां चखने का निराला मौका मिलता है।
रसोगुल्ला की जन्मस्थली कोलकाता का मिठाई प्रेम जगजाहिर है। यहां ‘केसी दास’ के रसगुल्ले खाएं, या ‘बाला राम मुलिक एंड राधा रमन मुलिक’ की संदेश वैरायटी। ‘गंगू राम’, ‘नाभा कृष्णा गुइन’, ‘नलिन चंद्र दास एंड संस’ वगैरह सदियों पुराने बंगाली हलवाई भी अपनी-अपनी स्वादिष्ट मिठाइयां खिलाने में जुटे हैं। यही नहीं, एक क्रॉसिंग के बीचोंबीच ‘विश्व बंगला गेट’ क्या जोरदार है। खासी ऊंचाई पर, पूरी क्रॉसिंग के गोल धारे जितना बड़ा आलीशान रेस्टोरेंट है। कुछ ऊपर रेस्टोरेंट में खाना खाते हैं, तो बाकी सड़क से ही अजब-गजब रंग-ढंग के रेस्टोरेंट को देख-देख दंग होते हैं।

* ट्रेन से 16, प्लेन से 2 घंटे दूर देश के 4 महानगरों में से एक कोलकाता पश्चिम बंगाल की राजधानी है।
* हुगली (भागीरथ) नदी के किनारे बसा है।
* अंग्रेजों द्वारा 1911 में दिल्ली को केपिटल बनाने से पहले 1773 से कोलकाता ब्रिटिश इंडिया की राजधानी था।
* दिल्ली से कोलकाता की सड़क दूरी करीब 1450 किलोमीटर और हवाई दूरी करीब 1300 किलोमीटर है।
* ट्रेन से दिल्ली टु कोलकाता पहुंचने में कम से कम 16 घंटे और बाय एयर करीब 2 घंटे लगते हैं।
* हावड़ा स्टेशन सबसे बड़ा और पुराना रेलवे स्टेशन है, तो सियालदह स्टेशन दूसरे नम्बर का।
* एयरपोर्ट का नाम नेता जी सुभाष चन्द्र बोस इंटरनेशनल एयरपोर्ट है।

Advertisement
Advertisement